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बुधवार, 13 दिसंबर 2023

3973...स्वार्थ के उस पार..

 

।। प्रातः वंदन।।

"ठण्ड की एक अलसाई सी सुबह में

मैं बैठा हूं गंगा घाट के किनारे पर!

इन सब के बीच 

नेमियों का झुण्ड हर-हर गंगे का 

नाद करते हुए डुबकी लगा रहा है

उस पतितपावनी 

गंगा की शान्त लेकिन 

चंचल सी धारा में..!!"

 अज्ञात

 अलसाई सी सुबह सवेरे की पेशकश में शामिल रचनाएं...✍️

वक़्त ...

रात का लबादा ओढ़े गहरा सन्नाटा

बिस्तर में अटकी कुछ गीली सलवटें

आँखों में उतरे उदास लम्हों का घना जंगल

अच्छा हुआ झमाझम बरसे बादल ...

🌟

कोई राज़दां नहीं - -


कहने को लोग मिलते रहे लेकिन कोई दर्द शनासा न मिला,

जिसे समझे राज़दां अपना वही आख़िर में 

अजनबी निकला,

अजीब सी वो लफ़्ज़ों की पहेली उलझा गई ख़ुलूस ए ज़िन्दगी,

नुक़्ता ए आग़ाज़ पे लौट कर आता रहा वो..

🌟

रूठना ....

रूठने -मनाने के किस्से 

  बडे आम है.....

 किसी का रूठना 

  किसी का मनाना ..

🌟

है तब्बसुम में तू मौला.....

क्यूँ भटकते राह-ए-इश्क , झूठे वस्ल की चाह में

है तब्बसुम में तू मौला , तू ही तो हर आह में ...

दे रही जो ज़ख्म दुनिया उनसे क्या है वास्ता

मूँद लूं गर आँख तो पहुँचूं तेरी पनाह में .....

🌟

प्रेम और अपार

सच कह रहे हो ! 

प्रेम और अपार ,

उतर पाते हो क्या इस प्रेम में

स्वार्थ के उस पार,

उस वक़्त जब दूर कहीं 

अकेले देख रहे होते हो ..

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

5 टिप्‍पणियां:

  1. शरीर को ठिठुराता अंक
    आभार..
    सादर।..

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति पम्मी जी,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  4. दिगम्बर नासवा14 दिसंबर 2023 को 1:08 pm बजे

    बहुत दिलचस्प हलचल … आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए …

    जवाब देंहटाएं

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