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बुधवार, 20 दिसंबर 2017

887..मोह से ही तो उपजता है निर्मोह..




२० दिसंबर २०१७

।।उषा स्वस्ति।।
┅┅┅

आज की प्रस्तुतिकरण में चार चांद लगा रहे हैं

आदरणीया अनिता जी,  आदरणीय देवेन्द्र पाण्डेय जी, आदरणीया दिव्या शुक्ला जी, आदरणीया  संगीता स्वरुप जी,आदरणीय राजेश उत्‍साही जी,और आदरणीया सुधा देवराणी जी...



इन रचनाओं में जहां एक ओर भाव है 

तो कहीं कथाओं में विचारों की बातें,कुछ जीवन की कशमकश से रूबरू 

कराती रचनाएँ। यहाँ शब्दों की अथाह सागर है जितना परोसा जाए वह कम है..

तो फिर इत- उत की बातें छोड़ नज़र डालते हैं लिकों की ओर...✍







कितने कुसुम उगे उपवन में,

बिना खिले ही दफन हो गयीं

कितनी मुस्कानें अंतर में !

कितनी धूप छुए बिन गुजरी

कितना गगन न आया हिस्से



┅┅
अब दृश्य बदल चुके हैं. पति को पत्नी से भी शराफत से बात करनी पड़ती है. छेड़छाड़ करने का मूल अधिकार इधर से उधर सरक गया प्रतीत होता है. कोई गोपी सहेलियों के साथ गर्व से गाना गाये..मोहें पनघट पे नन्द लाल छेड़ गयो रे..तब तो ठीक. लेकिन यदि उसने दुखी 



-सुनो --सुन रहे हो ना

मेरी जिंदगी बिस्तर से गीले तौलिये उठाते /

तो कभी स्लीपर्स का दूसरा जोड़ा खोजते गुजरती जा रही है 

बाथरूम में टूथपेस्ट का ढक्कन खुला / 


उपजता  है  निर्मोह 

मोह  की अधिकता 

लाती है जीवन में क्लिष्टता 

और  सोच  हो जाती  है कुंद

मोह के दरवाज़े होने लगते हैं  बंद ।

हम ढूँढने  लगते  हैं ऐसी  पगडण्डी 

जो हमें  निर्मोह  तक ले  जाती  है 

धीरे धीरे जीवन में 

वे तीन थे। छड़े-छटाक।साझा किराए के वनबीएचके में रहते थे।
घर चालनुमा अपार्टमेंट में दूसरे माले पर था। एक ही डिजायन के 36 मकान थे उसमें।

ज्‍यादातर मकानों में दूर-दराज कस्‍बों से आए उन जैसे छड़े-छटाक ही रहते थे। 
पर एकाध में परिवार वाले भी आ जाते थे। उनके पड़ोस वाले मकान में भी हाल ही में दस सदस्‍यों का 
एक परिवार आया था। परिवार में पाँच मनुष्‍य और पाँच पौधे थे। मनुष्‍य तो मकान के अंदर रहते थे, 




रिश्ते ...
थोड़ा सा सब्र ,
थोड़ी वफा ...

थोड़ा सा प्यार ,

थोड़ी क्षमा...

जो जीना जाने रिश्ते

रिश्तों से है हर खुशी.....

फूल से नाजुक कोमल


ये महकाते घर-आँगन

खो जाते हैं गर  ये तो


┅┅┅┅┅
शब्दों  के मानक से तौलें
नए शब्द नया लेखन ही सीखा जाएगा..
।।इति शम।।
धन्यवाद..✍






13 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    बेहतरीन रचनाएँ
    शुभकामनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर संकलन
    उम्दा रचनायें

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभातम् पम्मी जी,
    सराहनीय रचनाओं का सुंदर संयोजन किया है आपने,सारी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी। सभी को मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात, सदा की तरह ताजगी भरे अंदाज में पाँच लिंकों का प्रस्तुतिकरण..आभार मुझे भी शामिल करने के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह! बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया पम्मी जी। आप एक से बढ़कर एक रचना चुनकर लायी हैं इस अंक के लिए। बधाई।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर प्रस्तुतीकरण
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन....
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, एवं हार्दिक आभार, पम्मी जी !

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर संकलन ....सभी रचनाएँ एक से बढकर एक...!!

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय पम्मी जी -- आज के सुंदर संकलन की सभी रचनाएँ पढ़कर आ रही हूँ | सभी बहुत ही सार्थक और भावपूर्ण लगी | भूमिका बहुत ही विचारणीय है | आसक्ति से ही अनासक्ति उपजती है क्योकि अत्यधिक मोहता से इंसान कुंद हो निर्मोही सा हो जाता है | कितना बड़ा दार्शनिक तथ्य है | सभी रचनाकार साथियों को सादर शुभकामना | आपको सफल संचालन के लिए हार्दिक बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  10. क्षमा चाहती हूं यहां देर से आने के लिए । कुछ अपनी व्यस्तताएं और कुछ ब्लॉग से वैराग्य की स्थिति लेकिन यहां से कुछ पाठक मेरे ब्लॉग तक पहुंचे उन सबको तथा आपको हृदय से धन्यवाद। आपके दिए लिंक्स तक मैं भी पहुंचूंगी भले ही देर सबेर से । आभार

    जवाब देंहटाएं

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