शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
उसी के कदम चूमें सफलता ने
जिसने असफल से भय न पाला
बार बार गिर गिर कर सम्हला
यही सही किया उसने।
रजनी कर श्रृंगार निकलती
रुनझुन पायल झनकाती
श्याम मोहिनी वो सुकुमारी
नीले कंगन खनकाती
भ्रमण करे जब निशा सुंदरी
तारक दल जैसे पहरी है।।
जब-जब तुम छूट गईं अकेले
हमने पकड़ी उँगली ,इक आस जगाई
हम रहीं तुम्हारे साथ चन्दा ,सूरज ,तारे महकाने
तुम अपनी कल्पना शक्ति के रँग भरतीं
जोगिया मुझसे मिलना
जब मिले देह काशी
घाट मणिकर्णिका
क्लांत पथ कोस चौरासी
मां होती है नाराज नहीं,तीखी उसकी आवाज नहीं।
मातृत्व का कोई ताज नहीं, मां की लोरी में साज नहीं।
मां के चरणों की धूली से,मस्तक का चंदन बन जाए।
हम मां का कहना....
काला होय धंधा धन, दोनों रहते गोय।
जीवन सदा सुखी रहे, सत्ता कंधा होय।।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजीवन सदा सुखी रहे, सत्ता कंधा होय
आभार
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति आज के अंक की |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी |
आज के पाँच लिंक्स में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सारगर्भित रचनाओं का संकलन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां संकलन
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