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रविवार, 22 सितंबर 2019

1528....तंदरुस्ती है बड़ी नियामत


जय मां हाटेशवरी.....
श्राद्धपक्ष अपने पूरवजों को स्मर्ण करने का समय होता है.....
हम आज जहां है, जो कुछ भी हैं.....
अपने पूरवजों के कारण ही हैं.....
कुछ तथा कथित ज्ञानी केवल.....
हमारी प्राचीन  परंप्राओं का विरोध ही करते हैं.....
भले ही हमारे पूरवजों की  मृत आत्माएं त्रिप्त न भी होती हों.....
पर कई  जिवित भूखों की आत्माएं स्वादिष्ट भोजन पाकर  उनके नाम पर त्रिप्त हो जाती हैं.....
  इसमे बुरा भी क्या है......
आज कल अधिकांश लोग निर्धनों को....
 या अनाथ आश्रमों में ही श्राद का भोजन देने लगे हैं.....
कुछ तथा कथित ज्ञानी केवल.....
हमारी प्राचीन  परंप्राओं का विरोध ही करते हैं.....
मैं सोचता हूं कि......
श्राद्धपक्ष का प्रारंभ परोपकार करने के उदेश्य से ही हुआ होगा.....
अब पेश है......
आज की चर्चा......
इस संदेशमयी रचना से.....

 
तंदरुस्ती है बड़ी नियामत
 सब मिल इतना ध्यान करें कि
कोई भी आयोजन हो।
उसमें केवल पोषक तत्वों वाला
ही बस भोजन हो।
पौष्टिक आहार हो सबका
यह अभियान चलाते हैं।

अग्नि मेरा गीत है
मैं पराकाष्ठा हूं विलग की
नेत्र पर दृष्टि समेटे
खोलने को हों ज्यों आतुर
भस्म दो
तन पर मलूं मैं
शीत मेरा ताप हो...
संवाद (माँ-बेटे की)
तू चाँद तोड़कर भी
कदमो में मेरे लाया
फिर भी न तुझको मैं तो
सच्चा कहूं कभी भी
क्योंकि हमेशा तुमने
मेरा है दिल दुखाया
मैं चाहती थी पोता
तुमने है पोती लाया
मेरे भावना थी दिल में
उसमें है चोट आया
रूह से सजदा
रात भर रोई नरगिस सिसक कर बेनूरी पर अपने
निकल के ऐ आफ़ताब ना अश्कों में ख़लल डालो।

डूबती कश्तियां कैसे, साहिल पे आ ठहरी धीरे से
भूल भी जाओ ये सब ना तूफ़ानों में ख़लल डालो।


जाने चले जाते हैं कहाँ .....
     शायद मृतक आत्माओं के प्रति हमारी सच्ची श्रधांजलि ही श्राद्ध हैं। सिर्फ विधि -विधान का अनुसरण नहीं बल्कि हर वो कार्य जिसमे परहित छुपा हो और पूरी श्रद्धा
के साथ की गयी हो ,अपने पितरो के प्रति आदर ,सम्मान और प्यार के भावना के साथ की गई हो ,अपने पितरो के सिर्फ सतकर्मो को याद करके की गई हो वही सच्ची श्रधांजलि
हैं।
       शायद ये श्राद्धपक्ष सिर्फ हमे हमारे पितरो और प्रियेजनों की याद दिलाने ही नहीं आता बल्कि हमे ये याद दिलाने के लिए भी आता हैं कि -एक दिन हमे भी इस
जहां को छोड़ उस अलौकिक जहां में जाना हैं जहाँ साथ कोई नहीं होगा  सिर्फ अपने कर्म ही साथ जायेगे और पीछे छोड़ जायेगे अपनी अच्छे कर्मो की दांस्ता और प्यारी
सी यादे जो हमारे प्रिये जनो के दिलो में हमारे लिए हमेशा जिन्दा रहेगी और वो अच्छी यादें हमारे वर्तमान व्यक्तित्व पर ही निर्भर करेगी।
     गलत कहते हैं लोग -" खाली हाथ आये थे हम ,खाली हाथ जायेगे " ना हम खाली हाथ आये हैं ना खाली जायेगे। हम सब जायेगे तो साथ अपने कर्मो का पिटारा लेकर जायेगे
और जब भी फिर इस जहां में वापस आना होगा तो उन्ही कर्मो के हिसाब से अपने हाथो में अपने भाग्य की लकीरे ले कर आयेगे। हां ,भौतिक सुख सुविधा के सामान और अपने
प्रिये यही पीछे छूट जायेगे।

