समाज में होने वाले तकनीकी परिवर्तन केवल व्यवहार और आदतें बदलते तो और बात थी. वो परिवर्तन मनुष्य के भीतर बैठकर उसे भीतर से बदलते हैं और इन परिवर्तनों को यदि कोई सजग होकर अनुभूत कर रहा होता है तो वह कोई वैज्ञानिक या टेक्नीशियन नहीं, एक सृजनशील हृदय होता है।
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आइये आज की रचनाओं के संसार में-
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बुद्धि के ख़ज़ांची उसी भूख से कमाते बहुत हैं,
दम तोड़ता शिक्षा का स्तर तलहटी को छूता है,
फिर भी डार्विन के स्वस्थतम उत्तरजीविता के सिद्धांत को
ज़माना आज आजमाता बहुत है |
दरिया था, चुपचाप उसे था बह जाना,
ओढ़ी थी, उसने भी खामोशी,
बंदिशों में, मुश्किल था बंध जाना,
बीत चला, यूँ वर्ष पुराना!
क्या कहूँ, किसकी बात करूँ?
वो क्षण था, हर पल था ढ़लते जाना,
डूबते हर क्षण, साँसें थी रूँधी,
मुश्किल था, हर वो क्षण भूलाना,
बीत चला, जो वर्ष पुराना!
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आज की प्रस्तुति के अंतिम चरण में
सन 2019 का अंतिम विषय
101 वाँ विषय
औकात
उदाहरण...
प्रकाशन तिथि:30दिसंबर
आज यशोदा दी की व्यस्तता की वजह
आज की प्रस्तुति मेरे द्वारा रखी गयी है।
Thanks, thanks & thanks
जवाब देंहटाएंRegards...
सराहनीय संग्रहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंजी -बहुत ही सुंदर और सराहनीय रचनाओं का संगम।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात।
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक रचनाये हैं,देश के माहौल में एक कवि कैसे चुप रह सकता हैं।ये रचनाये पढ़कर पुख्ता हुआ।
आभार
धन्यवाद श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंसटीक शीर्षक के साथ उसका बेहतरीन विवरण देकर इस प्रस्तुति का आरंभ किया है आपने। बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंऔर मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका श्वेता दी!
आदरणीया श्वेता जी आपका हृदय से आभार
जवाब देंहटाएंवाह!!सुंदर प्रस्तुति श्वेता !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति आदरणीया श्वेता दी. मेरी रचना को स्थान देने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति उम्दा लिंक संकलन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई...
लाजवाब अंक।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा प्रस्तुतीकरण !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
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