सादर अभिवादन।
आज हम चर्चा करें राष्ट्रीय संवाद (Public Discourse) के घटियापने और चुनावी माहौल के बाद की साँप निकल जाने पर
लाठी पीटने जैसी कहावत पर।
चर्चा का निचला स्तर हमें स्वीकार्य क्यों होता चला जा रहा है ? "नीच" शब्द जिन्हें लक्षित करके बोला जाता है क्या उन्हें इसका मंतव्य नहीं बदल देना चाहिए। ऊँच और नीच एक मानसिकता है जो सदियों से हमारे परिवारों में सीमित दायरे में चर्चा का बिषय रहती आयी है। कुछ लोगों ने अपने आपको ऊँच घोषित कर लिया है और दीन-हीन तबके के लिए नीच जैसे शब्द को घृणा से भर दिया। यह हमारे दिमाग़ में बैठाया गया कुंठित हथियार है जिससे हम ख़ुद ही घायल होकर लहूलुहान होते रहते हैं। अब हमें इसे बूमरेंग बनाना होगा ताकि यह जहां से आया है वहीं लौटकर अपना असर दिखाए।
हिमाचल प्रदेश और गुजरात में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम सोमवार को ही आ गए लेकिन विश्लेषण अब तक चल रहा है जिसका आम जनता के लिए कोई महत्त्व नहीं है।
देश में आगामी महीने चुनावी सरगर्मियों से भरे हैं अतः कम से कम हम तो अपना मानस तैयार कर लें कि उस दौरान राजनीति हमारा इस्तेमाल करेगी तब हम अपने आपको कहाँ खड़ा पायेंगे।
सत्ताएं बदलेंगी या फिर पुनः बहाल होंगी लेकिन कुछ लोगों को अपनी थाली से ग़ायब होते भोजन की भी चिंता होती है। खाया-अघाया वर्ग भावनात्मक मुद्दों पर मर्यादाविहीन होकर दम्भी-अहंकारी रूप लेकर अब उभर रहा है लेकिन इस वर्ग से किसानी , मज़दूरी या पैदल सेना ,निचले सुरक्षा तंत्र , दंगों या सड़कों पर भीड़ द्वारा किये जा रहे न्याय में अपना जीवन खोने के लिए उँगलियों पर भी गिनने को नाम नहीं मिलते तो हमें आगे बढ़कर इनके मुखौटे उतारने होंगे और जनता की आँखें खोलनी होंगीं।
आइये अब नज़र डालें आज की पसंदीदा रचनाओं पर -
आदरणीया रोशी अग्रवाल जी जानवरों से जीने की कला सीखने का आह्वान करती हैं -
गिरगिट सरीखे रंग बदलना
कबूतर मानिद आँख मूँद लेना
गीध सी तेज नज़र ,बहुत कुछ है सीखना
जिन्दगी जीना है अगर तो पड़ेगा जरूर सीखना
लोमड़ी सी मौकापरस्ती ,इन जानवरों से सीखो जीना
देखे हैं हमने ढेरों पारंगत इन विविध कलाओं में
सीको दोस्तों इनसे कुछ बरना मुस्किल हो जायेगा जीना
समय बलवान होता है इस धारणा को पुष्ट करती भाई कुलदीप जी की सारगर्भित रचना -
हमने अलिशान महल को,
खंडर होते देखा है,
हरे-भरे उपवन को भी,
बंजर होते देखा है....
होनी तो होकर रहती है,
मानव चाहे जो भी कर,
वक्त एक दिन बदलेगा,
रख भरोसा ईश्वर पर.....
बाल-साहित्य को समृद्ध करते आदरणीया मीना जी के दो बाल गीत। हालांकि मीना जी का सृजन गंभीर बिषयों पर ज़्यादा मिलता है जहाँ भाषा और भाव अपना चमत्कार उत्पन्न करते हैं। यहाँ भी उनकी भाषा क़ाबिल-ए-ग़ौर है -
नृत्य कार्यक्रमों का
निर्देशन करवाएँगे मोर,
गायन के संचालन में
कोकिलजी मग्न विभोर !
शेरसिंह और हाथीजी तो
होंगे अतिथि विशेष,
आमंत्रित सारे पशु-पक्षी
कोई रहे ना शेष !
