साप्ताहिक कॉलम बचे है बाल साहित्य के नाम पर।
कर दिया है, जादू-टोने, परी कथाएँ सब बीते ज़माने की बात हो गयी है। जबकि ये सच है कि बच्चों को कोर्स की किताबों के अलावा भी भरपूर मानसिक खुराक की आवश्यकता है,क्योंकि बाल साहित्य न सिर्फ बालमन का मनोरंजन करता है बल्कि बच्चों का
मानसिक तनाव दूर करने में भी सहायक है।
समय ही इश्क हो लेता है समय से जब इश्क होता है
पहाड़ी पगडंडियों
से अचानक उतर कर
बियाबान भीड़ में
अपने जैसे कई
मुखौटों से खेलते
चेहरों के बीच
बन गई हो
इस जिंदगी में तुम....
जो बिन तुम्हारे
अधूरी सी
हो चली है....
शब्दों की मुस्कुराहट से आदरणीय संजय जी की कलम से
पापा आप हो सबसे ख़ास -2 दिसम्बर जन्मदिन पर विशेष
दर पे जब भी गए हम खुदा के,
माँगी जिनके लिए बस दुआ ही !
आकांक्षा से आदरणीया आशा जी की कलम से
स्वप्न मेरे
आदरणीय डॉ. राजीव जी की कलम से
शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंछुट्टी के बाद स्वागत है
वापस आते ही धमाल
बेहतरीन प्रस्तुति
सादर
उम्दा चयन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात। प्रासंगिक विचारणीय भूमिका के साथ खूबसूरत रचनाओं से सुसज्जित सरस और विविधता से परिपूर्ण विचारणीय अंक। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।
जवाब देंहटाएंसार्थक भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाऐं बहुत अच्छी और समय परक।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात शुभ दिवस।
वाह....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ....
बच्चों की पत्रिका गायब हो गई है..
सिर्फ नन्दन दिखाई पड़ती है...
टीवी की वजह से बच्चों की आँखों में चश्में चढ़ गऐ हैं
एक अच्छा प्रश्न उछाला है आपने..
सादर
चंपक, लोटपोट, इंद्रजाल कामिक्स, अमर चित्र कथा और भी कई कई ले कर आते थे बचपन में। आज कुछ नजर नहीं आता है इनसब में से और ना ही कोई नई पत्रिका । बच्चों के कान से चिपका या हाथ में चिपका मोबाईल जरूर जरूरी हो गया है किताबों की जगह। सुन्दर प्रस्तुति श्वेता जी और आभार 'उलूक' के समय और इश्क को शीर्षक पर जगह देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात स्वेता जी,
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति , सही कहा अब बच्चों की पठन सामग्री स्कुली किताबों तक ही सीमित रह गई है। ज्यादातर बाल साहित्य से संबंधित पुस्तकें विलुप्त हो चुकी है। कहें तो बचपन अब नहीं बीतता दादा दादी की किस्सों कहानियों में ..अब ये सरपट दौड़ता है टैक्नोलॉजी में..। पर सभी जानते है जो आंनद नंदन पढ़ कर एवं उसमें आए पहेलियां,पजल्श हल कर आते थे । पर ....!! उतने आंनद तो कैंडी क्रश के दसवें भाग को पार कर के भी आते ही हे पर .. वो आंनद हमें मिलती है मानसिक तनाव के साथ,
परिचर्चा के लिए बहुत ही विचारणीय विषय चुना था आपने, बधाई आपको एवं सभी चयनित रचनाकारों को भी शुभकामनाएं...!!
सुप्रभात..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकलन के साथ विचारणीय प्रस्तुति.. सच बच्चों की पुस्तकें गायब हो गई..
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
बढ़िया लिंक संयोजन सखी...
जवाब देंहटाएंपराग और चन्दामामा दिखाई नहीं पड़ते
दीदी की कलम चलने लगी
अब हम भी सामान्यतः कोशिश कर रहे है
सादर
शुभ दोपहर...
जवाब देंहटाएंसत्य कहा आपने....
कितना आनंद आता था बचपन में.....कहानियां सुनकर.....
अब के बच्चों को स्कूल के होमवर्क थोड़े से खाली वक्त में टिवी से फुरसत ही कहां है.....
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
पहले कोचिंग और ट्यूशन्स नहीं होते थे ना !!! बस स्कूल से लौटकर थोड़ा पढ़ना होता था। माता पिता इतनी बड़ी बड़ी उम्मीदें भी नहीं लगाते थे फिर भी बच्चे कभी उन्हें निराश भी नहीं करते थे (अपवादस्वरुप कुछ हो सकते हैं)बहुत से कारण हैं आज बालसाहित्य के कम हो जाने के । आज के सभी लिंक्स बेहतरीन हैं। धन्यवाद श्वेताजी मुझे भी यहाँ शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक संयोजन ! बहुत सुंदर आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंबचपन की सारी पत्रिकायें याद आ गई...बेहतरीन तरीके से संकलन किया हैं
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता जी -- आज के शानदार संयोजन की सभी रचनाएँ पढ़ी | सभी अच्छी हैं और सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई | आज की विचारणीय भूमिका के बारे में कहूँ तो मैंने अपने दोनों बच्चों को उनके छोटे होते साहित्य से जोड़ने की भरसक कोशिश की पर उन्हें अख़बार , पत्रिकाओं में छपे कार्टून और कथा पात्रों की जगह टी वी के चलते फिरते पात्र और कार्टून ही ज्यादा अच्छे लगे | उनमे ज्यादा साहित्य प्रेम ना जगा पाने की पीड़ा भीतर तक है पर तकनीकी युग में बच्चों में साहित्यिक संस्कार रोपना बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य है | यह बड़े शोध का विषय है | आपने इस विषय पर चिंतन किया जो समय की मांग है | सस्नेह शुभकामना --
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक संयोजन... सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई !
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