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सोमवार, 4 जुलाई 2022

3444 / जहां देखा उफान, लगा ली वहीं दुकान

 


नमस्कार !  रविवार को सोचा था  कि आज तो  सबकी  फुरसत  का दिन है , तो क्यों न मैं भी फुरसत का आनंद  उठा लूँ ..... बस इतना सोचा ही था  कि याद आया कि  मुझे तो कल के लिए   प्रस्तुति  बनानी है ....... बस  फुरसत  के पल हवा हो गए ........कोई बात नहीं  हम भी ऐसे ही तो छोड़ने वाले नहीं  तो ले आये हैं आपके लिए भी ....

फ़ुरसत में ... जहां देखा उफान, लगा ली वहीं दुकान


 मैंने  ठहाका लगाया, वह भी अंतरजाल के ठहाके स्टाइल में ‘हाहहहहहहहहहाऽऽआह ..।’

इस तरह का ठहाका जब कभी चैट बॉक्स में लिखता हूँ तो यह ठहाका सदैव एक ‘आह..’ संबोधन के साथ ही समाप्त होता है। कितनी भी सतर्कता क्यों न बरतूँ, ये मेरा हिन्दी टाइपिंग टूल भी गाहे-बगाहे कुछ का कुछ अर्थ दे जाता है। अब तो मुझे खुद पर भी शक होने लगा है कि जो मैं लिखना चाहता हूँ, वही प्रकट हो रहा है या जो मेरे भीतर होता है और जिसे मैं प्रकट नहीं करना चाहता हूँ वह प्रकट हो जाता है।

जब ये व्यंग्य लिखा गया था तो उस समय अक्सर मठ और मठाधीशों की बात होती थी . .... वो समय चल रहा था ब्लॉग जगत  में  मठ और मठाधीशों  का ...... वैसे मेरा तो कोई मठ था ही नहीं ..... लेकिन कुछ लोगों  के अपने अपने ग्रुप थे  उसी पर एक हल्का फुल्का व्यंग्य आपने पढ़ा .......और ये  फुरसत भी हर रविवार को इस ब्लॉग पर नए नए मुद्दे ले कर आती थी ....  उम्मीद है कि आपको भी  आनंद  आया होगा .  अब बात आनंद की है तो ऐसे ही यदि ज़िन्दगी में भी आनंद लेना है तो अपने व्यवहार में  कुछ तो बदलाव लाना ही होगा . इसका  सार्थक  उदहारण है एक लघु कथा ....

आधी रोटी


रामू  एक-एक गर्म करारी रोटी सेंक कर, घी लगा कर ला रहा था। मनिका और  शेखर की प्लेटों में अभी रोटी बाकी थी परन्तु सुधा और नरेन्द्र की प्लेटों में रोटी खत्म हो गई थी ।जैसे ही रामू एक रोटी सेंक कर लाया तो नरेन्द्र ने हाथ बढ़ा कर रोटी लेकर दो टुकड़े करके आधी सुधा की प्लेट में और आधी अपनी प्लेट में रख ली। खाना खाते-खाते शेखर ने ये नोटिस किया और चुपचाप खाते रहे।

पति पत्नी के रिश्ते में यही समर्पण जीवन भर सुख का अनुभव कराता है  | लेकिन घर से बाहर निकलते ही , कुछ दूर चलते ही ........ ये सामजिक और राजनितिक रिश्ते क्या से क्या हो जाते हैं ........ एक समसामयिक ग़ज़ल पढ़िए .... 


हर बात पर उसे सदा खटका दिखाई दे
अपनों के बीच में भी वो सहमा दिखाई दे |

तो ये तो थी आज के माहौल पर लिखी एक सार्थक ग़ज़ल ...... एक और कविता पढवाना चाहती हूँ  आज के समय बढ़ते बच्चों के सामने पिता का क्या   अस्तित्व  रह जाता है .......



अब पिता भले ही मौन साध ले , लेकिन बारिशें हो रही हैं , कोयल कूक रही है ..... मौसम खुशनुमा है .... ऐसे में जुलाई पर लिखा एक गीत पढ़िए .... 

शाम जुलाई की 

न मीरा

चैतन्य हो गया 

भक्ति तुम्हारी है,

तुमने कर दी

कथा अमर

प्रभु सदन कसाई की.|


इस गीत में तो  बहुत सारे  दृश्य  देखने को मिले  लेकिन यहाँ देखिये कि कौन किसके रंग में रंगा है ........

