आप कुछ भी सोचें
रब की भी स्व मर्जी
वो विपरीत जरूर सोचता है
उसे भी तो मनमानी की स्वतंत्रता है
पिछले साल(2016दिसम्बर) इतनी ठंढ़ पड़ी कि
इस साल(2017 दिसम्बर) पटना से
भाग जाने की योजना तभी बना ली
अब योजना है तो भागना ही है
लेकिन इस साल पौष में चैत्र का अनुभव तो
चलिए हम हो जाते हैं
मेहमान
सुख की लम्बी चाह और किसी के सत्कार को अपना अधिकार समझ लेने की भूल ।
दो चार दिन सच्चे आतिथ्य मिलने के बाद भी
ससुराल वालों के चेहरे पर दर्शाए जा रहे प्रेम को स्थाई ही समझना
और उनके कह भर देने से
“अरे दो चार दिन और रूक जाईए ना” ।
पाहुन परिंदे
धैर्य के साथ कोना-कोना और दरख्तों की एक-एक शाख को देखना पड़ता है.
कई बार निराशा तो इस क़दर होती है कि पूरी यात्रा के दौरान
किसी नये पक्षी का दर्शन ही नहीं हो पाता. लेकिन इनके सपने नहीं मरते.
कहा भी है कि सबसे ख़तरनाक होता है सपनों का मर जाना
इसलिए पाहुन है दामाद
देशाटन या पर्यटन की अभिलाषा में पदयात्री बनना पहली शर्त थी।
एक निश्चित दूरी तय करने के बाद यात्री किसी ठिकाने पर विश्राम करते थे।
इसे भी चरण ही कहा जाता था। ऐसे कई चरणों अर्थात
पड़ावों से गुजरती हुई यात्रा सम्पूर्ण होती थी। गौर करें चरणों से
तय की गई दूरी को विश्राम के अर्थ में भी चरण नाम ही मिला।
बाद में चरण शब्द का प्रयोग और व्यापक हुआ तथा ठहराव के अर्थ में
ग्रंथ के अध्याय, मुहिम के हिस्से या योजना के भाग, हिस्से या खंड के
रूप में भी चरण शब्द का प्रयोग चलता रहा।
प्राणों के पाहुन
कुछ गीला-सा, कुछ सीला-सा अतिथि-भवन जर्जर-सा
आँगन में पतझर के सूखे पत्तों का मर्मर-सा,
आतिथेय के रुद्ध कंठ में स्वागत का घर्घर-सा,
यह स्थिति लखकर अकुलाहट हो क्यों न अतिथि के मन में ?
प्राणों के पाहुन आए औ' लौट चले इक क्षण में l
पाहुन तुम दिल में आये हो
वरना क्या हस्ती थी मेरी,
वीरान पड़ी बस्ती थी मेरी,
आईं बहारें मेरे दर तक,
कुदरत का फरमान बनकर !
अब न मुझसे नजर चुराना,
कभी न अपना साथ छुड़ाना,
रह जाएगा बुत ये मेरा,
तुम बिन तो बेजान बनकर !
><><
फिर मिलेंगे
आदरणीया विभा दी,
जवाब देंहटाएंसुप्रभातम्,
सारगर्भित संदेश दिया आपने रब की मरजी चलाने का। ठंड भी लगता है मौसम की औपचारिकता निभा रही है। दी,हमेशा की तरह एक शीर्षक पर विविध रंग की रचनाएँ पढ़ने मिली। बहुत अच्छी लगी।
खूब आभार आपका दी।
आदरणीय दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
आज हमारी छुटकी हमसे पहले ही आ गई
सदा की तरह पाहुन
हम भी है पाहुन
सादर
वाह बहुत सुन्दर प्र्स्तुति।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपाहुन मन की उडान पाहुना है मन, इत उत डोलत फिरे लाखों करलो जतन। असाधारण प्रस्तुति दीदी जी एक शब्द को नाना रंगों मे ढाल कर इन्द्रधनुषी सज्जा।
जवाब देंहटाएंनमन सुप्रभात।
शब्द विशेष पर प्रस्तुतिकरण अनूठा है..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
सुंदर रचनाओं का चयन
सभी रचनाकारों को बधाई
सुप्रभात यशोदा जी सदैव की तरह सुंदर संकलन रचनाओ का अतुल्य आभार 🙏
जवाब देंहटाएंअद्भुत और विस्तृत सार पाहुन के कितने प्रकार पर सब आते कुछ देर के लिये इसीलिये पाते विशेष सत्कार !
प्राण , प्राण , दामाद ,परिंदे और दिलदार
क्षणिक सुख देकर जाये फिर बरसों का इंतजार !
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंयशोदा दी बहुत ही सुंदर संकलन.... पाहुन का बड़ा ही सत्कार करना पड़ता है
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या
जवाब देंहटाएंआदरणीय विभा दीदी की सारगर्भित एवं विचारणीय प्रस्तुति. बधाई.
आतिथ्य का मनोविज्ञान स्पष्ट करती आज की प्रस्तुति पाहुन( अतिथि) ने बिषय की स्पष्टता को रचनाओं के माध्यम से हमारे बीच विमर्श के लिये रखा है...
सभी रचनाएं अपना-अपना भाव और संदेश लेकर उपस्थित हैं. इस अंक के लिये सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें. आभार सादर.
वाह कमाल का संयोजन
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनायें
सभी रचनाकारों को बधाई आपको साधुवाद
सादर
बहुत सुन्दर उम्दा लिंक संयोजन...
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