धन्यवाद।
                      



चन्द सवाल है जो चीखते रह गये ...
सब कुछ ख़ामोशी मे दबकर तो रह गया
मगर चंद सवाल है ,जो चीखते रह  गये ।

हर बात गहरे यकीन का अहसास दिलाती है
पर वो नही कभी कह पाये जो तुम कह गये ।




जश्न
उसे तुम्हारे सजदे में
सबसे सुन्दर, सबसे मधुर,
सबसे सरस और सबसे अनूठे राग में
एक अनुपम गीत जो सुनाना है
तुम्हारी जीत के उपलक्ष्य में !
जीत का यह जश्न तुम्हें
मुबारक हो !






10 टिप्‍पणियां:

  1. वैसे तो शास्त्रों में पुरुषों को ही पिंडदान व तर्पण का अधिकार दिया गया है , परन्तु परम्परा के अनुसार हमारे विन्ध्य क्षेत्र में महिलायें भी तर्पण और पिंडदान करती हैं । माता सीता के तर्पण स्थली मीरजापुर के विन्ध्य क्षेत्र में मातृनवमी के दिन महिलायें अपने पितरों को तर्पण करती हैं ।ऐसी मान्यता  है  कि सीता कुंड पर माता सीता  ने वनवास के दौरान तर्पण किया था। तभी से यह परम्परा आज तक चली आ रही है ।
    भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ के आदेश पर अपने पिता राजा दशरथ को स्वर्ग प्राप्ति के लिए गया के फाल्गू नदी पर पिंडदान के लिए प्रस्थान कर प्रथम पिंडदान अयोध्या में सरयू तट पर, दूसरा प्रयाग के भारद्वाज  आश्रम, तीसरा विन्ध्य के राम गया घाट पर और चौथा काशी के पिशाचमोचन पार किया । उसी समय माता सीता ने सीता कुंड का सृजन कर पुरखों का तर्पण मीरजापुर के विन्ध्याचल की  पहाड़ी पर किया | आज भी उसी परम्परा  को जीवित बनाये महिलाएं पितरों का तर्पण करती हैं । वैसे भी सनातन संस्कृति में नारी-वर्ग को विशेष स्थान दिया गया है । यह विंध्य क्षेत्र शक्ति का ही क्षेत्र है।
    हाँ , मेरा अपना मानना है कि इस पितृपक्ष में हम न सिर्फ अपने पूर्वजों से भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं, वरन् पशु- पक्षी के प्रति भी उदारता का परिचय देते हैं। उन्हें भोजन कराने के लिये प्रेम से पुकारते हैं।
    हमेशा की तरह आपकी प्रस्तुति और शीर्ष पर संबोधन शब्द मन को भाता है।
    सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन प्रस्तुति..
    आभार आपका
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन प्रस्तुति!
    बहुत सटीक और सहज सी भुमिका ,सभी रचनाएं बहुत शानदार,सभी रचनाकारों को बधाई।मेरी रचना को पांच लिंक में शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन प्रस्तुति ,मेरी रचना को शामिल करने के लिए सहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्दा लिंकों का संकलन शानदार प्रस्तुतिकरण...

    जवाब देंहटाएं

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