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मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

3979....कितनी ही स्मृतियों की गठरियाँ...

 मंगलवारीय अंक में आप
सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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जब दुनिया तम की डिबिया बन जाती है
जब टूट के हिम्मत पाँवों में चुभ जाती है
कभी पतझड़ और वीरानी से
कभी कुहरा और सुनामी से
जब जीवन पथ पर आँखें धुँधलाती है
दो पग बढ़ना कठिन लगे
जीवन प्रश्न-सा जटिल लगे
जब खुशी नीड़ की तिनकों-सी उड़ जाती है
तब हौले से थाम कर हाथ
 देकर हौसलों का साथ
एक नन्हीं किरण "उम्मीद"की नेह से मुस्काती है।
बनके बाती चीर के तम अंधियारा दूर भगाती है।।

ये पंक्तियाँ जीवन में कभी मुझे निराश होने नहीं देती।
 चाहे परिस्थिति कुछ भी हो उम्मीद की एक किरण,सब अच्छा होगा जैसा सांत्वना के शब्द मन और विचारों में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करते है।
ये तो सच है जीवन से जो चाहो वो मिल ही जाए जरुरी नहीं होता है। विपरीत परिस्थितियों में, टूटते जीवन डोर और घने अंधकार में भी जीवन की एक झलक पाने की उद्दाम ललक उम्मीद अर्थात् आशा कहलाती है।

आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-



उड़ चली डोर श्वासों की
मन ह्रदय पतंग हो उठा,
तोड़ सभी तन के बंधन  
  चिदाकाश में उड़ा किया !

इक लहर उठी श्वासों की
मानस धवल  हंसा हुआ,
 मृदु भावों के सरवर में
वह अनवरत तिरता रहा !

अंधेरे
में टिमटिमाते रहे, कुछ अपने आप ही बुझ जाए, आरती से घुमाई गई हथेली माथे 
पर आ रुक जाए । निःशब्द गिरती
रही रात भर ओस की बूंदे, इक
अजीब सी ख़ामोशी रही
दरमियां अपने, इक
गंध कोष जिस्म
के बहोत 
अंदर
खुल के बिखरता रहा रात भर, मन्नतों का दरख़्त




विज्ञप्तियों के इंतजार मे, चश्मे का नंबर बढ़ गया 
प्रतिस्पर्धा के दौड़ मे, वो खुद से ही पिछड़ गया 
सोचा था पहाड़ रहकर, खुद का गाँव घर सुधारेंगे 
मगर उसका हर ख्वाब, राजनीति के दलदल मे गड़ गया 




फुटपाथ पे मरी सर्दी।
चादर को हटा के देखो।।
परिंदे आ ही जायेंगें।
दरख्तों को लगा के देखो।।
किसी का टिफिन बॉक्स है।
कूड़े के पास जाके देखो ।।




कितनी ही स्मृतियों की गठरियाँ .., स्मृतियों की अटारियों में से  धूल और जालों के बीच से निकाल कर वे उन्हें खोलती हैं और कड़वे-मीठे पलों को आज और कल के साथ जीते हुए कभी बेलौस हँसती हैं तो कभी स्वर अवरुद्ध भी कर बैठती हैं  । अपनेपन की संजीवनी को आँचल में समेट कर दुबारा मिलने का वादा करके लौट जाती हैं अपनी -अपनी सीमाओं में,जहाँ उनका अपना-अपना संसार हैं ।
---
आज के लिए इतना ही
फिर मिलते है 
अगले अंक में।

4 टिप्‍पणियां:

  1. एक नन्हीं किरण "उम्मीद"की नेह से मुस्काती है।
    बनके बाती चीर के तम अंधियारा दूर भगाती है।।
    अप्रतिम...
    आभार हिम्मत दिलाता अंक
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार, 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. एक नन्हीं किरण "उम्मीद"की नेह से मुस्काती है।
    बनके बाती चीर के तम अंधियारा दूर भगाती है।।
    सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते, सुन्दर सूत्रों से संयोजित अंक में सम्मिलित करने के हृदयतल से आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. "विपरीत परिस्थितियों में, टूटते जीवन डोर और घने अंधकार में भी जीवन की एक झलक पाने की उद्दाम ललक उम्मीद अर्थात् आशा कहलाती है।" प्रेरणात्मक भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं का सुंदर संयोजन, 'मन पाये विश्राम जहां' को आज के अंक में स्थान देने हेतु ह्रदय से आभार श्वेता जी ! शुभ रात्रि

    जवाब देंहटाएं

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