सादर अभिवादन।
नया साल आने में 17 और शेष........
आजकल देश में बड़े निजी अस्पताल अपने क्रिया-कलापों से चर्चा में हैं।आम आदमी चिकित्सा-क्षेत्र की बारीकियों से अनभिज्ञ होता है अतः निजी अस्पतालों में क़दम-क़दम पर लुटता है। डॉक्टर और मरीज़ के बीच विश्वास का रिश्ता धीरे-धीरे ख़ात्मे की ओर है। सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था , अधिक समय लगना ,गंदगी , साधनों की कमी, स्टाफ़ के दुर्भावनापूर्ण रबैये , कोई जवाबदेही न होना आदि के चलते लोग निजी अस्पतालों में जाना पसंद करते हैं और कुछ तो मज़बूरन भी वहां जाते हैं। देश के नामी कॉर्पोरेट अस्पताल इस समय जनता के समक्ष अपनी विकृत तस्वीर लेकर सामने आये हैं। मरीज़ के मर जाने पर भी 16 लाख रुपये का बिल, हाल ही पैदा हुआ कम दिनों का बच्चा ज़िंदा था उसे मृत घोषित करना , बिल का शेष भुगतान न करने पर लाश मृत मरीज़ के परिजनों को न सौंपना, महिला मरीज़ के साथ ICU में छेड़छाड़ , बिलिंग में धाँधली आदि गंभीर ख़ामियाँ जनता के समक्ष आयीं हैं निजी अस्पतालों की।ये निजीकरण के भयावह दुष्परिणाम हैं।
आप भी मनन कीजिये इस मुद्दे पर और दुआ कीजिये कि आपको अस्पतालों की शरण में न जाना पड़े।
मैं ख़ुद इस क्षेत्र का प्रोफ़ेशनल हूँ अपने स्तर पर पारदर्शिता
बनाये रखने में अब तक ईश्वरीय कृपा मेरे साथ है।
शीध्र ही प्लेटलेट्स और डेंगू पर जनहित में एक विस्तृत लेख प्रस्तुत करने वाला हूँ जिससे अवश्य ही पीड़ित मानवता को राहत मिलेगी। इस लेख में मेरी कोशिश जनता और सरकार को यह बताने की है कि डेंगू के मामलों में AUTOMATED HEAMATOLOGY ANALYSER द्वारा GENERATE की जा रही रिपोर्ट के आधार पर चिकित्सा-क्षेत्र में फ़ैसला लेकर मरीज़ को प्लेटलेट्स TRANSFUSION कर दिया जाता है जबकि MANUAL आधार ( इस प्रक्रिया में समय लगता है ) पर प्लेटलेट्स की जाँच करने पर ऐसा करना ज़रूरी नहीं होता है कभी-कभी क्योंकि ANALYSER डेंगू मरीज़ में प्लेटलेट्स के आकार में आये परिवर्तन के कारण पूरे प्लेटलेट्स नहीं गिन पाता। मेरे इस कार्य के आधार पर अस्पताल के सभी विशेषज्ञ मेरे द्वारा सुझाई गयी रिपोर्ट पर विश्वास करते हैं और हम सैकड़ों मरीज़ों को बिना प्लेटलेट्स TRANSFUSION के संकट से उबार चुके हैं।
आइये अब आपको अलग दुनिया की सैर पर ले चलते हैं अर्थात आज की सात पसंदीदा रचनाऐं -
नामचीन शायर डॉ. कुँवर बेचैन जी की एक शानदार ग़ज़ल आदरणीया यशोदा बहन जी द्वारा "मेरी धरोहर " ब्लॉग पर संकलित जो आपको नए-नए अर्थों से अवगत कराएगी। मुलाहिज़ा कीजिये-
जो धरा से कर रही है कम गगन का फासला
उन उड़ानों पर अंधेरी आँधियों का डर न फेंक
फेंकने ही हैं अगर पत्थर तो पानी पर उछाल
तैरती मछली, मचलती नाव पर पत्थर न फेंक
आइये आपको रूबरू कराते हैं एक अलग बिषय से जोकि आपको भी जानना चाहिए। पेश है आदरणीय ललित गर्ग जी का सारगर्भित एवं विचारणीय आलेख -
