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बुधवार, 20 मार्च 2024

4071..फगुनाहट मिल गई अचानक

      


आज सुबह
फगुनहट मिल गई अचानक
कनखियों से मुस्काई और बोली – 'ए – ए - ए-
कुछ ठहरो, तब बढ़ो आगे
अभी-अभी ताल में नहाई है किशोरी धरती
और बेपरदा बैठी
धूप में सुखा रही है
लक-दक पीली ओढ़नी
सरसों के खेत में
उधर बौराने लगे हैं आम
चम्पा का बरन और गोरा हो आया गदरा गया है अंग-अंग कलियों का..
सुरेश पंत


लिजिए फगुनाहट की आहट...   ✍️


      सहर को गुल पहनते हैँ,वही शबनम का पैराहन।
✨️





चलो एक नयीं शुरुवात करें,
✨️


“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने कहा।
✨️


सब को लगता है वो सही है 


धुआं चिलम चिता और चिंता

आंखों से कब सब नदी बही है
✨️
लगता है
जैसे इस मतलबी दुनिया में
अपने भूत
और भविष्य को भूल कर
सिर्फ वर्तमान को ढो रहे हैं
गहरी नींद
।।इति शम।। 
धन्यवाद 
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️

3 टिप्‍पणियां:

  1. आज सुबह
    फगुनहट मिल गई अचानक
    कनखियों से मुस्काई और बोली – 'ए – ए - ए-
    कुछ ठहरो, तब बढ़ो आगे
    बेहतरीन अंक
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन अंक, सुंदर रचनाएँ।

    जवाब देंहटाएं

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