।।प्रातःवंदन।।
ऊषे!
किसका सन्देशा लाई हो
चिर प्रकाश या चिर अन्धकार का?
अरुणिम वेला में आकर अम्बर पर
बनकर प्रकाश की पथचरी
चिर अनुचरी!
उसके आने का सन्देशा देकर
फिर पथ से हट जाती हो..!!
विजयदान देथा 'बिज्जी'
लायी हूँ शब्दों की कुछ खास बातें..महसूस करिये इन्हें पढकर..
उरई की संक्षिप्त यात्रा में सबसे ज्यादा प्रतीक्षित मुलाकात मुझे करनी थी अपने चाचाजी श्री रामशंकर द्रिवेदी जी से। कई बार वह भी कह चुके थे कि मिलना है , लेकिन जिस उद्देश्य से हम मिलना चाहते थे , उसे पूरा करने का समय नहीं मिला। मैं उनको बता चुकी थी...
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असफल वैवाहिक रिश्तों के पीछे अनेक कारण हैं । उन अनेक कारणों में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण कारण है आज के युवाओं की निरंकुश रूप से बढ़ती हुई स्वच्छंदता की प्रवृत्ति और उनकी दिन प्रति दिन विकृत होती जाती..
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अपने में टिक रहना है योग
योग में बने रहना समाधि
सध जाये तो मुक्ति
मुक्ति ही ख़ुद से मिलना है
हृदय कमल का खिलना है ..
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जरूरत के समय साथ निभाने वाले लोग
नदियों ने कब मना किया था
जल नहीं देने से
खेतों के लिए
पशुओं के लिए
मनुक्ख की प्यास के लिए
जो वह बांध दी गई !
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।।इति शम।।
।धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति।।
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात ! सुंदर काव्य रचना से सजी भूमिका और पठनीय रचनाओं के सूत्रों ने आज के अंक को विशेष बना दिया है, 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु आभार पम्मी जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुतियाँ ।
जवाब देंहटाएंमेरे आलेख को आज भी पटल की अन्य बेहतरीन पोस्ट्स के साथ प्रस्तुत करने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार पम्मी जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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