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आधुनिक हिंदी साहित्य के स्वरूप में क्रमशः होने वाले परिवर्तन को महसूस किया जा सकता है।
प्रत्येक लेखक के लेखन की अपनी विशिष्टता होती है। कोई नियमित नियमपूर्वक लिखता है और कोई मन में भावों की उपजने की प्रतीक्षा में या परिस्थितिवश ,सुविधानुसार लिखता है। सबके लिखने में अपनी शब्दावली होती है,शैली होती है।
सभी अपने तरीके से रचनाकर्म कर सकते हैं अभिव्यक्ति का तरीका सही या गलत नहीं होता है उसमें निहित भावना पाठक के विचारों को सही गलत में बाँटती है। रचनात्मकता कभी व्यर्थ नहीं होती है।
एक सवाल मन का...
क्या वर्तमान में स्थापित साहित्यिक विद्वानों और नवोदित प्रतिभाशाली रचनाकारों के बीच तालमेल की उम्मीद की जा सकती ? जिससे साहित्य को और प्रबुद्ध और समृद्ध बनाया जा सके। जिससे नये रचनाकारों की प्रतिभा को स्थापित साहित्यकारों का मार्गदर्शन मिल सकेगा।
क्या नवोदित साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी साहित्यिक त्रुटियों का उपहास उड़ाने के बजाय, गरिमा को ध्यान में रखकर विषय के जानकार साहित्यकार उनकी गलतियों को अभिवावक की तरह बताकर साहित्य की उन्नति में अपना बहुमूल्य योगदान देकर भविष्य के लिए उदाहरण बन सकते है?
★★★★★
आइये पढ़ते हैं आज की रचनाएँ-
अपर्ण करते स्व जीवन
अधजगी, उनींदी थी रातें मेरे बिन!
किसी काम के, न थे आसमाँ के सितारे,
हजारों थे वो, मगर न थे मुझसे प्यारे,
दूर थे हम, उनकी जेहन में जरूर थे हम!
क़सम ले ली है अब हमने, नहीं देंगे दुबारा दिल
अजब व्यापार है दिल का, ग़ज़ब का खेल है ये भी
तुम्हारा दिल तुम्हारा दिल, हमारा दिल तुम्हारा दिल
★★★★★★★
मुखौटों के ऊपर मुखौटा
समय
लगता है
पढ़ने वाले
पढ़ने के
क्रम
जहाँ
क्रम होना
उतना
नदीसूत्र:बेतवा नदी का राख से घुटता दम
★★★★★★
आज का यह अंक आपको
कैसा लगा?
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया
उत्साहवर्धन करती है।
हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए
कल का अंक पढ़ना न भूले कल आ रही हैं
विभा दी विशेष प्रस्तुति के साथ।
#श्वेता सिन्हा
★
व्वाहहहह...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया...
आभार..
सादर...
वाह!!श्वेता ,भूमिका बहुत अच्छी और सही लगी !!आप जैसे उत्तम कोटि के व्यक्तित्व का साथ हो तो बात ही क्या !प्रस्तुति लाजवाब है !!
जवाब देंहटाएंक्या नवोदित रचनाकार अपनी रचना की समीक्षा को सहज सरल स्वीकार कर पाते हैं... या लेखन पर वाहवाही ही एक मात्र उद्देश्य है उनका...
जवाब देंहटाएंउम्दा भूमिका के साथ सराहनीय प्रस्तुतीकरण
सवाल और भी हैं। सही प्रश्न उठाया है। आशा करें समय के पास कभी जवाब भी होगा। ना भीड़ सही है ना ही कतारें। प्रश्न हैं तो उठाने भी चाहिये। बहुत सुन्दर प्रस्तुति और साथ में आभार भी श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर प्रतुति।
जवाब देंहटाएंअपने बहुत अच्छे सवाल उठाए हैं यही मैं खुद सोच रहा था विद्धवान और आम इंसान के बीच अंतर बढ़ता जा रहा हैं जिससे आम जुबान का रंग कविता पर नही दिख रहा।ये खाई पाटनी पड़ेगी।तभी साहित्य को उचित स्थान मिलेगा।
सादर आभार
श्वेता आज आपकी भुमिका में साहित्य और साहित्यकारों के बारे में सारगर्भित तथ्य है, साहित्य का स्वरूप बदल रहा है , और रचनाकारों को अभिव्यक्ति के नये रास्ते मिल रहें हैं,ऐसे में विस्थापित विशिष्ट साहित्यकारों का दायित्व बढ़ जाता है कि वो नये रचनाकारों को सही दिशा निर्देश दें, उन्हें सहयोग करें जिससे हिंदी का विकास सकारात्मक होगा और समृद्ध साहित्य का निर्माण जिससे राष्ट्र को स्थायित्व साहित्य मिलेगा और भाषा परिमार्जित रूप में साकार होगी।
जवाब देंहटाएंबहुत दमदार भूमिका के साथ सुंदर चर्चा अंक ,सभी सूत्र शानदार,सभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंस्थान देने के लिए सादर आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक्स
जवाब देंहटाएंSorturl.co
जवाब देंहटाएंGood and Useful Artical
जवाब देंहटाएंSorturl
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