माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
कबीर दास भक्तिकाल युग के ऐसे कवि हुए जिन्होंने समाज को जगाया। कबीर ने अपने समय को टटोला और लोगों की दुख और तकलीफ़ को अपनी रचनाओं का केंद्र बनाया। कबीर ने अपने काव्य में लोक चेतना को जागृत करने के लिए कालजयी साहित्य की रचना की। कबीर निर्गुण भक्ति धारा के सबसे तेजस्वी स्तंभ थे। कबीर के दोहे और सूक्तियां सदियों बाद आज भी इतनी मार्मिक हैं कि उसमें लोक चेतना की ज्वाला अभी भी जल रही है।
कबीर के शब्द सीधे और सरल हैं। वह किसी तरह के अलंकार और भाव व्यंजनों में उलझते नहीं दिखते। वह गंभीर अर्थों के साथ सामाजिक समस्याओं पर करारी चोट करते हैं और निराकरण का रास्ता भी सुझाते हैं। कबीर सभी मनुष्यों को एक समान भाव देते हैं। वह धर्म के बाह्यआडंबर पर हिंदू और मुस्लिम दोनों पर प्रहार करते हैं। उनका एक दोहा बड़ा प्रसिद्ध है-
'कांकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय'
वक्त की शाख़ पर
लदे खट्टे-मीठे फलों सरीखे
अनुभवों को
चिड़िया के चुग्गे सा
अनवरत
चुनता रहता है इन्सान
इसी का नाम ज़िंदगी है
तक, बाँसवन में है अभी तक मौजूद
आदिम कुछ दीवार, मृत किनारों
को मिल जाते हैं नए
वारिसदार । कौन
संभाले रखता
है पुराने
ख़त,
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार, सभी रचनाएं अतुलनीय, नमन सह ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चिंतन परक भूमिका के साथ सुन्दर प्रस्तुति ।सभी रचनाएँ अत्यंत सुन्दर ।मुझे प्रस्तुति में स्थान देने के लिये हृदय तल से हार्दिक आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंसम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
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