इस ब्लॉग से शुरू हुए नए कार्यक्रम
एक क़दम आप.....एक क़दम हम
बन जाएँ हम-क़दम
का इस सप्ताह का बिषय है-
"अलाव"
आप अपनी रचनाऐं आज शनिवार (13 जनवरी 2018 )
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी 10 रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक (15 जनवरी 2018 ) में प्रकाशित होंगीं।
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारा पिछले गुरुवारीय अंक
(11 जनवरी 2018 ) देखें या नीचे दिए लिंक को क्लिक करें -
आज
कल समाप्त हो जायेगा साहित्यकारों का कुंभ
मेले की बात करते हैं
सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
तो
खेले
झमेले
जेहन मेले
ख़ुशी की यादें
रंगीन चूड़ियाँ...
गम बबूल कांटें..
|
हां!
गच्चा
ना सच्चा
काम-कच्चा
साहित्य भीड़
सोंठ संपादक
ऐंठा-ऐंठा लेखक
|
हिन्दी फ़िल्मों के इतिहास को खंगालेंगे तो राजेंद्र कुमार जी के दशक की
फ़िल्मों में एक बात कॉमन थी कि नायक-नायिका के बीच की इश्क़ियाहट क़िताबों के गिरने
और फिर साथ-साथ उठाए जाने से प्रारंभ होती थी. आंखों-आंखों में हुआ ये
प्यार इतना सशक्त हो जाता था कि बगिया के फूलों की डाली को झुकाकर
और नदी की बहती धारा से अठखेलियाँ करते हुए
जमाने भर से लड़ने की ताक़त एकत्रित कर लेता था
और विस्तार से जानने के इच्छुक खुद थोड़ा श्रम करें
सुन्दर-सुन्दर खिलौने,
झूलों पर झूलते लोग,
जलेबियां और समोसे,
हँसते-खिलखिलाते चेहरे,
मायूस, उदास चेहरे,
ठग, चोर-उचक्के,
मासूम-से बच्चे.
देश भर के अनेकों बुद्धिजीवी इस अवसर पर एक साथ एकत्रित होते हैं,
अत: पाठक लेखक संवाद को सहजता से यहाँ स्थापित देखा जाता है।
अपने प्रिय लेखकों को सामने पा कर न केवल पाठक ही अभिभूत होता है
अपितु लेखक को भी रचनाओं पर स्वाभाविक एवं सम्मुख प्रतिक्रियायें मिल पाती हैं।
ऐसे आयोजन इस लिये भी नितांत आवश्यक हैं
चूंकि इनके माध्यम से पुस्तकों के प्रति एक गंभीर अभिरुचि उत्पन्न होती है।
कंधे पर चलने वाली गठरी मुठरी के अंदर के अनिवार्य सामानों की चर्चा हो
चाहे नई नवेली दुल्हन के चाल ढाल की,
दो सहेलियों की आत्मीय बातचीत के झगड़े में बदलने की दास्तान हो
या अटैची के ताले के मोलाने या ड्रामा देख कर भौजी के उछलने की बात हो..
हर जगह अपने सूक्ष्म अवलोकन
जोड़ सके जो सब को उसका नाम है एकता,
इसी से मिलती है दुनिया में सफलता.
एक- एक फूल से बनती है माला,
एक- एक धागे से बनती है दुशाला .
घर बनता है एक-एक ईंट से
लोहड़ी के पर्व का ध्यान आते ही या नाम सुनते ही
मन में भांगड़ा, गिद्दा, मूंगफली और रेवड़ी की तस्वीर उभरने लगती है।
ऐसा लगने लगता है अब सर्दी तो
बस कुछ ही दिन की मेहमान है।
थकी हारी सी आती है
कोहरे की चादर ओढे कभी
कभी गुमसुम सो जाती है
घर से बाहर निकले कैसे
दाँत टनाटन बजते है
मौसम की मनमानी दे
सर्दी की चुनौती "लेख्य-मंजूषा" के सदस्यों को आज मिली है
विस्तार से जानकारी अगले अंक में
><
विचित्र लग रही न .... हूँ ही ऐसी
बहुत प्यारी लग रही है दी:)👌
जवाब देंहटाएंसुप्रभातम् विभा दी, सुंदर त्योहारों का एक पुलिंदा सकारात्मक ऊर्जा भरने आ गया है। आपको भी मकरसंक्रांति और लोरी की हार्दिक शुभकामनाएँ है।
हमेशा की भाँति विशिष्ट संकलन दी। सुंदर रचनाओं का संग्रहन।
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
आज की एक विषयक प्रस्तुति आपकी आम प्रस्तुतिया से भिन्न है
मन भावन है...खुशबू भी आ रही है
आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए
सादर
अच्छी हैं और बहुत अच्छी लग रही हैं। हमेशा की तरह लाजवाब प्रस्तुति विभा जी।
जवाब देंहटाएंसुंदर!!!
