शीर्षक पंक्ति: आदरणीया नूपुरं जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
रविवारीय अंक में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
बूँद-बूँद घट में संचित
मिट्टी में अमिट छाप
जिसकी, चेतना में व्याप्त
विचारों की अविरल धारा
सींचती रहे मानस धरा~~
अतऐव संजो कर रखनी है
अपनी यह अकूत संपदा,
घटानी नहीं, जोङनी है।
*****
ये
फूल
खिलते
महकते
मुस्कुराते हैं
हमें सुखी कर
भू पे बिछ जाते हैं!
*****
ग़ज़ल, हाकिम रियाया के दिल की बात कब जानता
है
पिछले महीने तेरे शहर में ज़लज़ला आया था
उसके कहने का मतलब जानता है
ये सवाल मेरी शख्सियत पर हावी है
वो मुझसे क्यों पूछता है जब जानता है
*****
किसी मोड़ पर जब रोने को भी तरस जाओगे
अपनी नाकामियां तब तुम किसको
बताओगे
घुट घुट के ही अंदर जब मर
जाओगे
कही जाकर तब ये एहसास आयेगा
वक़्त जब हाथ से फिसल
जायेगा.....
*****
इस फ्रायडे को गुड क्यों कहा जाता है?
वैसे यह सवाल बच्चों को तो क्या
बड़ों को भी उलझन में डाल देता है कि जब इस दिन इतनी दुखद घटना घटी
थी, तो इसे "गुड" क्यों कहा जाता है ? इसका यही जवाब है कि यहां "गुड" का अर्थ "HOLY"
यानी पावन के अर्थ में लिया गया है ! क्योंकि इसी दिन यीशु ने सच्चाई का साथ देने
और लोगों की भलाई के लिए, उनमें सत्य, अहिंसा और प्रेम की भावना जगाने के लिए, अपने प्राण त्यागे थे। इस दिन उनके अनुयायी उपवास रख पूरे दिन प्रार्थना करते हैं और यीशु को दी गई
यातनाओं को याद कर उनके वचनों पर अमल करने का संकल्प लेते हैं।
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
आज तबियत कुछ ठीक है
जवाब देंहटाएंफिर भी शरीर आराम मांगता है
आभार रवीन्द्र भाई
सादर वंदन
बहुत सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंसम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद