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शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2018

1190....रावण अपने दस चेहरे बाहर ही रखता था..और हम??

शुभ विजयादशमी

दस इंद्रियों को जीत लो
यह विजयादशमी पर्व है।
राम सद्गुण के सम्मुख
पराजित दशानन गर्व है।।
-श्वेता
दशहरा का तात्पर्य, सदा सत्य की जीत।
गढ़ टूटेगा झूठ का, करें सत्य से प्रीत॥

सच्चाई की राह पर, लाख बिछे हों शूल।
बिना रुके चलते रहें, शूल बनेंगे फूल॥

क्रोध, कपट, कटुता, कलह, चुगली अत्याचार
दगा, द्वेष, अन्याय, छल, रावण का परिवार॥

राम चिरंतन चेतना, राम सनातन सत्य।
रावण वैर-विकार है, रावण है दुष्कृत्य॥

वर्तमान का दशानन, यानी भ्रष्टाचार।
दशहरा पर करें, हम इसका संहार॥
-अजहर हाशमी

★★★
सादर नमस्कार

चलिए आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-



आदरणीय रुपचंद्र शास्त्री जी 


विजयादशमी 
विजयादशमी विजय का, पावन है त्यौहार।
आज झूठ है जीतता, सत्य रहा है हार।।
--
रावण के जब बढ़ गये, भू पर अत्याचार।
लंका में जाकर उसे, दिया राम ने मार।।
★★★
आदरणीय अमित निश्छल जी
पन्नों पर अभी पहरे हैं


लेखन नियम न समझा
संधानित नरकट ने
बदल दिया जज़्बाती
पारस को करकट में,
रच-रच उलाहनायें
सृजनें हैं अब देतीं
भस्म हुई ख़्वाबों की
सरसब्ज़ पड़ी खेती;
★★★
आदरणीय पुरुषोत्तम जी
उद्वेलित हृदय


क्यूँ ये संताप में जले,

अकेला ही क्यूँ ये वेदना में रहे,

रक्त के इस भार से,
उद्वेलित है हृदय की जमीं....

★★★
आदरणीया नीलम अग्रवाल जी


इक अजब दर्द है अब कागज़ पर उतरता नहीं।
आइना बहुत साफ किया
पर अपना अक्स दिखता नहीं।
लाख कोशिशें की मुस्कुराने की
पर अब होंठो पर मुस्कान सजती नहीं!!
★★★
तुम  अमर 
नश्वर  सभी 

श्राप या वर 
सोचा  कभी ?

★★★
और चलते-चलते पढ़िए
आदरणीय शशि जी की क़लम से

  मन के इस अंधकार को मिटाने के लिये अपनी चिन्तन शक्ति को दीपक बनाने की कोशिश में बार-बार उसकी अग्नि से चित्त की शांति 
को झुलसाने की आदत से पड़ गयी है मेरी । फिर भी एक लाभ यह 
तो है ही कि आवारागर्दी से जो बचा रहता हूँ , दिखावे से बचा रहता हूँ 
और झूठ से भी.. भद्रजन कहलाने के लिये किसी मुखौटे की मुझे 
जरुरत नहीं.. यह समाज जानता है कि मुझे उससे अब और कुछ 
नहीं चाहिए.. जो दर्द मिला है , वह मेरी लेखनी में समा गया है.. 
वहीं मेरी पहचान है, वही मेरा ज्ञान है, भगवान है..?
★★★★
आज यह अंक आपको कैसा लगा?
कृपया अपनी प्रतिक्रिया के द्वार अपने सुझाव अवश्य दीजिए

हमक़दम के विषय के लिए 


कल आ रही आदरणीय विभा दी अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ
आज के लिए इतना ही

मनुष्य  कितने चरित्रवान है आज
हर दूसरे दिन गली, मुहल्लों में
अखबार की सुर्खियों में छपे नज़र आते है
अपनी ओछी चरित्र का
प्रमाण हम स्वयं ही दे जाते है
रावण अपने दस चेहरे बाहर ही रखता था
आज हम अपना एक चेहरा ही
अनगिनत में मुखौटों की तह में
छुपाते हैंं।

श्वेता

16 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति...
    विजया दशमी की शुभकामनाएँ...
    शुभ प्रभात...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. सच्चाई की राह पर, लाख बिछे हों शूल।
    बिना रुके चलते रहें, शूल बनेंगे फूल॥
    सुंदर संदेश है.. हाँ , इस अर्थयुग में शूल फूल बने न बने ,फिर भी उसकी चिता की राख निश्चित ही भस्म सा पवित्र हो जाता ही..
    सभी रचनाकारों को विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएं। इस विशेष तरह के चिंतन भरे खूबसूरत अंक के लिये आपको भी श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस पथिक के विचारों को स्थान देने के लिये आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात छुटकी
    श्रमसाध्य अंक
    सही व सटीक रचनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. विजयादशमी की शुभकामनाओं सहित बहुत-बहुत धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  6. शुभ प्रभात सखी
    बहुत ही सुन्दर हलचल प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. खूबसूरत श्रंखला ..... शानदार रचनाएँ ....
    शुक्रिया ....... शुभकामनाएँ ...

    जवाब देंहटाएं
  8. असत्य पर सत्य की, अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयादशमी की हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  9. विजयादशमी की सभी को बधाई
    आज की हलचल बहुत ही उम्दा हैं

    जवाब देंहटाएं
  10. विजयादशमी की सभी को शुभकामनाएं। सुन्दर हलचल प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन प्रस्तुति श्रेष्ठ रचनाओं का सुंदर संकलन
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं आप सभी
    को

    जवाब देंहटाएं
  12. सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई आप सभी को विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  13. सारगर्भित पंक्तियों के साथ सुंदर शुरूआत ,
    अजहर हाशमी जी की अप्रतिम पंक्तियां उम्दा लिंकों का चयन। बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  14. रावण अपने दस चेहरे बाहर ही रखता था
    आज हम अपना एक चेहरा ही
    अनगिनत में मुखौटों की तह में
    छुपाते हैंं।
    बहुत ही सार्थक चिंतन प्रिय श्वेता -- विजयदशमी के बहाने से | रावण के भी नैतिक मूल्य थे और बलवान और महाज्ञानी होने के नाते उसकी औकात थी अभिमान करने की , आज के रावण ऐसा कोई हुनर नहीं रखते सिवाय कुत्सित सोच के और उनकी संख्या बढती ही जा रही है | कुछ राम कैसे इन्हें काबू कर पायेंगे | उनके सहारे देश समाज चल रहा है यही काफी है | सभी लिंक देखे शानदार हैं सभी को दशहरा की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | आपको सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार और प्यार |

    जवाब देंहटाएं
  15. प्रस्तावना और उपसंहार में विचारणीय चर्चा का आह्वान करती प्रस्तुति में सार्थक सूत्रों का चयन. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवम् शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं

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