पम्मी सखी आज प्रवास पर हैं
अगले बुध से उन्हें आप फिर पाएँगे यहीं पर
हाँ ..याद आया... आज तो छः दिसंबर है
आज ही जागा था भारत रात भर
तोड़ी गई थी इमारतें...
जिसे संज्ञा दी जाती है
धर्म-स्थानों की....
बकवास बंद...चलिए आनन्द लीजिए......
आज पहली बार गूगल प्लस से सीधे
योगी योगेन्द्र
आज है वो छः दिसम्बर
जब मैंने पहली लाश देखा
लाव लश्कर अयोध्या में
बाबरी के पास देखा
कार सेवक नाद देखा
अहिंसक उन्माद देखा
रामभक्तों के नगाड़ो में
मगन आकाश देखा
नव प्रवेश
आप कुमायू विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र के विद्यार्थी रहे हैं
फ़िज़ूल ग़ज़ल....डॉ. राजीव जोशी
बच्चे घरों के' जब बड़े जवान हो गए
तब से बुजुर्ग अपने बेजुबान हो गए
कुदरत को छेड़ कर हमें यूँ क्या मिले भला
खुद ही तबाह होने का सामान हो गए
किस का कसूर.....दिनेशराय द्विवेदी
कसूर होता है अस्पताल का
जिसमें कारपोरेट प्रबंधन होता है
बैंकों से उधार ली गई
वित्तीय पूंजी लगी होती है,और
न्यूनतम संभव वेतन पर
टेक्नीशियन काम कर रहे होते हैं
बाल मजदूर...विक्रम कुमार
बचपन के खिलौनों की जगह,
जिंदगी से लड़ना सिखा दिया |
पेन ,किताब और कॉपी की जगह,
कम का बोझ इन पर लाद दिया |
वो इक बिंदास सी लड़की.......आलोक यादव
वो इक बिंदास सी लड़की
अधर पे हास सी लड़की
कोई सब हार दे जिस पर
विजय की आस सी लड़की
न काटो हमको ..... प्रियंका श्री
न काटो हमको,
काट कर तुम क्या पाओगे।
अपने ही जीवन के अंत
की कहानी,
तुम खुद लिख जाओगे।
मन्नत का धागा......श्वेता सिन्हा
फिर से स्पंदनहीन,भावहीन
बनकर तुम्हारे लिए
बस तुम्हारी खातिर,
दुआएँ, प्रार्थनाएं एक पवित्र
मन्नत के धागे के सिवा और
क्या हो सकती हूँ मैं
तुम्हारे तृप्त जीवन में।
एक नाज़ुक-सा फूल गुलाब का ... रवीन्द्र सिंह यादव
कोई तोड़ता पुष्पासन से
कोई तोड़ता बस पंखुड़ी
पुष्पवृंत से तोड़ता कोई
कोई मारता बेरहम छड़ी
आज सारे गुबार दिल के...सुषमा वर्मा
यही पर थम जाए...
ये मौन ये चुप्पी इक दिन,
सब बिखेर कर रख देगी..
क्यों ना लिख दूँ...
आज सारे ज्वार दिल के....!!!
एक साल पुराने अखबार की कतरन
बेवकूफ
‘उलूक’
की आदत है
जुगाली करना
बैठ कर
कहीं ठूंठ पर
उजड़े चमन की
जहाँ हर तरफ
उत्तर देने वाले
होशियार
होशियारों
की टीम
बना कर
होशियारों
के लिये
खेतों में
हरे हरे
उत्तर
उगाते हैं
....................
आज बस यहीं तक
यशोदा
आदरणीया दीदी शुभ प्रभात आज का अंक अच्छा लगा विशेष कर
जवाब देंहटाएंफ़िजूल गज़ल का नया प्रवेश सुन्दर रचना के साथ तो छः दिसम्बर में छुपे कई अन्य पहलू जो उजागर करने की आवश्यकता है और ,बाल मज़दूर की व्यथा एवं सुन्दर लड़की का बिंदास अंदाज़ और क्या कहूँ शब्द नहीं हैं आदरणीय रविंद्र जी की रचना 'एक नाजुक -सा फूल ग़ुलाब का' की ख़ातिर परन्तु आहुति विशेष लगी उल्लूक के पन्नों के साथ। सादर
वाह! यशोदाजी का संकलन, ध्रुवजी का आकलन.....बस खुल गया ' मन्नत का धागा ' ! बधाई और आभार सभी रचनाकारों को।
जवाब देंहटाएंकाफी से अधिक श्रम नजर आता है
जवाब देंहटाएंसारी रचनाएँ मनभावन..
डा.राजीव जी जोशी का स्वागत..
सादर...
सभी सुधी जनों का बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंसभी सुधी जनों का बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार यशोदा जी 'उलूक' की पुरानी कतरन को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबधाई सभी रचनाकारों को
शुभ दोपहर....
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन....
आभार आप का....
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमनभावन सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबेजोड़ प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन, सभी रचनाएँ अपने आप में परिपूर्ण। सादर धन्यवाद यशोदा दीदी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन...
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