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रविवार, 17 मार्च 2024

4068 ...आचार संहिता लागू आहे

 सादर अभिवादन

आज हो गई घोषणा
कुछ चुनावों की और
साथ-साथ आचार संहिता की भी

सीजन भी है
समय भी है
और साधन भी है
अचार डालिए ,,,,  आचार संहिता का..और
आम नीबू और आंवला
सारा कुछ मौजूद है
सहायक बच्चे भी हैं
सो करें शुभारम्भ.....अचार युद्ध का
आज की रचनाएँ



कोई बात नहीं…,
अपनी हैं , अपनी ही रहेंगी
मुझ में रम कर देती हैं
मुझको सुकून..,
जिस दिन ले लेंगी अपना रूप
सबको अपनापन देंगी





मार्ग हैं पगडंडियां सड़के भी हैं,
कौन राही किस डगर जाता कहाँ?
हाथ पकड़े अंक भरते पीठ धारे,
हैं दिखे क्या मंजिलों के नव निशाँ।
चाल चलकर चर चलाना चाल चलन,
है जरूरी समय के पांवों से चलना॥






मार्च में न ठण्ड होती है, न गर्मी,
न रज़ाई चाहिए, न ए.सी.,
न बरसात होती है,
न पसीना बहता है,
लिखने का मूड बनता है,
लिखना सस्ता भी पड़ता है.






वो धुन भंवरों ने है चुराई
जाने कैसे वो धुन
यूं बारिशों में खनखनाई
जाने कैसे इस हवा में सुर छिपे है
बूंदों में स्वर बुने है बहारें बोलती है
किनारे डोलती है





मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।

जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे से चुपचाप निकल जाने का मन करता है।कई बार तो साफ हाथ भी जोड़ दिए हैं ।खून के रिश्ते ही नहीं संभलते तो मुँहबोले रिश्तों का ढोल कौन गले में डाले ?



कल की कल
सादर

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात!
    सुंदर रचनाओं से परिपूर्ण पठनीय अंक।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत आभार। सभी रचनाकारों को बधाई💐👏

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर सूत्र संकलन में सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय तल से हार्दिक आभार । सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई । सादर नमस्कार !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर अंक। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं

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