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शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

896....अच्छा हुआ गालिब उस जमाने में हुआ और कोई गालिब हुआ

सादर अभिवादन
यूँ तो हर दिन नया,  हर पल नवीन है। समय के घूमते पहिये में तारीखों के हिसाब से फिर एक साल जा रहा है और नववर्ष दस्तक दे रहा है। लोग आने वाले भविष्य के लिए नये संकल्प लेते हैं। चलिये हम और आप भी 'अंगदान' के सार्थक महत्त्व पर विचार करते है मानवता के नाम। मृत्यु के बाद 
ये नश्वर देह अगर किसी को जीवन दे पाये इससे बढ़कर 
मनुष्यता और पुण्य कुछ नहीं।
  हमारी आँखें किसी के अंधेरे जीवन में उजाला भर सकती है। शरीर के अन्य उपयोगी अंग लीवर,दिल,गुर्दे त्वचा,टिशू(उत्तक), फेफड़ा इत्यादि हमारी मृत्यु के उपरांत किसी के काम आकर उनके जीवन में खुशियाँ भर सकती है। हर प्रकार की भ्रांति से परे मानवता के लिए क्या आप ऐसे उदार संकल्प के महत्व पर इस नववर्ष पर सोच सकते है? एक बार विचार अवश्य करियेगा।

चलिए अब पढ़ते है आज की रचनाएँ....

आदरणीया यशोदा दी की कलम से प्रसवित विचारणीय रचना

जब तक जी रहा
क्यों फ़िक्र करता निरंतर
ना तो परवाह कर
ना तू सोच इतना
जब जो होना है हो
जाएगा
जो मिलना है मिल
जाएगा

आदरणीय अयंगर सर जी की कलम से निकली भावपूर्ण,
स्नेहयुक्त, पवित्र अभिव्यक्ति
अब चिड़िया को होश नहीं,
पहले जैसा जोश नहीं,
पर फिर भी खामोश नहीं,
फुदक नहीं वह पाती है,
बस चींचींचींचीं गाती है.

आदरणीया रेणुबाला जी की हृदय के भावों को गूँथकर 
तैयार की गयी सुंदर रचना
आत्मा की  अतल गहराइयों में -
जो  भरेगा उजास  नित नित  ,
दिन महीने गुजर जायेगे  -
 आँखों से ओझल न होगा किंचित ;
हो ना जाऊं तनिक मैं विचलित 
प्राणों में  अनत धीरज  भर देना तुम !!


आदरणीय पुरुषोत्तम जी की सुंदर कृति
आपके ही ख्वाब में......
ये आ गया हूँ मैं कहाँ, पतवार थामे हाथ में,
हसरतों के आब में,
खाली से किसी दोआब में,
या आपकी यादों के किसी अछूते महराब में.


आदरणीया अपर्णा जी की नये साल के खूबसूरत ख़्वाब बुनती 
उम्मीद से भरी रचना
नए साल में,
सरहद पर खून के छींटे
शायद कम गिरे,
छोड़ दिए जांय बेक़सूर कैदी,
सरकारी कार्यालयों में
धूल फांकती फाइलें
ले ही आयें घरों में उजास,


आदरणीया राधा जी का हमारे मंच पर स्वागत है उनकी  कलम से 
प्रसवित सर्वधर्म समभाव का सार्थक संदेश देती बहुत सुंदर रचना
नफरत की दीवारें तोड़ो
शॉल शराफत का ही ओढ़ो
इंसानों के दिल को जोड़ो
कभी न पूजाघर को तोड़ो  
धर्म हमेशा यही सिखाता
जीने की है कला बताता

आदरणीया विभा दी की कलम से  निकली सुंदर  संदेशात्मक  रचना

"किसी का हक़ नहीं कि आपकी खुशियाँ छीने... अगर आपको पसंद नहीं तो अब , जब वे बुलाएँ तो आप तब बोलिए... देखते हैं... देखेंगे... इनसे पूछते हैं... खुद जाने का निर्णय आप कर सकती हैं... ऐसा ऊँगली क्यूँ पकड़ाईं आप ? दोषी आप भी हैं... !

