सादर नमस्कार
महाकवि डॉ. गोपालदास नीरज को भावभीनी विनम्र श्रद्धांजलि।
4 जनवरी 1925 को उदित साहित्य का जाज्वल्यमान सितारा 19 जुलाई 2018 को हमेशा के लिए धरती को छोड़कर आसमान में अनोखी चमक बिखेरता हुआ स्थिर हो गया।
महाकवि गोपालदास नीरज का जन्म उत्तरप्रदेश के इटावा में हुआ था। पद्म श्री और पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित बेहद प्रभावशाली कवि का सफ़र टाईपिस्ट से शुरु होकर हिंदी के प्रवक्ता और फिर फिल्मों तक जा पहुँचा। देश विदेश में कवि-सम्मेलनों में इनकी दमदार और जीवंत उपस्थिति इनकी लोकप्रियता का प्रमाण रही।
गीत,ग़ज़ल, कविताएँ,हायकु एवं विधाओं में माहिर नीरज जी एक विशिष्ट शख़्सियत थे।
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था-
"कवि आज हज़ारों हो गये है परंतु कविता को उन्होंने अलोकप्रिय कर दिया है।"
"हिंदुस्तान में आज जितने कवि है पहले कभी नहीं थे क्योंकि सब कविता लिखते है, लय-ताल युक्त गीत बहुत कम ही लोग लिख पाते हैं।"
"कविता तो वो है जो आपके हृदय को छुये,आपके संस्कार को छुये, सिर्फ बौद्धिक व्यायाम से कविता नहीं बनती।"
इनका एक शेर जो मुशायरों में अक्सर सुना जाता है-
इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में,
लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर,
ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥
उनकी लिखी एक कविता की चंद पंक्तियाँ-
आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा
मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा
खिलने को तैयार नहीं थी, तुलसी भी जिनके आँगन में
मैंने भर-भर दिए सितारे, उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया, आँख भरी तो झूम के गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से, क्या इस तरह जिया जाएगा
कारवाँ गुजर गया....
जवाब देंहटाएंअश्रुपूरित श्रद्धाञ्जली
सादर
अश्रुपूर्ण श्रद्धाजंली कविवर को,गीतों की दुनिया का सबसे चमकता सितारा,जो अमर हैं अपनी गीतों में ..
जवाब देंहटाएंन जन्म कुछ न मृत्यु कुछ बस इतनी सी तो बात है,
जवाब देंहटाएंकिसी की आँख खुल गयी किसी को नींद आ गयी ||
नमन
भावभीनी श्रृद्धान्जलि कविवर नीरज जी को ...कारवाँ गुज़र गया ......।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति श्वेता!!
आदरांजली कविवर नीरज जी को..
जवाब देंहटाएंक्षतिपूर्ति असम्भव है...
सादर...
जी श्वेता जी हृदय से धन्यवाद दे रहा हूं अपने जनप्रिय ब्लॉग में एक आम पत्रकार के दर्द को महत्व देने के लिये। दुख मुझ जैसे पत्रकारों को इस बात का नहीं कि अनाड़ी रह गये हम।बस तकलीफ इसकी है कि तमगा तो हमें ईमानदारी का दिया जाता है और बेईमानी करने को विवश किया जाता है। फिर भी हम कायरों की तरह मिमियाते रहते हैं,अपने हृदयहीन स्वामियों के समक्ष।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि नीरज को।
जवाब देंहटाएंकविवर नीरज को श्रद्धांजलि एवं शत शत नमन ।
जवाब देंहटाएंऐ भाई ज़रा देखकर चलो,आगे ही नहीं पीछे भी
जवाब देंहटाएंदाएं ही नहीं बाएं भी,ऊपर ही नहीं नीचे भी
तू जहां आया है वो तेरा घर नहीं, गांव नहीं, गली नहीं, कूचा नहीं, रास्ता नहीं, बस्ती नहीं, दुनिया है और प्यारे दुनिया ये सर्कस है।हाँ बाबू, यह सरकस है शो तीन घंटे का पहला घंटा बचपन है, दूसरा जवानी है तीसरा बुढ़ापा है और उसके बाद - माँ नहीं, बाप नहीं बेटा नहीं, बेटी नहीं, तू नहीं, मैं नहीं, कुछ भी नहीं रहता है रहता है जो कुछ वो - ख़ाली-ख़ाली कुर्सियाँ हैं ख़ाली-ख़ाली ताम्बू है, ख़ाली-ख़ाली घेरा है बिना चिड़िया का बसेरा है, न तेरा है, न मेरा है । सच पूछे तो इस समाज को देने के लिये हर तरह के पैगाम थें महाकवि की गीतों और कविताओं में।
नीरजा स्वरूपा इस मां विंध्यवासिनी देवी के धाम में गीतों के शहंशाह गोपालदास 'नीरज' प्यार का महामन्त्र 20 शताब्दी के आखिरी पड़ाव पर 1997-98 में आयोजित कवि-सम्मेलन में खूब झूम के दे गए थें ।
गीत-सम्राट गोपाल दास नीरज के निधन पर डॉ भवदेव पांडेय शोध संस्थान ने उनसे जुड़ी यादों को तिवराने टोला स्थित कार्यालय को ताजा किया ।
