मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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बहना नदी का उल्टे पाँव,
दूर तक भँवर, दीखते नहीं नाव।
डूबती सभ्यताओं की
साँसों में भर रही है रेत,
दलदली किनारों पर
सर्प,वृश्चिक,मगरों से भेंट,
काई लगी कछार पर
फिसले ही जा रहे गाँव
कैसे बचे प्राण,दीखते नहीं नाव।
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प्रेम केवल ख़ुद को ही देता है और ख़ुद से ही पाता है। प्रेम किसी पर अधिकार नहीं जमाता, न ही किसी के अधिकार को स्वीकार करता है। प्रेम के लिए तो प्रेम का होना ही बहुत है। -ख़लील जिब्रान
आइये आज की रचनाएं पढ़ते हैं-
प्रेम केवल ख़ुद को ही देता है और ख़ुद से ही पाता है। प्रेम किसी पर अधिकार नहीं जमाता, न ही किसी के अधिकार को स्वीकार करता है। प्रेम के लिए तो प्रेम का होना ही बहुत है। -ख़लील जिब्रान
तीन तार की चाशनी
था मन मेरा
चाशनी ..
एक तार की,
जो बन गयी
ना जाने कब ..
ताप में तेरे प्रेम के,
एक से दो ..
दो से तीन ..
हाँ .. हाँ .. तीन ..
तीन तार की चाशनी
और ..
जम-सी गयी,
थम-सी गयी ..
मैं बताशे-सी
बाँहों में तेरे प्रियवर ...
सखि!घर आयो कान्हा...
आया था बसंत जब, डाली-डाली हरियाली थी,
आकर कोयल आंगन में तब, गीत सुमंगल गाती थी।
फूल खिलते बहारों में, सबके ही मन लुभाती थी,
प्रिय बिनु यह सब तनिक दिल को न भाती थी।।
आया बसंत लौट के, फूलों के रंग में मुझे डुबाओ री।
सखि! घर आयो कान्हा मेरे, खुशी के फाग सुनाओ री।।
गहराई में जा सागर के
बादल नहीं थके अब भी
कब से पानी टपक रहा ,
आसमान की चादर में
हर सुराख़ भरवाना है !
सूख गये पोखर-सरवर
दिल धरती का अब भी नम,
उसके आँचल से लग फिर
जग की प्यास बुझाना है !
अभी बाकी है...
इश्क हम बहुत करते रहे उनसे यूं तो जिंदगी भर,
उम्र निकल गई पर, प्यार का इजहार अभी बाकी है।
ताउम्र करते रहे इंतजार मन में यही उम्मीद लिए,
कि इज़हार हो ना हो, पर इनकार अभी बाकी है
फूलों से रोगों का इलाज
इसकी गंध कस्तूरी-जैसी मादक होती है। इसके पुष्प दुर्गन्धनाशक मदनोन्मादक हैं। इसका तेल उत्तेजक श्वास विकार में लाभकारी है। सिरदर्द और गठिया में इसका इत्र उपयोगी है। इसकी मंजरी का उपयोग पानी में उबालकर कुष्ठ, चेचक, खुजली, हृदय रोगों में स्नान करके किया जा सकता है। इसका अर्क पानी में डालकर पीने से सिरदर्द तथा थकान दूर होती है। बुखार में एक बूँद देने से पसीना बाहर आता है। इत्र की दो बूँद कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है।
आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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बेहतरीन वासंतिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार...
सादर..
जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका हमारी इस बतकही को अपनी प्रस्तुति में स्थान प्रदान करने के लिए ...
जवाब देंहटाएंसाथ ही आपकी आज की अपनी भूमिका में चंद चिन्तनीय पंक्तियों के साथ-साथ ख़लील ज़िब्रान की प्रेम-परिभाषा को उद्धरित करने हेतु भी ...
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! सारगर्भित भूमिका और पठनीय रचनाएँ, आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं का बेहतरीन संकलन।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।