सादर अभिवादन
आज मंच पर अतिथि चर्चा कार के रूप में
उपस्थित हैं आदरणीया अभिलाषा चौहान जी।
आइये आज के अंक का आस्वादन करें।
अतिथि चर्चाकार के रूप में मुझे आज की प्रस्तुति का सौभाग्य प्राप्त हुआ है,मेरे तो भाग्य जाग उठे।
आज की चर्चा का विषय है 'आत्म-रंजन'और शीर्षक पंक्ति भी यही है। प्रतिष्ठित लेखिका आँचल पांडेय की यह रचना मन-मंथन करने पर विवश करती है।
हम कब तक सोते रहेंगे। ब्लॉग जगत भी सोया हुआ है और लोकतंत्र भी।आत्म-रंजन में यही भाव मुखर हुआ है।
मशालें बुझने लगी हैं,
अँधेरे की ताक़त बढ़ने लगी है,
और कर्तव्य-पथ से भटके हुए
ढ़ीठ,आलसी,लापरवाह लोग सो रहे हैं।
सर्वत्र सुस्ती छाई हुई है जो हो रहा है जैसे हो
रहा है,हम उसी में खुश हैं।यथा स्थिति को अपना सौभाग्य मानकर जीने की हमारी प्रवृति ने इस उदासीनता को स्थायी बना दिया है।कभी-कभी कौए की चोंच में अनारकली आ जाती है।उसके भाग्य जाग जाते हैं ।ऐसा ही कुछ हमारे देश का हाल है। आदरणीय गोपेश मोहन जसवाल जी की रचना का आनंद लें-
सुकुल साहब लम्बी चौड़ी हवाईजहाजनुमा गाड़ी में सवार हो कर जब रिश्ता पक्का करने के लिए डॉक्टर मेवालाल शर्मा के गाँव पहुँचे तो उनके पिताश्री अपने होने वाले समधी की शानो-शौकत देख कर सकते में आ गए. मेवालाल के पिताश्री के साथ उनके परम घाघ फूफाश्री भी थे जो कि सुकुल जी के वैभव से उतने प्रभावित नहीं लग रहे थे उन्होंने सुकुल जी के कान में कहा –
लेकिन कितनी भी उदासीनता क्यों न हो ,उम्मीद हमेशा कायम रहती है। स्थितियां बदलेंगी।सत्य का आभास कभी न कभी इंसानी मन में जागरूकता लाएगा।सही और ग़लत में से सही को पहचानने की शक्ति बलवती होगी ।ऐसी ही ओजस्वी लेखनी है आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव की।आइए उनकी रचना का आनंद उठाएं -
तब तक
हमारे हृदय की तरह
गंगा के तट
और सिकुड़ चुके होंगे...
और प्रौढ़ पीढ़ी के लोग
शर्म से निरुत्तर
नज़रें झुकाए खड़े होंगे।
आज के मेरे और पसंदीदा लिंक आदरणीय ज्योति खरे जी की रचना 'शरद का चांद' पुनर्मिलन की आशा मन में संजोए हैं ।वह भी खामोशी को तोड़ने की बात कह रहें हैं -
ख़ामोशी तोड़ो
सजधज के बाहर निकलो
उसी नुक्कड़ पर मिलो
जहाँ कभी बोऐ थे हमने
चांदनी रात में
आँखों से रिश्ते
आँखों का क्या करें,बनी ही हैं ये गुलाबी सपने देखने के लिए।सपने कभी सपने न रहें, साकार हों जाएं ।ऐसी ही सुन्दर भावना से ओतप्रोत है यह रचना। आदरणीया मुदिता जी के ब्लॉग से
मूँदते ही पलक
खिल उठते हैं
गुलाबी फूलों से सपने
मदिर मधुर एहसास
होने का तेरे
उतर आता है
अगली रचना 'आइने का सच' हमें सत्य से रूबरू कराती है।हम खुद से झूठ बोलें और लोगों से झूठ बोलें,पर आईना झूठ नहीं बोलता।यह हमें हमारी वास्तविकता से परिचित कराता है । आदरणीय पुरुषोत्तम जी की रचना से ऐसे ही भाव प्रकट हो रहे हैं-
-सच ही कहता था आईना....
करीब होकर भी, कितना वो अंजाना!
हो पास, जैसे कोई परछाईं,
किरण कोई, छांव लेकर हो आई,
छुईमुई, छूते ही सरमाई,
अपनत्व ये, सच सा लगे कितना,
सच ही कहता था आईना....
कितना वो अंजाना!
