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शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

3982....रह गया नभ में अकेला....

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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समय के नाजुक डोर से

मोती बेआवाज़ फिसल रहा हैं

जाने अनजाने गुज़रते लम्हों पर

आवरण इक धुंधला सा चढ़ रहा है

तारीखों के आख़िरी दरख़्त से 

जर्द दिसंबर टूटने को मचल रहा है।


आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-


पलकें खुली होती हैं मगर ढकी हुई आँखे होती हैं
किसी और की सोच से 
सपने कोई और गढ़ता है

उछालते रहिये सिक्के जिन्दगी पड़ीं है
एक तरफ हेड दूसरी और टेल ही रहेगा
सिक्का खडा करने की ताकत के साथ खडा है
सामने से कोई आज
तू क्या करेगा


रह गया नभ में अकेला 


भ्रमित सा इत-उत उड़े साथी ढूँढता फिरे

भूख और प्यास से प्राण भी संत्रास में

जाने क्यों गुरूर कर हवाओं का रुख़ भूल कर

पाला उसने ख़ुद झमेला 


हो गया नभ में  अकेला



देर रात बदली मैंने
अंसख्य करवटें
पर हर करवट के
प्रत्युत्तर में
खाली रहा बाईं ओर का तकिया 




मेरे सपने आज भी कुछ इस कदर सहमे हुए है 
भोर से मायूसियो ने ढक लिया ऐसे मुझे 
शाम ढलकर भी न कोई ख्वाहिशें जागी मेरी 
पुरे दिन बोझिल थी आँखें आँसुओं के खोज में 





साड़ियां माँ की याद दिलाती है,माँ के बिना भी माँ का अहसास करा जाती है। दादी की बनायी तह में रिश्तों को नजाकत से सहेजना सिखाती है। मेरी कितनी ही साड़ियों में फाॅल मेरी दादी के हाथों से लगा है , आज तक वो तुरपन नहीं उधड़ी है।
       साड़ियों की सबसे दिलचस्प बात यह है कि ये जादुगरी करती है
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आज के लिए इतने ही
मिलते हैं अगले अंक में
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6 टिप्‍पणियां:

  1. मै भी पहनती हूं
    साड़ियां माँ की याद दिलाती है,माँ के बिना भी माँ का अहसास करा जाती है। दादी की बनायी तह में रिश्तों को नजाकत से सहेजना सिखाती है। मेरी कितनी ही साड़ियों में फाॅल मेरी दादी के हाथों से लगा है ,
    भाव-भीना अंक
    आभार इस यादगार अंक के लिए
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर सूत्रों से संकलित पुष्पगुच्छ से अंक में सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह श्वेता जी, सभी ल‍िंंक एक से बढ़कर ऐ हैं...धन्यवाद इन्हें हम तक पहुंचाने के ल‍िए

    जवाब देंहटाएं

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