ऐसा लग रहा है..
ये सत्रह अब जा रहा है
दुखी होते हैं सब....जब
अपनी उमर के 17,18,19 वर्ष
गुज़र जाते हैं..और सिर्फ..
यादें छोड़ जाते हैं...
उसी उमर का एक सेंस ऑफ ह्यूमर....
दिस इज़ चीटिंग....
धर्म भाई मीन्स नॉट रीयल ब्रदर,
धर्म बहन मीन्स नॉट रीयल सिस्टर,
धर्म पिता मीन्स नॉट रीयल फ़ादर,
देन....व्हाई....??
धर्म पत्नी मीन्स रीयल वाईफ??
दिस इज़ प्योर चीटिंग.... :(
मन तो करता है....आज रचनाएँ न पढ़वाऊँ
यादें बिखेरता चलूँ...पर
विवश हूँ.....
देखिए आज की पसंद....
लफ़्ज मेरे तौलने लगे.. श्वेता सिन्हा
अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे।
दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।।
पलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम।
उम्रे-रवाँ के ख़्वाब सारे डोलने लगे।।
बेचारा गुल्लक..... रश्मि प्रभा
गुल्लक को हिलाते हुए
चन्द सिक्के खनकते थे
उनको गुल्लक के मुंह से निकालने की
जो मशक्कत होती थी
और जो स्वाद अपने मुंह में आता था
उसकी बात ही और थी
वह रईसी ही कुछ और थी !
दोनों ही गूँगे......सदा
झगड़ पड़े सच और झूठ
तक़रार जब
हद से ज्यादा होने लगी
परिवेश...राकेश श्रीवास्तव
तुम चाहते हो शांति,
तुम छुप जाते हो अपने,
वातानुकूलित विचारों में,
और दिखते हो शांत,
पर तुम्हें नहीं मिलती,
जिसे तुम चाहते हो।
मुद्दतों बाद.....पुरुषोत्तम सिन्हा
खिला था कुछ पल ये आंगन,
फूल बाहों में यादों के भर लाया था मैं,
खुश्बुओं में उनकी नहाया था मै,
खुद को न रोक पाया था मैं,
मुद्दतों बाद....
फिर कहीं खुद से मिल पाया था मैं.......
एक तो महकी फिजा है ......डॉ. इन्दिरा गुप्ता
रफ्ता -रफ्ता, बेलौस मेरी
रूहें कलम लिखने लगी
हम नशीनो नज़्म मेरी
यकसां गुनगुनाने भी लगी !
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं.....राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
मैं मन्दोदरी बनूँ कैसे.... सुधा देवराणी
हाँ ! सही कहा ; पतिदेव !
कर्तव्य और फर्ज भी है यही मेरा
और यही कामना भी रही सदैव कि-
सफलता मिले तुम्हें हर मुकाम पर
लेकिन मैं प्रभु से प्रार्थना ये करूँ कैसे ??
कपटी, स्वार्थी, अहंकारी और भ्रष्टाचारी
बन जाते हो तुम सफलता पाते ही ...!!!!
फिर मैं मन्दोदरी बनूँ कैसे ???......
वो गुलाबी स्वेटर....अनीता लागुरि
उन रंग-बिरंगे
ऊनी-धागों में छुपी
तुम्हारी खिली-सी मुस्कुराहट,
ढूँढ़ता रहा वह मख़मली एहसास
जब प्यार से कहती थी मुझे
ऐ जी ....!
प्लीज़ चाय...
मेरे लिए भी.....!!
आज...
अब...
बस...
दिग्विजय
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंखुश कित्ता सी
सादर
सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतीकरण
सुप्रभात सुंदर संकलन आभार आपका
जवाब देंहटाएंसुप्रभात आदरणीय जी,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन आपने प्रस्तुत किया.एंव प्रस्तुता की भूमिका में छोटा सा व्यंंगय का पुट मुस्कराते हुए ये सोचने पर विवश करती हैं की नये साल का स्वागत करें या जिंदगी के कम होते पलों का मनन..कितनी तेजी से समय गुजरता जा रहा है...एक अच्छे विषय के साथ दिन की शुरुआत.सभी रचनाएं मनभावन हैं ... चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं...
बहुत ही उम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनायें
वाकई, बहुत सुंदर प्रस्तुति!!!! बधाई!!!
जवाब देंहटाएंअतुलनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं
सप्रभात
जवाब देंहटाएंसुंंदर संकलन,सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
आभार।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाआआह सभी लिंक लाजवाब ... बधाई सहित शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन.....
जवाब देंहटाएंमेरी चना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं हृदय से आभार....
बेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद।
बेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार....
सुन्दर प्रस्तुति दिग्विजय जी एवं "पांच लिंकों का आनंद" के ब्लॉग पर मेरी प्रस्तुति को शामिल करने हेतु दिल से आभार है। इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई।
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