||सादर नमस्कार||
बाज़ार से घर लौटते वक़्त बिना हेलमेट पहने आठ-दस,
नौंवी-दशमीं कक्षा के स्कूली बच्चों को एक-दूसरे से होड़ करते,
गति की परवाह किये बिना रफ़्तार से स्कूटी और बाईक चलाते,हुल्लड़ मचाते देखकर मन विचलित हो गया। जाने किस प्रेम से वशीभूत होकर अभिभावक बच्चों को ऐसी दुर्घटना का सामान पकड़ा देते है, फिर अनहोनी होने पर ज़िंदगीभर रोते हैं। प्रशासन और नियति को दोष देने से अच्छा है क्यूँ न पहले सी सतर्क हो जायें।देशभर में प्रतिदिन होनेवाली सड़क दुर्घटनाओं में नाबालिग चालकों का योगदान भी करीब 4% है। सभी अभिभावकों से विनम्र अनुरोध है कृपया ऐसी जरुरी बातों पर जागरुक रहें।
चलिए अब आज की रचनाओं का आस्वादन करते हैं
आस्था के परदे में छुपे मलिन सत्य को उकेरती मर्मस्पर्शी रचना आदरणीय ज्योति खरे जी की लेखनी से
गंगा
पापियों के पाप नहीं
पापियों को बहा ले जाओ
एकाध बार अपने में ही डूबकर
स्वयं पवित्र हो जाओ---
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कुछ खूबसूरत याद हृदय के कभी नहीं मिटते एक बेहद सुंदर उद्गार आदरणीया अनुपमा त्रिपाठी जी की कलम से
बुन लेता है
अभिरामिक शब्दों को
आमंजु अभिधा में ऐसे ,
जैसे तुम्हारी कविता
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ज़िंदगी के हर रंग को अपने लाजवाब शब्द देकर बेहतरीन ग़ज़ल गढ़ते आदरणीय राजेश कुमार राय सर की कलम से
बरसती है जो रहमत आसमां से उपर वाले की
कहीं पर द़िल पिघलता है कहीं पत्थर पिघलता है
हुई जब शाम शम्मा जल गयी अब देख लो मंज़र
हजारों आशिकों का कारवाँ उस पर मचलता है
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इशारे के बाबत मुझे अब लगा
किया तो उसे पर किया देर से
वो दिल तक मेरे क्यूँ न पहुँचा अभी
है रस्ता बुरा या चला देर से
एक बेहद सुंदर सारगर्भित कविता पढ़िये
आदरणीय अशोक व्यास जी की कलम से
आहटों की टोह लेता
राह में
कब से डटा हूँ
रुक गया था
बढ़ते बढ़ते
रुकते रुकते
गंगा हूँ
शिव की जटा हूँ
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चलते- चलते मुँह में राम बगल में छुरी की कहावत को सुंदर शब्द में उकेरती आदरणीया कुसुम दी की रचना यशोदा दी की धरोहर से
सवाल बेशुमार लिये बैठें है...
हंसते हुए चहरे वाले दिल लहुलुहान लिये बैठे हैं
एक भी जवाब नही, सवाल बेशुमार लिये बैठें हैं।
टूटी कश्ती वाले हौसलों की पतवार लिये बैठे हैं
डूबने से डरने वाले साहिल पर नाव लिये बैठे हैं।
डॉ. सुशील कुमार जी जोशी
ताजी खबरें....
चेहरे कभी
नहीं बताते
हैं शराफत
बहुत ज्यादा
शरीफ होते हैं
बहुत से लोग
दिमाग घूम
जाता है
‘उलूक’ का
कई बार
उसकी पकाई
हुई रोटियाँ
अपने नाम से
शराफत के
साथ जब
उस के सामने
से ही सेंक
लेते हैं लोग ।
आज के लिए बस इतना ही कल मिलिए विभा दी से
और बवाल पर बवाल जारी है
चार पंक्तियाँ मेरी भी गौर फ़रमाइयेगा
खुल के कह दी बात दिल की तो बवाल
लिख दिये जो ख़्वाब दिल के तो बवाल
इधर-उधर से ढ़ूँढते हो रोज़ क़िस्से इश्क़ के
हमने लफ़्ज़ों में बयां की मोहब्बत तो बवाल
आपसभी के सुझावों की अभिलाषा में
श्वेता
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक संयोजन
सब छीन लिया
बच्चों सा उनका बचपन मत छीनिए
जीने दीजिए सुरक्षित
पैदा कीजिए सुरक्षा की भावनाएँ
आभार
सादर
बहुत शानदार प्रस्तुति करण उम्दा लिंक संकलन
जवाब देंहटाएंबच्चों की आजादी और मस्ती के नाम पर ऐसी दुर्घटनाएं
चिन्तनीय हैं....
विचारणीय भूमिका....