भूतकाल, वर्तमान और भविष्य का गम्भीरतापूर्वक जाएज़ा लेती आदरणीया आशा सक्सेना जी की उत्कृष्ट रचना का आनंद लीजिये -
बढ़ती जनसँख्या व् बेरोजगारी
पहले एक कमाता
दस का पालन करता
वर्तामान में सब कमाते
पर घर न चलता
हर समय कर्ज में दबे रहते
मंहगाई को पानी पी पी कोसते
कल बिदाई की बेला में
ये समस्याएँ जुड़ जाएंगी
बीते कल की सूची में
मानव व्यवहार में आती तब्दीलियों पर अपनी पैनी नज़र गड़ाई है आदरणीया डॉ. प्रतिभा स्वाति जी ने। स्तब्ध कर देने वाली कहानी से गुज़रकर महसूस कीजिये सामाजिक मूल्यों का स्तर -
दिनेश ने बताया कि वो तो इंदौर से उज्जैन अपनी बहन से राखी बंधवाने आया था . कुछ पुराने दोस्त मिल गए तो पिला दी . थोड़ी ज्यादा पी थी तो लड़खड़ाकर गटर में गिर गया .इतने में पुलिस की गाड़ी गश्त को निकली तो दोस्त छुप गए . पुलिस गई और दोस्त आके निकालते उसके पहले ही सेवाधाम वालों ने उसे अपनी जीप में डाला और यहाँ लाकर बन्द कर दिया . उसका रोना मुझे गुस्सा दिला रहा था .... वाह गजब का N.G.O. है !
ब्लॉग जगत में सनसनी-सा अनुभव कराती नवोदित रचनाकार अनीता लागुरी (अनु) की उपस्थिति हमारे समक्ष नए बिषयों पर चिंतन की भावभूमि तैयार करती है। देश में राष्ट्रीय-चरित्र पर प्रकाश डालती एक संवेदनशील कवियत्री की मर्मस्पर्शी रचना -
हे मानव रोक ले....!
ख़ुद को तू ..…..
मत बन दानव...
याद रख तू !
हम सब एक हैं
न तू हिन्दू
न मैं मुसलमां
स्वार्थ की वेदी पर
ख़ुद ही न बन जाए अस्तित्वहीन तू..!
बचा ले अपनी संवेदनशीलता
जगा ले सोई मानवता
आदरणीया रेणु बाला जी अपनी रचनाओं से कम जानी जाती हैं
ब्लॉग जगत में। इसके बरक्स (विपरीत) वे अपनी सारगर्भित,
विचारशील एवं बिषय को परिभाषित करती विशिष्ट टिप्पणियों
से पहचान स्थापित कर चुकी हैं।प्रस्तुत रचना उन्होंने
साहित्य जगत को विशेष उद्देश्यों से सौंपी है-
उठो ! खोल दो मन के द्वार !
सुनो गौरैया की चहचहाहट और -
भँवरे की गुनगुनाहट में उल्लास का शंखनाद ! !
देखो बसंत आ गया है ---,
निहारो रंगों को -महसूस करो गंध को -
जो उन्मुक्त पवन फैला रही है हर दिशा में -
हर कोने में !
स्पर्श करो सौदर्य को -
जिसमे निहित है जीवन की सार्थकता !
महिलाओं के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और यौन हिंसा के माध्यम से महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भारतीय संदर्भ में लगभग सामान्य हो गया है। विभिन्न परिस्थितियों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा विशेष रूप से दर्ज की जा रही है, जहां महिलाओं की जनसंख्या पहले से ही हाशिए पर आ गई है, ऐसे सशस्त्र संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में, बड़े पैमाने पर विस्थापन से गुजरने वाले क्षेत्रों जनजातीय क्षेत्रों और दलित आबादी में महिला पहले से ही कमजोर हैं, और संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में और भी अधिक कमजोर हो जाती है ।'महिलाओं के न्याय' की रूपरेखा में न केवल महिलाओं के खिलाफ हिंसा और भेदभाव के विशिष्ट रूपों की रोकथाम शामिल है, बल्कि भोजन और स्वास्थ्य के अधिकार सहित अन्य सभी मानव अधिकार शामिल हैं; विकलांगता, आवासीय श्रम अधिकार; दलित / आदिवासी / आदिवासी अधिकार; पर्यावरण न्याय; आपराधिक न्याय आदि समानता और लिंग न्याय के इस समग्र दृष्टिकोण के साथ, हमें महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष को जारी रखने के लिए गरीब और सीधे महिलाओं के साथ-साथ कानूनी शिक्षा, वकालत और नीति विश्लेषण के साथ सीधे काम करना होगा।
आज बस यहीं तक।
अब आपसे इजाज़त (Ijaazat ) चाहेंगे।
आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं और सुविचारित सुझावों की प्रतीक्षा में।
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
सादर
हर रंग को समेटे हुए जीवन की वर्जनाओ से परीचित कराती उम्दा रचनाओं का संकलन,साथ ही व्यवस्था पर चोट करती आपकी चिरपरिचित भुमिका हर बार की तरह इस बार भी सोचने पर विवश करती है कि हम आखिर रुक कहां गए, हमारी ही ताकत का हमारे खिलाफ दुरुपयोग कब तक...!सियासी खेल में अगर कोई वर्ग झेलता हे तो वो है मध्यम एवं निचला वर्ग ..बस जीये जा रहे है क्योंकि जीवन अनमोल है, कुछ चंद साजिशे दिशा और ग्रहो की चाल तय कर रही है वक्त रहते सबक ना ली तो ... दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में जिस तरह सबसे ज्यादा उपयोग की जानेवाली मनपसंद रजाई की छीना झपटी होती है और.. फ़रवरी के अंत में दोबारा कहीं घर के कोने में फेंक दी जाती है ऐसी वाली हालत ना हो जाए हमारी रजाई बनकर...!
