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रविवार, 24 जुलाई 2022

3464 ...पतित-पावनी गंगा को, जो सागर तक ले जाते हैं

सादर अभिवादन .....
बोल बम
मेरे कंप्यूटर में कुछ गड़बड़ी अब ठीक नहीं न हो पाई है
लगता है आमूल-चूल ओव्हर आइलिंग करवाना होगा
आज मिली जुली रचनाएँ पढ़िए ...



बहुत सी किताबों से गुज़रता हूँ रीनाजी की बदौलत। कुछ किताबें दो शे'र की होती है, तो कुछ दो मिसरों की। बहुत कम होता है कि किताब के हर लफ़्ज़ से महोब्बत हो जाए । शे'र को सदियों का सफ़र तै करना होता है। ए कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं जो आई और चली गई। यूँ तो एक ही शे'र काफ़ी होता है शाइर को अमर करने के लिए। बहुत कम शाइर होते है जिसे ए मौका मिलता है। फ़राग़ ने तो बहुत सी ग़ज़लें और नज़्में दी है। जिसे भुलाया नहीं जा सकता। शायद मेरी इक तरफ़ा महोब्बत भी कह सकते हो। ( ए ज़रूरी नहीं मुझे पसंद आए सबको पसंद आए)

कुछ फुटकर शेर ....
रो कर न सोया जाय तो क्या नींद का जवाज़
बिस्तर की हर शिकन में पड़ा जागता हूँ मैं

हूँ अपनी रौशनी की अज़ीयत में मुब्तला
जलता हुआ चराग़ हूँ उल्टा पड़ा हूँ मैं
********
मछलियां साथ कहाँ से लाऊँ
पूरी कश्ती में तो जाल आता है

नीले कर बैठता है अपने होंठ
सुर्ख़ी तालाब में डाल आता है



जब मैं लिखना चाहती हूँ प्रेम
खिल उठते हैं तमाम फूल
बरसने लगते हैं बादल
बच्चे खिलखिलाने लगते हैं,
गैया लौटने लगती हैं घर
चूल्हे में बढ़ने लगती है आंच
नदियों में कोई वेग आ जाता है
रास्ते मुस्कुराने लगते हैं
यह सब होता है भाषा के बाहर,




बीते कई दिन, बस यूँ ही, अनमने से,
अर्ध-स्वप्न सी, बीती रातें कई,
मलता रहा नैन, बस यूँ ही, जागा-जागा,
दूर, जीवन कहीं, रंगों से भागा
फीकी सी, सब उमंगें!




हाथ आंगळी पग पीछाणै
सुख रौ जाबक रूखाळो।
सूत कातता उळझ रया जद
सुळझावै नित निरवाळो।
तिल-तिल जळती दिवला बाती
च्यानण स्यूं अर्य बापू।।




• मृत्युभोज गलत नहीं है, गलत है...जिस बेटे ने जीते-जी माता-पिता को एक ग्लास पानी न पिलाया हो उसके द्वारा लोकलाज के डर से मृत्युभोज करवाना!
• मृत्युभोज गलत नहीं है, गलत हैं...मृत्युभोज में ढेर सारे व्यंजन परोसकर अपनी संपन्नता का प्रदर्शन करना! अपनी संपन्नता प्रदर्शित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को भोज देना





कटे पंखों के साथ
फड़फड़ाता पंछी
भरता आह
देख अनंत आकाश को
पंख है जरुरी
लक्ष्य के लिए
पंख मत कटने दो
पंख हैं तो सब कुछ है।


चरैवेति का पाठ पढ़ाने, जो धरती पर आकर के,
पतित-पावनी गंगा को, जो सागर तक ले जाते हैं।
आसमान में जो उगते हैं, वो बादल कहलाते हैं



आज बस

सादर 

9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात मित्रों।।।। पटल पर सुर्खियों जैसी खुबसूरती से रखी रचनाओं के मध्य खुद को भी पाकर आह्लादित हो रहा हूं। सभी को नमन व शुभकामनाएं।।।।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीया सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर सार्थक और पठनीय अंक ।हर रचना पर जाना हुआ ।बेहतरीन चयन । आपका बहुत बहुत आभार दीदी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा संकलन यशोदा दी। मेरी रचना को पांच लिंको का आनन्द में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर संकलन।
    स्थान देने हेतु आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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