समय के नाजुक डोर से
मोती बेआवाज़ फिसल रहा हैं
जाने अनजाने गुज़रते लम्हों पर
आवरण इक धुंधला सा चढ़ रहा है
तारीखों के आख़िरी दरख़्त से
जर्द दिसंबर टूटने को मचल रहा है।
किसी और की सोच से
सपने कोई और गढ़ता है
एक तरफ हेड दूसरी और टेल ही रहेगा
सामने से कोई आज
तू क्या करेगा
रह गया नभ में अकेला
भ्रमित सा इत-उत उड़े साथी ढूँढता फिरे
भूख और प्यास से प्राण भी संत्रास में
जाने क्यों गुरूर कर हवाओं का रुख़ भूल कर
पाला उसने ख़ुद झमेला
हो गया नभ में अकेला
भोर से मायूसियो ने ढक लिया ऐसे मुझे
शाम ढलकर भी न कोई ख्वाहिशें जागी मेरी
पुरे दिन बोझिल थी आँखें आँसुओं के खोज में
साड़ियों की सबसे दिलचस्प बात यह है कि ये जादुगरी करती है
मिलते हैं अगले अंक में
मै भी पहनती हूं
जवाब देंहटाएंसाड़ियां माँ की याद दिलाती है,माँ के बिना भी माँ का अहसास करा जाती है। दादी की बनायी तह में रिश्तों को नजाकत से सहेजना सिखाती है। मेरी कितनी ही साड़ियों में फाॅल मेरी दादी के हाथों से लगा है ,
भाव-भीना अंक
आभार इस यादगार अंक के लिए
सादर..
आभार श्वेता जी |
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्रों से संकलित पुष्पगुच्छ से अंक में सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंवाह! श्वेता ,खूबसूरत अंक ।
जवाब देंहटाएंवाह श्वेता जी, सभी लिंंक एक से बढ़कर ऐ हैं...धन्यवाद इन्हें हम तक पहुंचाने के लिए
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