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शनिवार, 23 मार्च 2024

4074 ....होली रे रिसिया बरजोरी रे लिया

 सादर अभिवादन

बस दो दिन और
कुछ भी गालो
कुछ भी खालो
फिर या तो सेंवई मिलेगी
या फिर लाइची दाना

आज की रचनाएं




घर मेरा छोड़ के मत जाना ।
दाना चुगने हर दिन आना ।
प्याऊ जान जल पीने आना ।
नीड़ निडर हो यहीं बनाना ।




ये उलझी उलझी सांसों का
बे मतलबी सी बातों का
हाथों में मेरे, हाथों का
कांधो पे ढलके बालों का
मेरी ख्वाहिशों का



कविता
मन की चारदीवारी से निकला
इमोशनल कंटेंट
...
कविता
एक परिभाषा
‘टेम्पोरेरी’ की



कोई भी इंसान जब कभी भी किसी अन्य दुःखी इंसान के लिए पनपी सहानुभूति के दायरे को फाँद कर समानुभूति के दामन में समाता है, तो .. उसकी भी मनोदशा .. कुछ-कुछ रेशमा जैसी ही हो जाती है। कहते हैं कि .. बहुत ही उत्तम प्रारब्ध होता है उनलोगों का .. जिनके लिए हर परिस्थिति में हर पल किसी अपने या पराए की समानुभूति की प्रतीति होती हैं .. शायद ...




जो दलीलें हों झूठी, और इल्ज़ाम भी
सच के साहस के आगे टिकेंगे नहीं

दिल के रिश्तों को जोड़ा फिर तोड़ा, मगर
खून के हैं जो रिश्ते , मिटेंगे नहीं




बनारस एवं ब्रज, मथुरा और वृंदावन क्षेत्र में अधिक लोकप्रिय है। रसिया ‘रस की खान’ कहे जाते हैं। इसमें लोकमानस अपने जीवन के सुख-दुख, हर्ष-विषाद, उमंग और उल्लास की कथा का वर्णन अधिकतर रसिया शैली में ही व्यक्त किया जाता है। यह शैली लोकशैली के अंतर्गत मानी जाती है। रसिया शैली को होली के समय गाया जाता है। एक प्रचलित लोकगीत रसिया शैली में इस प्रकार से है:

“आज बिरज में होली रे रसिया।
होली रे रिसिया बरजोरी रे लिया।”


कल फिर
सादर

3 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. हमारी बदरंग-सी बतकही को अपनी प्रस्तुति की सतरंगी चुनरी में पिरोने के लिए .. बस यूँ ही ...

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सखी !
    रंगपर्व होली की असीम शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं

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