जवाब देंहटाएंआर्थात जरुरत के मुताबिक उपयोग किए जायेंगे फिर अगले ठंड तक राम भरोसे किसी कोने की शोभा बढ़ाएंगे... अपनी उपस्थिति समझनी होगी..सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी भी "आमनवीयता के गठजोड़ "को शामिल करने के लिए बहुत आभार.! एवं विचारों को दिशा देती आज की शानदार गुरु्वारीय अंक के लिए आपको भी बधाई....!
वाह
हटाएंआकर्षक रोचक प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंआपकी भूमिका से उपसंहार तक सब इतना गजबहोता है जैसे सारे रचना कारों की रचना का मसौदा प्रस्तुत कर दिया आज के परिवेश मे।
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब प्रस्तुति सभी रचनाऐं उत्कृष्ट सभी स्थापित और नये रचना कारों को बधाई।
सुप्रभात शुभ दिवस।
आदरणीय रवींद्र जी,
जवाब देंहटाएंसुप्रभातम्।
दिनोंदिन गिरते नैतिक स्तर से ऐसा ही प्रतीत होता है कि मर्यादा में रहकर शायद राजनीति में अपने लक्ष्य को पाया नही जा सकता। जनता की मासूम भावनाओं से खिलवाड़ करके अपना मकसद हल करते है सभी। आज जरुरत है जनमानस को अपनी आँखें खोलकर रखने की अपने विवेक से सोचने की, अपनी ताकत पहचानने की वरना हमेशा की तरह हम राजनीतिक मोहरा बनते रहेंगे।
रवींद्र जी आज के अंक में सशक्त और विचारोत्तेजक भूमिका रखी है आपने बेहद उम्दा रचनाएँ है साथ में
बहुत ही आकर्षक प्रस्तुति। लाज़वाब संकलन बना है। मेरी हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
सभी चयनित रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
वाहःह बहुत उम्दा संकलन, बेहतरीन रचनायें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा अंक। प्रभावशाली भूमिका और शानदार प्रस्तुतियों का लाज़वाब समावेश अंक को उत्कृष्ट बना गया है।
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाऐं उत्कृष्ट सभी रचनाकारों को बधाई...
हरेक रचना लाजवाब जीवन की सत्यता को दर्शाती हुई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर....आदरणीय यादव जी....
जवाब देंहटाएंआभार आप का....
विभिन्न रंगों से सजी प्रभावशाली भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंआभार।
बेहतरीन खूबसूरत पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत ही आकर्षक प्रस्तुति ! मुझे शिरकत का मौका दिया शामिल करके ..... तहेदिल से शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविन्द्र जी -- आज के संकलन में शानदार भूमिका से रूबरू हो --सब रचनाओं का अवलोकन कर - आज के लिंकों पर हार्दिक संतोष हुआ | आपने बहुत ही प्रभावी शैली में अपनी बात रखी है | चुनावों में जनता का भावनात्मक शोषण इस तरह से लिया जाता है कि लोग समझ नहीं पाते कि कितनी चतुराई से अनचाही विचारधारा उसके अन्दर रोप दी गयी है | राजनीति से धीरे धीरे शिष्टाचार और मर्यादाओं का गायब होना चिंता का विषय है |आज निजी आक्षेपों से लेकर मिथ्यारोपों तक हर दाव खेलकर बस कुर्सी हथियाने की मानसिकता शेष रह गयी है | एक शब्द एक वाक्य से चुनावों के परिणाम बदल जाते हैं | बस खूबी होनी चाहिए कि आप धारा का रुख मोड़ने में माहिर हों | बहन अनिता लान्गुरी ने विषय को विस्तार देते बड़ी ही सार्थक बात कही कि हमें रजाई बनने से बचना होगा | विवेक से इस समस्या को सहज ही सुलझाया जा सकता है | हमें निम्न मानसिकता से भरी राजनीति से परहेज रखना होगा |आजके लिंक की सभी सार्थक रचनाएँ पढ़कर मन को असीम आनंद की अनुभूति हुई | मेरी रचना को स्थान देने और मेरा उत्साह बढ़ाते प्रेरक शब्दों के लिए आपकी हार्दिक आभारी हूँ |आजके लिंकों के सफल संचालन पर आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र जी, बहुत ही प्रभावशाली भूमिका एवं सुंदर रचनाओं से सजा हुआ हलचल का अंक मन को प्रसन्न कर गया। मेरी रचना को शामिल करने एवं मनोबल बढ़ाते शब्दों के लिए आपकी मनपूर्वक आभारी हूँ। देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी। सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंvaah bahut sundar..
जवाब देंहटाएं