बच्चों के प्रति लापरवाही है बिना लाइसेंस बने बाईक चलाने की अनुमति देना
जवाब देंहटाएंऐसे ही बच्चे हर जुर्म के प्रति लापरवाह हो जाते हैं
बढ़िया भूमिका के साथ उम्दा प्रस्तुतीकरण
सुप्रभात,सुंदर प्रस्तुति ..दी ।
जवाब देंहटाएंविचारणीय सवाल.. उम्र का असर कहें या खुद को श्रेष्ठ साबित करने की मुर्खतापूर्ण होड़.. अभिभावक की गलती भी ज्यादा होती है, वर्तमान जीवन शैली काफी बदल गई है,सभी अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री इतनी जल्दी निभाते हैं कि दुरगामी परिणाम से बेपरवाह हो जाते हैं....कि बेटा आपने बाईक की जिद की लिजीए आपको मैंने दिला दी पर.. शर्त के मुताबिक आपको टाप करना है...बस ये होती है ज्यादा तर घरों की कहानी ..और परिणाम अक्सर दुखद ही होते हैं.. अच्छा लगता है जब आप लोग अपनी भुमिका में इस तरह के जहीन विषयों पर चर्चा करने के अवसर देते हैं.. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ...!
हमेशा की तरह एक लाजवाब प्रस्तुति श्वेता जी की। आभार 'उलूक' का उसकी बकबक सूत्र को शीर्षक पर देने पर।
जवाब देंहटाएंचाहे सड़क हो या ज़िन्दगी, बड़े हो या छोटे, "लहेरिया" चाल हमेशा घातक होती है! सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसार्थक विचारणीय प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंनाबालिग के हाथ स्टेरिंग देना घातक परिणामों को बुलाना..
सुंंदर लिंकों का चयन।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
धन्यवाद।
स्वेता, आज बहुत ही अहम सवाल पर रोशनी डाली हैं तुमने। सभी को उस पर जरूर चिंतन करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसुंंदर प्रस्तुति ...सवाल तो विचारणीय है ...बदलती जीवनशैली , दिखावा ..और क्या ..इसी कारण कई बार दुखद परिणाम भुगतने पडते हैं ।
जवाब देंहटाएंसुंंदर प्रस्तुति ...सवाल तो विचारणीय है ...बदलती जीवनशैली , दिखावा ..और क्या ..इसी कारण कई बार दुखद परिणाम भुगतने पडते हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत अहम विषय है ये। स्कूल में बाइक लाना मना है तो नजदीक के दुकानदारों से पहचान बनाकर उनकी दुकान के सामने पार्क कर लेते हैं या नजदीक रहनेवाले दोस्त के घर के आसपास पार्क कर देते हैं। ट्रैफिक हवलदार पकड़ता है तो उसे पैसे देकर कैसे बचते हैं, ये दृश्य देखें कभी तो पता चलेगा कि कितने चालाक और शातिर हो रहे हैं बच्चे अब !!! मासूमियत खो गई है। स्कूल की छुट्टी के बाद देखिए इनके स्टंट !!!! माता पिता को स्कूल में बुलाकर पूछते हैं कि कल आपके बच्चे के पास बाइक थी, आपने दी ? तो वे आँसू बहाते हैं, कहते हैं जिद करके ले गया, हमारी सुनता ही नहीं। एक अहम सवाल ये भी है श्वेता जी कि अब बच्चे माँ बाप को डराने लगे हैं, ब्लैकमेल करने लगे हैं। माँ बाप अब बच्चों से दबने लगे हैं ..हर वर्ष कई बच्चों के पिता मेरे पास आकर रोते हैं। पुरूष की आँखों से साधारणतः आँसू नहीं बहते किसी के सामने...पर पिता की आँखों से बहते हैं...ना जाने कहाँ गलती हो रही है बच्चों की परवरिश में, या समाज का पूरा ढाँचा ही बिगड़ गया है....ये गंभीर समस्या है। सभी को मिलकर सही उपाय खोजने होंगे जल्दी ही....
जवाब देंहटाएंआज के अंक की सभी रचनाएँ पढ़ीं, बहुत सुंदर अंक है। आभार एवं बधाई !
वाह....
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचनाएँ
शुभ कामनाएँ
सादर
बहुत खूबसूरत प्रस्तुतीकरण श्वेता जी .
जवाब देंहटाएंसुंंदर लिंकों का चयन।
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई
बहुत ही महत्वपूर्ण बात आप ने लिखा ! वाकई में यह एक विचारणीय प्रश्न है ! यातायात के अनुशासन की धज्जियाँ उड़ायी जा रही है ! कुछ लोग इतने बहक गए हैं कि उन्हें अपने प्राणों का भी मोह नहीं है !
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण भूमिका के साथ लाजवाब लिंक संयोजन ! बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया ! बहुत खूब ।
मैनें इनमें से दो रचनाएँ पढी-
जवाब देंहटाएं" 'आहटों की टोह लेता है..' और 'काॅपी कैट'"
दोनो बेहतरीन है।
बेहतरीन लिंक संयोजन !! सादर धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,
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