शीर्षक पंक्ति:आदरणीया उर्मिला सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
2023 बस कगार पर आ चुका है लेकिन याद आता रहेगा कई उपलब्धियों के लिए।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-
सुबह हम
तलाशते हैं ज़िन्दगी को रहस्यमयी
कहानियों में, जराजीर्ण देह के
साथ उतरती है रात, घाट
की सीढ़ियों से सधे
पांव, स्थिर नदी
की गहराइयों में।
जख्म ने हंस कर जख्म से पूछा.....
कहो कैसे गुजरे दिन अश्कों के समंदर में...।
बस कुछ फूल हैं इबादत के
नम दुआओं में पिरोये
जो हर दिन चढ़ाना नहीं भूलती
स्मृतियों के उस ताजमहल में।
ढेर बोझा है दिलों पर
अनगिनत शिकवे छिपे,
मन कहाँ ख़ाली हुआ है
तीर कितने हैं बिंधे !
अब डॉक्टर के निशाने पर सचिन थे!
“क्या आप स्मोक
करते हैं?”
सचिन से पहले ही नीना बोल पड़ी!
“हाँ डॉक्टर
साहेब सचिन चेन स्मोकर हैं! दिन में दो डिब्बी सिगरेट तो ये पी ही लेते हैं !
लेकिन आपने कैसे जाना?”
मेरठ-बैंगलोर-मेरठ कार यात्रा: 7. झालरा पाटन
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंउत्तर के जाड़ै में
कम्बल ओढ़कर
संकलित रचनाओं की
उष्मा महसूस करवाती है
आभार
सादर
बहुत सुन्दर अंक, हमारी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंवाह! अनुज, शानदार प्रस्तुतीकरण।
जवाब देंहटाएंयात्रा वृतांत 'झालरा पाटन' को शामिल करने के लिए धन्यवाद। सभी को आने वाले नए साल की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! पठनीय रचनाओं से सजा एक और सुंदर अंक, आभार रवींद्र जी !
जवाब देंहटाएंदिलचस्प अंक. नमस्ते रवीन्द्रजी.
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