भारत दुनिया में सबसे बड़ा गैर लाभकारी संगठनों का घर है जहां 33 लाख गैर सरकारी संगठन प्रति वर्ष अंतर्राष्ट्रीय दाताओं से 8500 करोड़ रुपये से अधिक का धन जुटाते हैं। दान और परोपकार के माध्यम से करों में लाभ प्राप्त किया जा सकेगा। ग्लोबलगिविंग के साथ हुए करार से अमेरिका और ब्रिटेन के भारतीय दाताओं को कर छूट की सुविधा प्राप्त हो सकेगी और इस तरह भारत के गैर सरकारी संगठनों एवं सामाजिक उद्यमों को अधिक लोकोपकारी एवं जनकल्याणकारी कार्यों के लिए प्रवासी भारतीयों से पूंजी जुटाने की सकारात्मक स्थितियों का बनना देश के लिये शुभ है।
इस मंच पर आज हम परिचय करा रहे हैं नवोदित युवा रचनाकार सालिहा मंसूरी जी का जोकि न्यूनतम अल्फ़ाज़ में जज़्बात को ख़ूबसूरत अंदाज़ में पेश करने में माहिर हैं -
आज फिर तन्हा हूँ मैं
तुमसे बिछड़कर
लेकिन कुछ पल
जैसे आज भी जिन्दा हैं
कुछ लम्हें
जैसे आज भी ठहरे हैं ....
बदलते वक़्त में मूल्यों की नयी परिभाषाऐं बन रही हैं। प्रेम को हालात से जोड़ती और राधा-कृष्ण के अमर व अलौकिक प्रेम का ज़िक्र करती आदरणीय राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही" जी की ताज़ातरीन रचना पर नज़र डालिये -
हमारा न था कभी भी,
जिस्मानी रिश्ता,
आत्मिक रिश्तों को,
ना समझोगे कभी भी।
गुजर रहा अभी,
जीवन, ख़ुशी में “राही”,
शक राधा-कृष्ण पर,
न करता कोई भी।
वक़्त को न थामा जा सकता है और न ही उसे आगे-पीछे किया जा सकता है बल्कि उसकी अपनी निर्धारित गति है जबकि सुखमय पलों को हम ठहरने की कामना करते हैं। रचनाकारों की ख़्वाबों से सजी आल्हादित करतीं फैंटेसी से लबरेज़ उड़ानें वक़्त को थामकर उसमें एहसासों की नज़ाक़त भर देती हैं। पेश है आदरणीया नीतू ठाकुर जी की एक मनमोहक रचना -
चल ख्वाबों के पंख लगाकर
नील गगन में उड़ते जायें
तारों से रोशन दुनिया में
सपनों का एक महल बनायें
जहाँ बहे खुशियों का सागर
फूलों की खुशबू को समाये
हास्य-विनोद माहौल को हल्का-फुल्का बनाता है। व्यंग के माध्यम से व्यक्ति हँसकर सच्चाई स्वीकार कर लेता है। पेश है आदरणीय जोशी सर की उनके ब्लॉग "उलूक टाइम्स" से एक रचना जो आपसे सीधा संवाद करती है अंत में आपको गंभीरता के सरोबर में डुबो देती है -
सीखता क्यों नहीं है
एक पूरी भीड़ से
जिसने अपने लिये
सोचने के लिये
कोई किराये पर
लिया होता है
स्त्री की समाज में स्थिति को लेकर साहित्य अक्सर गंभीर रहा है।
और अंत में...आदरणीया सुधा देवरानी जी की इस ख़ूबसूरत रचना के भाव स्त्री को गर्वोन्नत होने की भावभूमि पर खड़े होने का आधार प्रदान करते हैं -
हिम्मत कर निकली जब बाहर,
देहलीज लाँघकर आँगन तक ।
आँगन खुशबू से महक उठा,
फूलों की बगिया सजती थी........
अधिकार जरा सा मिलते ही,
वह अंतरिक्ष तक हो आयी...
जल में,थल में,रण कौशल में
सक्षमता अपनी दिखलायी.......
आज यहीं विराम लेते हैं।
आपकी स्नेहमयी प्रतिक्रियाओं और सारगर्भित सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी।
फिर मिलेंगे।
शुभ प्रभात भाई रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ठ चयन
सारगर्भित आलेख
आभार
सादर
आदरणीय रवींद्र जी,
जवाब देंहटाएंसुप्रभातम्
आपके साहसिक भूमिका के लिए नमन है आपको। ये सत्य तो है आप जिस कार्यक्षेत्र से संबंध रखते है उसके भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार एवं कुरीतियों को अच्छी तरह समझते है किंतु स्वीकारोक्ति इतनी सहज बहुत मुश्किल होती है।
बहुत ही विचारणीय संदेश दिया है आपने।
आपके महत्वपूर्ण लेख का इंतज़ार रहेगा।
बहुत आकर्षक प्रस्तुति, विविधतापूर्ण रचनाओं के चयन से सजा आज का अंक विशेष लगा। सभी रचनाएँ पठनीय है बहुत अच्छी है। सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ है।
आपके 'डेंगू पर जनहित में विस्तृत लेख' का इन्तजार रहेगा। आज की सुन्दर हलचल में 'उलूक' के पन्ने को भी स्थान दिया । आभार रवीन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात रवीन्द्रजी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और सतरंगी प्रस्तुति जिसे आप के नजरियेने और भी सूंदर बना दिया।
जिस ख़ूबसूरती से आप रचना को प्रस्तुत करते है उसका मोल बढ़ जाता है।
आप की कोशश ,मेहनत और आप की अद्भुत विचारशक्ति सब साफ नजर आती है।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार।
रवींद्र जी आप सदैव नविन एवं उत्तम प्रस्तुति पेश करते आए है और आपकी प्रस्तुति के पृष्ठभूमि का मैं कायल हूँ। अति सवेदनशील मुद्दे पर आपकी बेबाकी लेख को सलाम है। इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई एवं फिर से आभार रवींद्र भाई।
जवाब देंहटाएंजी सुप्रभात रविन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंविचारणीय सवाल आज की भुमिका में वर्तमान परिस्थितियों पर आपका दृष्टिकोण हमारी कुंद पड़ती मानसिकता पर त्वरित प्रतिक्रिया करता है. भाई जागो देखो क्या हो रहा है!! पर..व्यवस्था इतनी भयावह हो चुकी है,की हमारे प्रशन अनुत्तरित ही रहते हैं,ज्यादातर..... जिनके जवाब नहीं मिलते है बीमारियां आदमी की आर्थिक स्थिति देख कर नहीं आती,कब किस पर प्रहार करें ज्ञात नहीं कर सकते।
पर इस क्षेत्र की अनियमितता सवाल संशय पैदा करती है,कुछ पारदर्शिता होनी ही चाहिए इलाज एवं बिलिंग प्रक्रिया को लेकर,
आपने № डेंगू पर लेख का जिक्र किया है इंतज़ार रहेगा ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ..... ...आपका अनुभव हमे लाभान्वित करेगा विश्वास है हमारा.. ...!!! चयनित रचनाएं मनोहारी हैं विशेष कर नवोदितो को प्रोत्साहित कर इस मंच की उपयोगिता से अवगत कराना बहुत ही अच्छा प्रयास है ..इस कड़ी में सलिहा मंसुरी जी की प्रस्तुती अच्छी है..सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं..!!
शुभप्रभात....
जवाब देंहटाएंलाजवाब भूमिका के साथ सुंदर लिंक चयन....
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात आदरणीय..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचारशील भूमिका वर्तमान स्थिति को देखते हुए.. चयनित रचनाकारों को बधाई।
धन्यवाद
आज कल बीमार पड़ना गुनाह करने के बराबर हो गया है !
जवाब देंहटाएंमार्मिक संदेश
हटाएंबहुत ही अच्छा कलेक्शन है रवींद्र जी...साधुवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक संयोजन ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवींद्रजी,निजी चिकित्सालयों के द्वारा जनता को कैसे लूटा जाता है, कितना गुमराह किया जाता है इसकी एक भुक्तभोगी स्वयं मैं हूँ। आपके लेख का इंतजार रहेगा। हमेशा की तरह अच्छी रचनाएँ लाए हैं आप ! सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब प्रस्तुतिकरण ....उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंडेंगू पर आपके लेख का इंतज़ार रहेगा....
मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, एवं हार्दिक आभार, रविन्द्र जी !