इतना छोटा सा उसका बच्चा था हमने कहा हम एकदम किनारे बैठ जातें है आपका बच्चा आराम से एक तरफ सो सकता है । इस पर वो एकदम ही बत्तमीजी पर उतर आया और तेज आवाज मे बोलने लगा।
बोला देखने मे आप तो पढ़ी लिखी लग रही है आपको समझ नही आ रहा है कि सीट मेरी है । मै बच्चे को सुलाने जा रहा हूं उसके पैर से आपको चोट लगेगा तो मै नही जानता ।
इसके कथानक में भी फ़िल्मकार (राकेश ओमप्रकाश मेहरा) ने कुछ ऐसे ही युवा दिखाए हैं जो मौज-मस्ती के अतिरिक्त जीवन का कोई अर्थ, कोई मूल्य नहीं समझते। देश-प्रेम जैसी बातें और देश की स्वाधीनतार्थ अपना सब कुछ बलिदान कर देने वाले अमर शहीदों की कथाएं तो उनके लिए मानो किसी अपरिचित भाषा की उक्तियां हैं। ऐसे में एक विदेशी युवती अपने स्वर्गीय पिता की दैनंदिनी (डायरी) के आधार पर मातृभूमि के हित अपना प्राणोत्सर्ग करने वाले कतिपय क्रांतिकारियों पर एक वृत्तचित्र बनाने हेतु आती है। उसके पिता एक अंग्रेज़ अधिकारी थे जो माँ भारती की दासता की बेड़ियां काटने के लिए हँसते-हँसते फाँसी पर झूल जाने वाले क्रांतिकारियों के निकट सम्पर्क में रहकर उनसे बहुत प्रभावित हुए थे तथा उनकी गाथा ही उन्होंने लेखबद्ध की थी (ऐसे अनेक अंग्रेज़ अधिकारी वास्तव में थे जो देशभक्तों के अदम्य साहस, मातृभूमि पर मर-मिटने की उनकी भावना तथा उनके उदात्त विचारों से अत्यन्त प्रभावित हुए थे)।
विविधरंगी रचनाओं का सुन्दर संकलन है यह. मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार.
जवाब देंहटाएंमनुष्य तुमने अपने घर सुंदर बनाने
जवाब देंहटाएंके लिए जीवनदायिनी
बगिया का
ये क्या हाल बना डाला
सुंदर अंक
सादर...
वाह! श्वेता ..सुंदर भूमिका ! सही है ,कहाँ समझ रहा है मनुष्य! कीमत भी चुका रहा है फिर भी ...,
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति!!!
जवाब देंहटाएंपूछते हैं बादल,
जवाब देंहटाएंधरा की छाती किलसती है
मनुष्य तुमने अपने घर सुंदर बनाने
के लिए जीवनदायिनी
बगिया का
ये क्या हाल बना डाला.
हृदय स्पर्शी,पता नहीं कब जागेंगे इन्सान... सराहनीय प्रस्तुति प्रिय श्वेता जी 🙏
रचना को लिंक पर स्थान देने के लिये हृदय से आभार...🙏🙏🙏
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