शीर्षक पंक्ति: आदरणीय दिगंबर नासवा जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक की रचनाएँ प्रस्तुत हैं-
अलग ही है पहचान तुम्हारी
बाल सुलभ चंचलता नयनों में
यही अदा प्यारी है मुझको
मैं हो जाऊं तुम पर न्योछावर।
सुन चहल-कदमी गुज़रती उम्र की,
वक़्त की कुछ मान कर अब तो सुधर.
रात के लम्हे गुज़रते ही नहीं,
दिन गुज़र जाता है खुद से बात कर.
गुरु राम राय जी ने कहा कि आप ग्रन्थ साहिब को दुबारा देखें. दुबारा देखने पर मुसलमान शब्द की जगह बेईमान शब्द पाया गया जो कि एक चमत्कार था. औरंगजेब की तसल्ली हुई और उसने गुरु राम राय जी को 'हिन्दू फ़क़ीर' और 'कामिल फ़क़ीर' का दर्जा दे दिया. पर बाबा राम राय जी के इस चमत्कार से उनके पिता गुरु हर राय जी सख्त नाराज़ हुए. गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी के कारण नाराज़ पिता ने पुत्र को गद्दी से वंचित कर दिया और कह दिया कि तुम्हारा यहां रहना संभव नहीं है.
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव


बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर..
'देहरादून' को शामिल करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंक ।
जवाब देंहटाएंसंक्षिप्त, सुन्दर, सार्थक सूत्रों से सुसज्जित बढ़िया हलचल आज की ! मेरी लघुकथा को स्थान दिया आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंNice ànk to dqy
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां संकलन
जवाब देंहटाएं