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बुधवार, 13 मार्च 2024

4064..एक चिट्ठी गुम नाम पते पर

 ।।प्रातःवंदन।।

सूरज के उगते ही देखो

चिडिय़ा चहके गीत सुनाए

ओस की बूँदों से टकरा कर

कण-कण को रश्मि चमकाए

मदमाती जब चली पवन तो

महक उठी है क्यारी-क्यारी ।

जिसे भी देखो मस्ती छाई

जीव जगत के मन को भायी

अपनी मस्ती में हैं सारे

भोली शक्लें प्यारी-प्यारी ।।

 दीनदयाल शर्मा

चंद पल सुशोभित शब्द संधान रूप से नजर डालें आज की प्रस्तुति पर..✍️

गुबार के उस पार..



किसी वीरान टूटे फूटे स्टेशन की तरह लोग तकते

रहे गुज़रती हुई सभ्यता की ट्रेन, उसकी तेज़

रफ़्तार, दूर तक सिर्फ़ नज़र आता रहा

ग़ुबार ही ग़ुबार, ये और बात है कि

किसी ने भी उन्हें नहीं देखा,

⭕️

एक चिट्ठी गुम नाम पते पर 

लिखनी है मुझे 

उसके नाम जिसने 

गिरवा दिया था 

मेरे माथे पर 

एक रंग सिंदूरी 

⭕️

रात चांद को देखा तो

 रात चांद को देखा तो कोई याद आ गया 

मेरी यादों में फिर से मेरा वो चांद आ गया।

कहना था लेकिन जो भूल गया तेरे सामने

वो सब तो तेरे जाने के बाद याद आ गया।

⭕️

-दो कबूतर 

बैठे एक डालपे 

गुटर गूं की

⭕️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

2 टिप्‍पणियां:

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