।।प्रातःवंदन।।
"प्रात की किरणें कोमल प्यारी।
जहाँ तहाँ फलती तरु तरु पर
दिखलाती छबि न्यारी।
जब आलोकित करती हैं
अवनी कर प्रकृति सँवारी।"
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
कहें अनकहे शब्दों को ढूंढने की कोशिश में आज शामिल हैं,
ठेठ पहाड़ी से बुलंद आवाज..✍️
अब सीता की बारी है...
कहाँ त्रेता द्वापर के बंधन मे
बंधने वाली ये नारी है
कल युद्ध लड़ा था श्रीराम ने
अब सीता की बारी ..
✨️
नीली नीली सी आंखें ,
गीली गीली सी आंखें ,
निकली जैसे समंदर में नहाके ।
✨️
कर दें न क़त्ल ख़ुद ही ख़्वाबों का ख़ंजरों से
डरने लगे हैं हम तो अपने ही बाज़ुओं से..
ये शक्ल भी किसी दिन हो जाएगी मुकम्मल
ख़ुद को तराशते हैं हम रोज छेनियों से..
✨️
सहज-अनुभूति!
निमंत्रण पर अवश्य आओगे,
दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था,
वंशानुगत न आए तो क्या हुआ,
✨️
अनगिनत पहाड़ ऐसे हैं
जो मेरी कल्पनाओं में भी समा न पाये,
असंख्य नदियों की जलधाराओं के
धुंध के तिलिस्म से वंचित हूँ;
बीहड़ों, काननों की कच्ची गंध,
चिडियों, फूलों ,तितलियों
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️
आज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार, अन्य रचनाकारों को भी बधाई, सबकी रचनाये बहुत अद्भुत हैं 🙏
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक रचना👌👌
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 💐💐
बहुत सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं का बढ़िया संकलन दी। मेरी रचना शामिल करने के लिए अत्यंत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंसादर।
आदरणीय मेम , मेरी रचना " जुदा है उसकी अदा" को इस बेहतरीन मंच में स्थान देने हेतु बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंइस मंच की सभी संकलित रचनाएं बहुत उम्दा है , सभी आदरणीय की बहुत बधाइयां ।
सादर ।
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर