शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अमृता तन्मय जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
दुनिया से मिलकर चलना
सिखा देता है व्यापार,
मुनाफ़ा प्रलोभन वक़्त
बनते कारोबार का सार।
-रवीन्द्र
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
बीती बातों को बारम्बार याद करना
उन्हें विस्मृत न होने देना स्मृतिपटल से
दिमाग को व्यस्त रखने के लिए
यह तरीका भी काफी है
कवि के स्वर पन्नों पर.... कुसुम कोठारी
कविता जो रुक जाये तो फिर
कल्पक कब जीवित रहता
रुकी लेखनी द्वंद हृदय में
फिर कल्पना कौन कहता
मौन गूँजते मन आँगन में
कंपित से भयभीत हुये।।
रात बीत गई तब पिया जी घर आए.... अमृता तन्मय
उधर पिया जी बैठे मुँह लटकाए , गाल फुलाये
रह- रह कर बस हमें ही जलाये , और अपनी चलाये
संझावती की इस बेला में थकान ले रही कमरतोड़ अँगराई
इसी आपाधापी में तो हमने सारी उमरिया गँवाई
विचारों का क्रम.... अरुण चंद्र रॉय
प्रेम, घृणा
अन्धकार, प्रकाश
स्वतंत्रता परतंत्रता
भी कुछ और नहीं बल्कि है
विचारों की अभिव्यक्ति।
मेरी आन
बान
शान
है
तू
मेरे
तिरंगे
की
पहचान
है
तू
दुनिया सैनिक कहती है तुझे
पर मेरे दिल में तो तू
मेरे हर धरकन का एहसास है तू।
कौन हूँ मैं ?.... अनीता सैनी
ख़ूब मेहनत करती हूँ
कि पिता-पति के लिए ख़रीद सकूँ
मान-सम्मान और स्वाभिमान।
परंतु फिर अगले ही पल
स्वयं से यही पूछती हूँ
कौन हूँ मैं ?
आज बस यहीं तक।
कल अपनी प्रस्तुति के साथ होंगीं आदरणीया श्वेता सिन्हा जी।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
दुनिया से मिलकर चलना
जवाब देंहटाएंसिखा देता है व्यापार,
मुनाफ़ा प्रलोभन वक़्त
बनते कारोबार का सार
–वाहः सच्चाई
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
सुंदर प्रवाहमय लोकप्रिय हलचल के लिए मधुर भावपूर्ण आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संकलन।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति सुंदर लिंक ,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
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जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं का लिंक। बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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