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शनिवार, 30 दिसंबर 2023

3990 ..बीमार नहीं होना है छुट्टी नहीं लेनी है पीने पिलाने का कार्यक्रम करें कोई रोक नहीं है

 सादर अभिवादन

आज 30 दिसंबर
2023 कह रहा है
क्या इतना बुरा हो गया हूं
खराब काम तो मैंने नहीं किया
जब राम जी को आना था
भगाने की साजिश कर दी
आप सबने सच में
मुझे दर्शन भी नहीं करने दिया
याद करोगे मुझे..यदि
2024 सही पत्नी साबित नहीं हुई
माना कि वो एक बच्चा
ज़ियादा ला रही है...

अब देखिए आज की रचनाएं




पिता के घर से निकलने से पूर्व वह यह निश्चय कर चुका था कि वह अपने ज्ञान से, बुद्धि बल से अपने पिता से इस उघम को एक दिन ऐसी जगह ले जाएगा जहां से वह कई भीख मांमने वालों को सक्षम बना सके। दूर से ही वह अपने पिता के सब्जी के ठेले को ऐसे देखने लगा जैसे एक विधार्थी अपनी कलम या एक सैनिक अपनी बंदूक को देखता है और आंखों के सामने उसे मेहनत से सजी वो सब्जी की दुकान दिखने लगी जहां वह आवाज लगा कर सब्जी नहीं बेच रहा और ना ही उसके पिता गलियों गलियों में घूम रहे हैं बल्कि उसके पिता एक अच्छी सी कुर्सी पर बैठे पैसे गिन रहे हैं और वह देश के कोनों कोनों से विभिन्न प्रकार के फल - सब्जियों लाने वाला शहर का प्रसिद्ध क्रेता है।






“ये ठीक है लेकिन यदि तुम्हें नौकरी ही करनी है, तो कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं। यहीं नौकरी कर लो, मैं तो साधु हूँ मैं अपनी कुटिया में ही रहूंगा। राजमहल में ही रहकर मेरी ओर से तुम ये राज-पाट संभालना।”

राजा ने साधु की बात मान ली और साधु की नौकरी करते हुए राजपाट संभालने लगा। साधु अपनी कुटिया में चले गए।


कुछ दिन बाद साधु पुनः राजमहल आये और राजा से भेंट कर पूछा, “कहो राजन! अब तुम्हें भूख लगती है या नहीं और तुम्हारी नींद का क्या हाल है?”





एक दिन जिस थैले में लुकाट आये उस पर जब ध्यान गया तो बेहद खूबसूरत मोती जैसी लिखाई में नीली स्याही से कविता लिखी थीं। आजतक मैंने वैसी सुघड़ लिखाई किसी की नहीं देखी। कविता क्या थीं, ये अब नहीं याद परन्तु उन कविताओं ने तब मन मोह लिया था।मैंने वो लिफ़ाफ़ा अपने पास सहेज कर रख लिया। खूब शोर मचा कर कहा लुकाट मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, फिर कई दिनों तक वैसे ही कविताओं में लिपटे लुकाट रोज आते रहे। मैंने मोहन से कहा रोज उसी से लाना जिससे कल लाए थे, उसके लुकाट बहुत मीठे थे। मैं लुकाट खाती और लिफ़ाफ़े को सहेज लेती। कई दिन तक आती रहीं






नज़रें हटती नहीं नज़ारों से
इसलिए बार बार देखा है।

प्यार दो आखों से नहीं दिखता
करके आंखों को चार देखा है।







शाम की देख के सूरत भोली
चांद सितारे करें हंसी ठिठोली

तुनक के जाती रात ने सुबह की
गरम सी धूप की पोटली खोली

किरणें बिखरी छन्न से ऐसे
केसरी रंग की गजब रंगोली




ख्याल रखें
नया साल
इस साल
मनाने की
सोच कर
अपने लिये
पैदा नहीं करें
कोई बबाल
*******
आज बस
कल अंतिम दिन
सादर

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