और अंत में आदरणीय सुशील सर जी के उलूक टाइम्स से 
चचा ग़ालिब के लिये अलग अंदाज़ में


अब तो एक ही
गालिब रह गया है

जमाने में गालिब

कुछ भी कहना

उसी का

शेरे गालिब हुआ



फिर मिलेंगे नये साल में तब तक के लिए
आप सभी की बहुमूल्य सुझावों की प्रतीक्षा में

वक्त के पहियों में बदलता हुआ साल
जीवन की राहों में मचलता हुआ साल
चुन लीजिए लम्हें ख़ुशियों के आप भी
ठिठका है कुछ पल टहलता हुआ साल


17 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    सुन्दर आव्हान
    अंग दान व देहदान की परम्परा अब
    परम्परा नहीं है कर्तव्य बन रहा है
    एक बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सस्नेहाशीष संग आभार बहना
    जब श्रेया के संग मेरी बात खत्म हुई तो मैं सोच में पड़ गई कि ना जाने मैंने सुझाव सही दिया भी कि नहीं... खुद को परखने के लिए ही ब्लॉग पर पोस्टिंग की
    आपके चयन से सन्तुष्टि मिली
    बहुत बहुत धन्यवाद आपका

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रस्तावना एक महत्वपूर्ण संदेश‎ भरी और संकलन बहुत‎ सुन्दर‎ रचनाओं से सम्पन्न‎ ..., लाजवाब प्रस्तुतिकरण श्वेता जी .चयनित रचना‎कारों को बधाई एवं शुभ‎कामनाएँ .

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बेहतरीन संकलन
    उम्दा रचनायें

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात।
    सारगर्भित विचारणीय आज की प्रस्तुति। बधाई श्वेता जी।
    आज के अंक का अग्रलेख अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। अंगदान के प्रति हमारे पूर्व निर्धारित सोच पर मनन करने को विवश करता है।
    सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक। इस अंग में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति श्वेता जी। आभार 'उलूक' के सूत्र 'गालिब'को आज के हलचल के अंक के शीर्षक पर जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन संकलन
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  8. अति विशिष्ट संकलन भाव और मनोकामना पूर्ण ..अति सुँदर ...🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. शुभ दोपहर सटीक भूमिका सत्य कहा आपने मृत्यु के बाद तो वैसे भी सब कुछ रात में ही मिल जाना है अगर इस शरीर के अंग किसी के काम आ सके तो उससे पुण्य का दूसरा कोई कार्य नहीं होगा आभार आपका

    जवाब देंहटाएं



  10. शुभ दोपहर
    सारगर्भित विचारणीय अग्रलेख महत्वपूर्ण विषय है..बहुत सुंदर अंक तैयार किया है श्वेता जी ने..
    सभी रचनाएँ बढिया चयनित रचनाकारों को शुभकामनाएँ
    धन्यवाद,☺

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रिय श्वेता जी-- आज के संकलन की सभी रचनाएँ पढ़ी | बहुत ही अच्छी रचनाएँ हैं | बस सुशील जी के ब्लॉग पर अक्सर मैं लिख नहीं पाती-- अन्यथा आज बहुत मन था वहां लिखने का | यहीं से सुशील जी को हार्दिक बधाई और नववर्ष की शुभकामनाएं प्रेषित करती हूँ | ये साल मेरे लिए कौतुहल भरा साल रहा और इस कौतुहल में परम कौतुक भरा लेखन लगा उलूक टाइम्स का | आज की रचना ग़ालिब चचा के बारे में बहुत कमाल है | आपको सफल संयोजन केलिए बहुत बधाई और नववर्ष की शुभकामनाएं | आज की भूमिका में अंगदान का आह्वान बहुत सार्थक है | हमारे बाद हमारे अंग किसी को जीवन दान दे उसके भीतर धडकते रहें इससे बढ़कर कोई दान क्या और ख़ुशी क्या ? सबको चिंतन करना चाहिए |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रेनू जी आप ब्लॉग पर आती हैं पढ़ती हैं समझती हैं इससे बड़ा और क्या हो सकता है एक लिखने वाले के उत्साहवर्धन के लिये। आभारी हूँ।

      हटाएं
  12. महत्वपूर्ण अग्रलेख के साथ सुंदर प्रस्तुति. मेरी रचना को भी स्थान देने के लिये सादर आभार.सभी साथियों को बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  13. सुन्दर सार्थक प्रस्तुतिकरण उम्दा पठनीय लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  14. अत्यंत रोचक नववर्ष मंगलमय हो

    जवाब देंहटाएं

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