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रविवार, 10 मार्च 2024

4061 ..तुम भी अपने कपड़े नहीं टटोलते थे

 सादर अभिवादन

तीन पहर तो बीत गये,
बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया,
बस खाली मुट्ठी बाकी  है।

सब कुछ पाया इस जीवन में,
फिर भी इच्छाएं बाकी हैं
दुनिया से हमने क्या पाया,
यह लेखा-जोखा बहुत हुआ,
 इस जग ने हमसे क्या पाया,
बस ये गणनाएं बाकी हैं।
समय रहते अपना घर बनालें

आज की रचनाएँ



चलाती उंगली पकड़ पांव पांव,
जुबां को देती शब्द और सुझाव,
शिशु को देती रुचि और चाव,
ताकि उचित हो पोषण और बढ़ाव।



आपके रूटीन का ध्यान रखेगी, खाना-दवा सही वक़्त पर देगी, आपके मनोभाव के अनुरूप 
वह हर काम करेगी, जिससे आपको आनंद आये और जीवन सुचारू रूप से चले। 
बस एक ही काम है कि वह बच्चा नहीं पैदा कर सकती।




साधु ने बताया - "मुझे पता है कि तुम कपटी हो, तुम्हारी नीयत इस हीरे पर खराब थी और 
तुम इसे हर रात अंधेरे में चोरी करने का प्रयास करते थे। इसलिए पिछले दो रातों से मैं 
अपना यह हीरा तुम्हारे ही कपड़ों में छुपा कर सो जाता था और प्रातः उठते ही तुम्हारे उठने से 
पहले इसे वापस निकाल लेता था।" मेरा ज्ञान यह कहता है कि व्यक्ति अपने भीतर नई झांकता, 
नहीं ढूंढता। दूसरे में ही सब अवगुण तथा दोष देखता है। तुम भी अपने कपड़े नहीं टटोलते थे।"





मां की हर सीख याद है मुझे। हर समस्या का हल उन्हे, उनकी बातों को याद करते हल करती हूं। 
हर पल उन्हे महसूस करती हूं। अब तो आईने में भी माथे पर पड़ती लकीरों में वो दिखाई देने लगी है ।

सब कहते हैं मैं मां सी हूं। बहुत कोशिश करती हूं, कि मां जैसी बनूं। लेकिन नही बन सकती 



कल की कल
सादर

5 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय यशोदा मेम,
    मेरी लिखी रचना को "नारी शक्ति अनंत अथाह" को इस गरिमामय मंच में शामिल करने हेतु बहुत धन्यवाद ।
    सभी संकलित रचनाएं बहुत ही उम्दा है , सभी आदरणीय को बहुत बधाइयां । सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी रचनाएं एक से बढ़कर हैं। सुंदर रचनाओं का सुंदर संकलन और इसमें मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार प्रस्तुतीकरण आद. जसोदा जी

    जवाब देंहटाएं

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