२० दिसंबर २०१७
।।उषा स्वस्ति।।
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आज की प्रस्तुतिकरण में चार चांद लगा रहे हैं
आदरणीया अनिता जी, आदरणीय देवेन्द्र पाण्डेय जी, आदरणीया दिव्या शुक्ला जी, आदरणीया संगीता स्वरुप जी,आदरणीय राजेश उत्साही जी,और आदरणीया सुधा देवराणी जी...
इन रचनाओं में जहां एक ओर भाव है
तो कहीं कथाओं में विचारों की बातें,कुछ जीवन की कशमकश से रूबरू
कराती रचनाएँ। यहाँ शब्दों की अथाह सागर है जितना परोसा जाए वह कम है..
तो फिर इत- उत की बातें छोड़ नज़र डालते हैं लिकों की ओर...✍
कितने कुसुम उगे उपवन में,
बिना खिले ही दफन हो गयीं
कितनी मुस्कानें अंतर में !
कितनी धूप छुए बिन गुजरी
कितना गगन न आया हिस्से
अब दृश्य बदल चुके हैं. पति को पत्नी से भी शराफत से बात करनी पड़ती है. छेड़छाड़ करने का मूल अधिकार इधर से उधर सरक गया प्रतीत होता है. कोई गोपी सहेलियों के साथ गर्व से गाना गाये..मोहें पनघट पे नन्द लाल छेड़ गयो रे..तब तो ठीक. लेकिन यदि उसने दुखी
-सुनो --सुन रहे हो ना
मेरी जिंदगी बिस्तर से गीले तौलिये उठाते /
तो कभी स्लीपर्स का दूसरा जोड़ा खोजते गुजरती जा रही है
बाथरूम में टूथपेस्ट का ढक्कन खुला /
उपजता है निर्मोह
मोह की अधिकता
लाती है जीवन में क्लिष्टता
और सोच हो जाती है कुंद
मोह के दरवाज़े होने लगते हैं बंद ।
हम ढूँढने लगते हैं ऐसी पगडण्डी
जो हमें निर्मोह तक ले जाती है
धीरे धीरे जीवन में
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वे तीन थे। छड़े-छटाक।साझा किराए के वनबीएचके में रहते थे।
घर चालनुमा अपार्टमेंट में दूसरे माले पर था। एक ही डिजायन के 36 मकान थे उसमें।
ज्यादातर मकानों में दूर-दराज कस्बों से आए उन जैसे छड़े-छटाक ही रहते थे।
पर एकाध में परिवार वाले भी आ जाते थे। उनके पड़ोस वाले मकान में भी हाल ही में दस सदस्यों का
एक परिवार आया था। परिवार में पाँच मनुष्य और पाँच पौधे थे। मनुष्य तो मकान के अंदर रहते थे,
थोड़ी वफा ...
थोड़ा सा प्यार ,
थोड़ी क्षमा...
जो जीना जाने रिश्ते
रिश्तों से है हर खुशी.....
फूल से नाजुक कोमल
ये महकाते घर-आँगन
खो जाते हैं गर ये तो
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शब्दों के मानक से तौलें
नए शब्द नया लेखन ही सीखा जाएगा..
।।इति शम।।
धन्यवाद..✍
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ
शुभकामनाएँ
सादर
सुंदर प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनायें
सुप्रभातम् पम्मी जी,
जवाब देंहटाएंसराहनीय रचनाओं का सुंदर संयोजन किया है आपने,सारी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी। सभी को मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सुप्रभात, सदा की तरह ताजगी भरे अंदाज में पाँच लिंकों का प्रस्तुतिकरण..आभार मुझे भी शामिल करने के लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति पम्मी जी।
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया पम्मी जी। आप एक से बढ़कर एक रचना चुनकर लायी हैं इस अंक के लिए। बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।
सुंदर प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं
अतुलनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, एवं हार्दिक आभार, पम्मी जी !
बहुत सुंदर संकलन ....सभी रचनाएँ एक से बढकर एक...!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय पम्मी जी -- आज के सुंदर संकलन की सभी रचनाएँ पढ़कर आ रही हूँ | सभी बहुत ही सार्थक और भावपूर्ण लगी | भूमिका बहुत ही विचारणीय है | आसक्ति से ही अनासक्ति उपजती है क्योकि अत्यधिक मोहता से इंसान कुंद हो निर्मोही सा हो जाता है | कितना बड़ा दार्शनिक तथ्य है | सभी रचनाकार साथियों को सादर शुभकामना | आपको सफल संचालन के लिए हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहती हूं यहां देर से आने के लिए । कुछ अपनी व्यस्तताएं और कुछ ब्लॉग से वैराग्य की स्थिति लेकिन यहां से कुछ पाठक मेरे ब्लॉग तक पहुंचे उन सबको तथा आपको हृदय से धन्यवाद। आपके दिए लिंक्स तक मैं भी पहुंचूंगी भले ही देर सबेर से । आभार
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