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त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
आपकी
- अभिलाषा चौहान
शानदार चयन
जवाब देंहटाएंसारी स्तरीय रचनाएँ चुनी है आपने
आभार
सादर
आदरणीया यशोदा दी सादर प्रणाम आपको और शुभप्रभात
हटाएंये आपका बड़प्पन है कि आपने मुझे इस मंच पर प्रस्तुति का सौभाग्य दिया।आपकी प्रेरणा और सभी साथी विद्वजनों की प्रेरणा से ही ब्लॉग जगत में अपना स्थान बना पाईं हूं ।आज का अंक आपको पसंद आया यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है।सभी रचनाकारों की रचनाएं उत्तम है, उन्हें हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं सादर
वाह!सखी ,खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबेहतरीन संकलन ...
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंउम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबधाई के संग साधुवाद
सहृदय आभार आदरणीया सादर आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं धन्य हुई
हटाएंसुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंउम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत ही सुंदर, बेहतरीन लिंक्स चयन !
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई अभिलाषा जी !
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंमोहक प्रस्तुति, सुंदर लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंप्रथम चर्चा प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई सखी।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंप्रिय अभिलाषा ,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति । सभी लिंक्स पर जाना हुआ । अर्थपूर्ण संकलन प्रस्तुत किया है ।।आभार ।
सहृदय आभार आदरणीया सादर आपकी प्रतिक्रिया ने मेरे प्रयास को सार्थक कर दिया।
जवाब देंहटाएंआदरणीया अभिलाषा जी का 'पाँच लिंकों का आनन्द' पर हार्दिक स्वागत है। आज की शानदार प्रस्तुति के लिए ढेर सारी बधाई। सारगर्भित टिप्पणी के साथ रचना का प्रस्तुतीकरण मनमोहक बन पड़ा है। मुझे शामिल करने हेतु सादर आभार।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया पाकर मैं धन्य हुई आदरणीय।आपका सहृदय आभार सादर
हटाएंप्रिय अभिलाषा जी, जिस मंच ने हमें निरंतर नये पाठकों से जोड़ा और हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।उसी मंच पर भले एक या कुछ बार अतिथि बनकर आना बहुत अच्छा लगता है। यहाँ पहुँच कर हमें अतिथि के रूप में निरंतर अवैतनिक सेवायें दे रहे स्थायी चर्चाकारों की साहित्य के प्रति अखंड निष्ठा का पता चलता है।आपको आज ये सौभाग्य मिला जिसके लिए आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।आत्मरंजन का ये आनन्द बहुत अनुपम है। सभी उत्तम रचनाओं का चयन किया है आपने।साथ में प्रिय आँचल के ब्लॉग के नाम पर आज की प्रस्तुति अपने आप में बहुत प्रेरक है।प्रिय आँचल एक सजग युवा रचनाकार हैं जिनकी पैनी दृष्टि देश और समाज की सभी विसंगतियों पर रहती है।उनके लेखन में धार है।और बहुत दिन बाद रवींद्र जी के ब्लॉग पर आपकी प्रस्तुति के माध्यम से पहुँच पा रही हूँ क्योंकि फॉलो करने के बावजूद उनकी रचनायें मेरी reading लिस्ट में नहीं आ पाती।मुदिता जी , ज्योति सर और पुरुषोत्तम जी अपने आप में भावनाओं के कुशल चितेरे हैं।गोपेश जी की लेखनी सारे ब्लॉग जगत को मुस्कुराने पर विवश कर देती है।आज के सम्मिलित इन सभी रचनाकारों को सादर नमन। आपका एक बार फिर से हार्दिक आभार और अभिनंदन 🙏♥️
जवाब देंहटाएंऔर हाँ हर रचना के साथ संलग्न भावपूर्ण और सार्थक समीक्षा आपकी उत्तम साहित्यिक समझ की परिचायक है 👌👌👌🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु बहन मैंने तो आदरणीया यशोदा जी से ही ब्लॉग लेखन की प्रेरणा पाई।मेरी पहली रचना 'मंजर' को इस प्रतिष्ठित मंच ने चयनित कर मुझे लेखन के लिए प्रेरित किया । लेकिन आज की इस प्रस्तुति को लेकर मैं बहुत भयभीत थी।पता नहीं मैं सबकी अपेक्षाओं पर खरी उतर पाऊंगी या नहीं पर आप सबकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया ने मेरे प्रयास को सार्थक कर दिया।ये आप लोगों के साथ का ही प्रभाव है कि हम ब्लॉग लेखन में अभी सक्रिय हैं।आपका हृदय से आभार सादर
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंgreetings from malaysia
let's be friend