सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
13 दिसम्बर 2019 को यहाँ पहुँची हूँ
दिन-रात का फर्क है कुछ ज्यादा ही
जहाँ से आई हूँ और अभी जहाँ हूँ
कोई फर्क नहीं पड़ता
कोई फर्क नहीं पड़ता
कोई फर्क नहीं पड़ता
इस देश में राजा हिन्दू हो या मुसमान,
जनता तो बेचारी लाश है,
हिन्दू राजा हुआ तो , जला दी जाएगी
और मुसलमान राजा हुआ
तो दफना दी जाएगी
मैं हूँ इस देश का गौरव
किन्तु खेद क़ी समय से नहीं रह सक़ी अछूती,
दिशा देती थी जो सबको, आज खुद ही है भटकी,
जिसे थे सुलझाने समस्या, आज झेल रही है समस्या,
आज संशय में शायद, क्या मै हूँ देश बनाती?
गुनाह
किसके थे गुनाह , मैं ये सोचता हूँ
क्यूँ खो गया था मैं , ये पूछता हूँ
पर क्यूँ पूछता हूँ , जब मैं ये जानता हूँ
करता हूँ स्वयं स्वांग , पर नहीं मानता हूँ
ये सब किया धरा , मेरा ही घेरा है
गुनाहों का लगाया यहाँ , मैंने ही डेरा है
गज़ल शिल्प
मेरे दिल की गहराइयों को न छूना
अकेला हूँ , तन्हाइयों को न छूना |
हर इक साज़ मेरे दिल का है टूटा
शिकिस्ताँ हैं शहनाईयों को न छूना।
प्रवृत्तियाँ
प्रकृति जहां एकांत बैठि निज रूप संवारति।
पल-पल पलटति भेष छनिक छवि छिन-छिन धारति॥
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सुंदर सर है लहर मनोरथ सी उठ मिट जाती।
तट पर है कदम्ब की विस्तृत छाया सुखद सुहाती॥
मोह-भंग
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99 वां विषयअलाव
रचनाकार हैं
ओंकार जी
मेल द्वारा शाम तीन बजे तक
प्रकाशन तिथिः 16 दिसम्बर 2019
कृपया पुरानी रचनाएं न भेजें
जी प्रणाम दी,
जवाब देंहटाएंसुप्रभात।
हमेशा की तरह बेहद सुरुचिपूर्ण पठनीय और सुंदर अंक तैयार किया है आपनै।
आपकी विशिष्ट प्रस्तुति में अपनी रचना देखकर बहुत खुशी हो रही है आपका.स्नेहाशीष सदैव अपेक्षित है।
बहुत आभार..शुक्रिया दी।
लाजवाब
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंसदा की तरह बेहतरीन
सादर नमन
वाह ! आदरणीय दीदी, एक नया अछूता विषय और उस पर सार्थक रचना संग्रह ----कोई फर्क नहीं पड़ता -- ये कहना बहुत आसान है पर फर्क पड़ता है | हर कोई प्यार भूल सकता है पर तिरस्कार नहीं | फर्क पड़ता है जब कोई अपना सा होकर भी शब्दाघात से अकारण आहत कर दे | फर्क पड़ता है जब हम किसी को कहना कुछ कहते हैं और जता कुछ और देते हैं || और देशहित में कहूं तो बहुत ही ज्यादा फर्क पड़ता है जब सभी नेताओं का आचरण एक जैसा सिद्ध होता है | व्यर्थ की उम्मीद टूटने पर बहुत फर्क पड़ता है ||संकलन में हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा जी की पंक्तियाँ हास्य में भी एक गंभीर अर्थ समेटे हैं --
जवाब देंहटाएंकोई फर्क नहीं पड़ता
इस देश में राजा रावण हो या राम
जनता तो बेचारी सीता है
रावण राजा हुआ , तो वनवास से
चोरी चली जाएगी
और राम राजा हुआ तो,
अग्नि परीक्षा के बाद फिर वनवास में भेज
दी जाएगी।
कोई फर्क नहीं पड़ता इस देश में राजा कौरव
हो या पांडव,
जनता तो बेचारी द्रौपदी है
कौरव राजा हुए तो , चीर हरण के काम
आयेगी
और पांडव राजा हुए तो जुए में हार
दी जाएगी।
इसके साथ ' गुनाह रचना से पंक्तियाँ मन को झझकोर गयी --------इस आत्मकथ्य से बढ़कर खुद के बारे मेंकोई इमानदारी क्या होगी ?
गुनाह मेरी छाती में , पौधे से पनपते हैं
निकलकर सापों से फिर , सबको वो डसते हैं
मैं सोचता हूँ , मैं उन्हें हांकता हूँ
पर किधर जायेंगे वो , मैं नहीं भांपता हूँ
फिर कैसे मैं , ख़ुद पे ऐतबार करूँ
हिम्मत नहीं है , कि ख़ुद से इकरार करू
कवी का प्रकृति और सौन्दर्य से विमुख होना उसकी रचनात्मकता की मौत है | इसी कडवे से को उजागर करती प्रिय श्वेता की रचना ' मोह भंग बहुत कुछ कहती है |
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | आपको आभार एक नये नवेले विषय पर सुंदर प्रस्तुति देने के लिए | सादर प्रणाम |
लाजवाब !
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