सादर अभिवादन
कठिनाइयां ..अनुज कुमार जायसवाल
इसके बाद वहां से करीब बीस से तीस लोग और गुजरे लेकिन किसी ने भी
पत्थर को सड़क से हटाने का प्रयास नहीं किया।
करीब डेढ़ घंटे बाद वहां से एक गरीब किसान गुजरा। किसान के हाथों में सब्जियां और
उसके कई औजार थे। किसान रुका और उसने पत्थर को हटाने के लिए पूरा दम लगाया।
आखिर वह सड़क से पत्थर हटाने में सफल हो गया। पत्थर हटाने के बाद
उसकी नजर नीचे पड़े एक थैले पर गई। इसमें कई सोने के सिक्के और जेवरात थे।
उस थैले में एक खत भी था जो राजा ने लिखा था कि
ये तुम्हारी ईमानदारी, निष्ठा, मेहनत और अच्छे स्वभाव का इनाम है।
जीवन में भी इसी तरह की कई रुकावटें आती हैं।
उनसे बचने की बजाय उनका डटकर सामना करना चाहिए।
अब रचनाएं पढ़िए ...
सुधा मन मसोस कर रह गयी ! हमेशा बड़े सलीके से सज धज कर रहने वाली दीदी ने जब अपने सभी सुहाग चिन्हों को गंगा में विसर्जित कर गौरव की लाई हुई सफ़ेद साड़ी पहन कर घर में प्रवेश किया तो घर की सारी विवाहित स्त्रियाँ कमरों में दरवाज़े बंद कर अन्दर बैठ गईं ! दीदी की देवरानी ने सुधा को भी बलपूर्वक अपने साथ ले जाना चाहा ! “चलो अन्दर तुम भी ! अपशगुनी का मुँह अभी न देखो ! जो देख लेता है उसके साथ भी ऐसा ही होता है !”
साज सूने गीत सूना सूनी है सरगम
आंसू अविरल बह रहे हर ओर ग़म ही ग़म
रह गए हम तो अकेले दुनिया की भीड़ में
जो किया शायद अच्छा ही किया तकदीर ने
कविता विहरत नन्दन वन में,
तीन दोष की औषधि ढूंढत
बैद्यनाथ के वन में।
....
छँद ताल रस भाव भंगिमा,
सहज सहेली संग में।
कविता विहरत नंदन वन में।
आज का बच्चा, थोड़ा सा है सच्चा
पर है फिर भी मन का सच्चा-सच्चा
करता है वह सब कुछ अच्छा-अच्छा
रहता है हरदम वह खोया-खोया
अपना वक्त करता रहता है जाया
रावण संहिता और रावण रचित अन्य आयुर्वेद की पुस्तकों में राजवारुणी , पशुमांस से निर्मित वारुणी मय, पक्षिमांस से निर्मित मय, औषधियों से निर्मित मय वारुणी का विशद वर्णन है।अगर आप सभी ने अपनी बेबाक प्रतिक्रिया दी तो मै औषधियों से निर्मित वारुणी जिसे राजवारुणी का दर्जा प्राप्त है उसके निर्माण की कोशिश कर सकती हूँ ।अन्य तरह की मय नहीं बना सकती क्योंकि मुझे लहसुन प्याज़ छुने से भी परहेज है जीव मांस तो दूर की बात है।
किन्तु इस वारुणी को गर्भवती मंदोदरी के लिए रावण ने निर्मित किया था यह शरीर को पुष्टि देती है और मन को अतीव प्रसन्नता प्रदान करती है।यह तीन महीने के समय में निर्मित होती है।
रूप मौसम की तरह ...जयकृष्णराय तुषार
चाँद सूरज तो नहीं आप भी और हम भी नहीं
देश को कुछ तो उजाला दें चरागों की तरह
यह जगत माया है बस ब्रह्म सनातन सच है
हम इसी दुनिया में उलझे हैं हिसाबों की तरह
ऐसे ही कुछ मिनट तक बात करने के बाद उस आदमी ने फ़ोन रखा और सामने वाले व्यक्ति से उसके ऑफिस आने की वजह पूछी। उस आदमी ने अधिकारी को जवाब देते हुए कहा, “सर, मुझे बताया गया था कि 3 दिनों से आपके इस ऑफिस का टेलीफ़ोन ख़राब है और मैं
इस टेलीफ़ोन को ठीक करने के लिए आया हूँ।”
आज बस
कल फिर
सादर
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंलिंकों को जोड़कर पिरोई गई सुंदर माला, जिसमें एक लिंक मेरा शामिल करने के लिए ह्रदय तल से आभार।
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