जवाब देंहटाएंऋतु और त्यौहार का सुंदर संगम तिल गुड मूंगफली की सोंधी खुशबू लिये मधुर सी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंचेहरे पे अनुभव का नूर,मधुर स्मित मन मे नेह और आदर जगाती सी लग रही हो दी जी।
बहुत ही अच्छी लग रहीं है दी
जवाब देंहटाएंप्यारी - प्यारी सी
नमन विभा दी 🙏
जवाब देंहटाएंआपसे आज पहला दीदार
प्रथम देव दर्शन का सा लग रहा है !
त्यौहार की भीनी भीनी महक से महकते काव्य छंद
मन को लुभा रहे है ... ..मै हूँ ही ऐसी के साथ नेह से छलकती हँसी मिठास घोल गई ..नमन
शुभ सँक्रान्ति दी
ना जाने क्यों,'मेला'शब्द को जब भी सुनती हूँ मुझे 'मेला'फिल्म का वह गीत याद आ जाता है -
जवाब देंहटाएं"ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम ना होंगे,
अफसोसं, हम ना होंगे !"
गीतकार शकील बदायूँनी जी की बेहतरीन रचना है ये गीत!
आज विभा दी को अचानक ये क्या सूझी ?....विचित्र नहीं,स्नेहमयी मुस्कान के साथ प्यारी लग रही हैं आप आदरणीय विभा दी ! बहुत अच्छी प्रस्तुति हम तक पहुँचाने के सादर धन्यवाद ! शुभकामनाएँ.....
मेले के कई रंग लिए बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदिन भर की मेहनत और भाग दौड़ के बाद
जवाब देंहटाएंगनीमत है की आप शाम को सही सलामत घर पहुँच गए होंगे
अब देश के हालात जानने के लिए टीवी खोल लीजिये
चेंनल नंबर 1
यह चैनल आपको दिखा रहा है की पाकिस्तान और चीन को कैसे सबक सिखाया जा रहा है,
और यहाँ बगदादी चारों तरफ से घिर चूका है
क्या हुआ ? संतुष्ट नहीं हुए तो चलिए चैनल बदल लीजिये
चैनल नंबर 2
यहाँ आपको अमेरिका और किम जोंग के सारे प्लान बताये जा रहे है
जरा ध्यान से सुनते रहिये फ्यूचर में यह प्लान शायद आपके काम आएंगे
अब भी आपको अगर सुकून नहीं है तो अगले चैनल पर चलिए
चैनल नंबर 3
यहाँ पर हिन्दू मुस्लिम के अधिकारों की बहस हो रही
तलाक और गाय का यहां पर कब्जा है मुल्लां और पंडित अपने अपने धर्म की ठेकेदारी कर रहे है,
क्या सोच रहे हो ? देश के हालत जानने के लिए टीवी खोला था आगे चलिए बताते है
चैनल नंबर 4
यहाँ पर अदालत लगी है ऐंकर ही वकील है और ऐंकर ही जज है
ध्यान से सुनते रहिये कुछ ही देर में यहाँ पर किसी न किसी को देशद्रोही ठहरा दिया जायेगा
क्या हुआ गुस्सा आ रहा है ?
गुस्से को काबू में रखिये जनाब वरना ऐंकर टीवी से बहार निकल आएगा
देश में क्या चल रहा है यह तो अब आप जान ही चुके होंगे
टीवी बंद कर दीजिये और सुकून से सो जाईये
कल फिर आपको दो जून की रोटी की तलाश में निकलना होगा
जुग जुग जिओ
हटाएंलोहड़ी की शुभकामनाओं के साथ विविधता से परिपूर्ण आयोजन. बेहतरीन अंक. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें . विचारणीय चर्चा मेले पर...
जवाब देंहटाएंलोहड़ी पर्व की शुभकामनायें .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंलोहड़ी की शुभकामनाएं
लाजबाब प्रस्तुति
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