इसी क्रम में जाड़े की उस रात जब नगर के राजस्थान इंटर कालेज में एक कवि सम्मेलन आयोजित हुआ था, के बारे में संयोजक सलिल पांडेय ने बताया कि कवि-सम्मेलन के आयोजकों का हौसला आफजाई तत्कालीन पुलिस अधीक्षक शैलेन्द्र प्रताप सिंह कर रहे थें । नीरज के आगमन पर एक बारगी तो यही लगा था कि आकाश में मेघ भी मचल रहे हैं । उनके आने के चंद घण्टे पहले मेघ झूम के बरस पड़े लिहाजा कालेज के हाल में आयोजन हुआ । मेघ झूमे, माहौल झूमा तो झूमने झूमाने के एक्सपर्ट नीरज जी क्यों न झूमते ? झूमने के पदार्थ भी उपलब्ध थे । फिर तो नीरज जी 'शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब, फिर उसमें मिलाई जाए थोड़ी सी शराब, होगा यूं नशा जो तैयार, वह प्यार है...' गीत से श्रोताओं को वे शब्दों का शबाब, शराब और नशा बांटने लगे थे । कवि तो दर्जनों थे लेकिन घण्टों लोग नीरज जी को ही सुनते रहे ।
मिर्जापुर ने जब भी नीरज जी को न्यौता भेजा, उसे उन्होंने इनकार नहीं किया । 80 के दशक में कटरा बाजीराव मुहल्ले में होने वाले वार्षिक कवि-सम्मेलन में वे कई बार आए । वे जब भी आए, श्रोता मांगपत्र लेकर हाजिर हो जाते रहे । उन दिनों उनके 'ऐ भाय, जरा देख के चलो....' तथा 'कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे...' गीत के लिए श्रोता जैसे धरना दे बैठते थे । लगातार मांग पर वे श्रोताओं का दिल नहीं तोड़ पाते थे । इसी मंच से शीर्षस्थ नवगीतकार गुलाब सिंह को 'दुष्यंत कुमार' अलंकरण से नवाजा गया था ।
नीरज जी को शत शत नमन।
जवाब देंहटाएंअपनी रचनाओं के कारण वो सदा हमारे साथ रहेंगे।
आज भी उनकी रचनाएँ बहुत प्रेरणादायी हैं।
बहुत अच्छी प्रस्तुति ।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनीरज जी को हार्दिक श्रद्धांजलि!
नीरज जी जैसे कवी सम्राट कभी मरते नहीं ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन आज का ...
ऐ भाई ज़रा देखकर चलो,आगे ही नहीं पीछे भी.....१९८९ में नेहरु प्लेस दिल्ली में एनटीपीसी कवि सम्मलेन में अस्वस्थ नीरजजी के मुख से पहली बार इस गीत को सुनकर जाना था कि इस गीत के सर्जक वहीँ हैं और तब पहली बार उनसे ही इस गीत की व्याख्या सुनकर जाना था इस गीत का मर्म!......साहित्य के इस महान स्मृति पुरुष को शत शत नमन!!! २८ जुलाई को हमारे मित्र अलोक राज द्वारा गाये नीरजजी के गीतों का कैसेट कांस्टीच्युशन क्लब नयी दिल्ली में (अब नीरजजी की अनुपस्थिति में ही) लोकार्पित होगा. आप सभी सादर आमंत्रित हैं.
जवाब देंहटाएंरचनाओं के इस कारवां को इतनी सामयिक भूमिका के साथ हमारी आँखों से गुजारने के लिए श्वेता जी को अशेष बधाई!!!
आदरणीय नीरज जी को शतशत नमन और श्रृद्धानजली।
जवाब देंहटाएंमेरे प्रिय गीतकार कवी सौभाग्य से मैने उन्हें दो बार अगली पंक्तियों पर बैठ कर सुना और फरमाइश कर बैठी थी कारवाँ गुजर गया सुनाने की मै नीरज जी को पढ़ती रही हूं और मुझे कारवाँ गुजर गया और मै पीड़ा का राजकुवंर हूं दोनो बहुत पसंद है वे मै पीड़ा का गा रहे थे मेरा फरमाईश का पर्चा वहाँ पहुँचा और वो कविता खत्म कर बोले कारवाँ गुजर गया आप सबने फिल्मों वाला सुना होगा आज मै इसे मेरे अंदाज मे सुनाता हूं और उन के इस गीत के बाद हाल देर तक तालियों से गूंजता रहा।
सुंदर संकलन मेरी रचना को सामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता -- बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुतिकरण और अमूल्य धरोहर कही जाने वाली कालजयी रचनाएँ आदरणीय नीरज जी की | कोई शब्द नहीं उनकी शान में | बस नमन और नमन !!!!
जवाब देंहटाएंउन्ही के शब्दों में --
कोई चला तो किसलिए
नजर डबडबा गई,
श्रृंगार क्यों सहम गया,
बहार क्यों लजा गई,
न जन्म कुछ,
न मृत्यु कुछ,
बस इतनी सिर्फ बात है,
किसी की आंख खुल गई,
किसी को नींद आ गई’!!!!!!!!
सभी रचनाये बहुत लाजवाब है |प्रिय शशि भाई की परम
आदरणीय नीरज जी के संस्मरण से सजी टिप्पणी ने
लिंक की शोभा को और बढ़ा दिया | सभी रचनाकारों
को हार्दिक बधाई | और विद्वतापूर्ण टिप्पणी के लिए
आपको आभार नहीं बस मेरा प्यार |
बहुत सुन्दर संकलन श्वेता जी , नीरज जी को विनम्र श्रद्धांजलि
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