नार अलबेली

बसी हूँ मैं ही "तेरी निश्चल हँसी में"

तेरे संग तेरी तन्हाई से खेली हूँ

कभी हूँ संग तेरे बन के सावन की घटा

कभी तेरे लिए एक अनबुझ सी पहेली हूँ

अब पहेली  बूझनी ही है तो आप बताइए कि  भारत  का कौन   सा स्थान या कोई  वस्तु   या फिर निर्माण     वैश्विक  धरोहर में आता है .......  नहीं पता न .......... तो यहाँ पढ़िए 

वैश्विक धरोहर

दुनिया में बहुत से ऐसे पुल हैं जिनको बनाने वाले इंजीनियरों की तारीफ़ सभी करते हैं ।उनकी खूबसूरती और मज़बूती की 

चर्चाएँ भी अक्सर हुआ करती है ।


अब आप मेरे पसंद के लिंक्स की धरोहर संभालिये .......... बाकी केवल लिंक्स आज की नयी पोस्ट के .....

समय को कैसे बदलें ?  वो अपनी ही चाल चलता है ....

और समय के साथ ऋतुएँ  बदलती हैं ...... कभी हरियाली तो कभी सूखा ... यही श्रृंगार है धरती का 


बुजुर्गों की ज़रूरत और   ज़रूरत बुजुर्गों की ....... अब इस वाक्य में अंतर करना है तो लघु कथा पढ़िए 

अजीब इत्तेफ़ाक है ?


  वॉलेट में क्या है और क्या नहीं ये तो पढ़ कर ही पता चलेगा ..... लेकिन दिमाग की अच्छी रस्साकशी है ये लघु कथा .


आज की प्रस्तुति को यहीं विराम देते हैं .......  तब तक के लिए नमस्कार ....... 

संगीता स्वरुप . 



25 टिप्‍पणियां:

  1. विटप सेतु ~
    वैश्विक धरोहर
    मेघालय में ।
    वाकई धरोहर है
    शानदार चयन
    आभार
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर लिंक ,पोस्ट धन्यवाद मेरा ब्लॉग शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन सूत्रों से सजा लाजवाब संकलन । मेरे सृजन को संकलन में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार । सादर सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  4. आपका थोड़ा हटकर जो चर्चा लिंक लगाने का अंदाज है, वह बड़ा रोचक व आकर्षक होता है
    बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको मेरी प्रस्तुति पसंद आई ,इसके लिए हार्दिक धन्यवाद ।

      हटाएं
  5. बहुत सुंदर संकलन।
    आपके श्रम को नमन दीदी।
    मैं समझ सकती हुँ आपका नित नये ब्लॉग लाने का प्रयास सराहनीय है।
    मुझे स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
    सभी को हार्दिक बधाई।
    सादर प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  6. आज के संकलन के हर सूत्र पर गई हर सृजन को पढ़ा। कहानी, आलेख, लघुकथा, कविता, गीत, गजल लगभग हर विधा को समेटे इस सुंदर पठनीय अंक में मेरी लघुकथा को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार दीदी ।
    विविधता और रोचकता इस अंक का सौंदर्य है ।
    आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा सादर नमन और वंदन ।

    जवाब देंहटाएं
  7. जी दी,
    नये पुराने सभी सूत्र बेहतरीन हैं।
    सोमवारीय विशेषांक में कुछ विविधता के प्रयास और उसके प्रभाव का सुंदर उदाहरण. है। हमेशा की तरह बहुत अच्छा संकलन दी।
    कविताओं के लिए क्या लिखे यार-----
    फुरसत में
    आधी रोटी
    ग्रामोफोन की तरह....।

    शाम जुलाई की
    उदास दिखाई दे
    नार अलबेली की तरह....।

    वैश्विक धरोहर है समय
    ग़ज़ल है या
    अजीब इत्तेफाक है..।।
    ----
    सप्रेम
    सादर प्रणाम दी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता
      प्रस्तुति की सराहना हेतु तहेदिल से शुक्रिया ।
      पता लग रहा है कि हर लिंक पर पहुँची हो , लेकिन वॉलेट न जाने कहाँ खो गया है । अजीब इत्तेफाक है न ।समय पर कुछ मिलता ही नहीं ....कहा भी था कि फुरसत में ग्रामोफोन सुनना लेकिन गुनगुनाते हुए बस ग़ज़ल गा लो ।अब तो ग्रामोफोन भी शायद वैश्विक धरोहर में शामिल हो जाये । अब ये आधी रोटी छोड़ो , जुलाई माह आया है धरा का श्रृंगार करने , भूमि भी अलबेली नार की तरह हरिया जाएगी ।
      अब बाकी क्या बचा ? अगले सोमवार बताएंगे ।

      हटाएं
  8. प्रिय दीदी, एक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार आपका।रोचक और सार्थक सूत्रों से सजा अंक मन को छू गया।यूँ सभी रचनाएं विशेष हैं पर-----किसी ग्रामोफोन की तरह----रचना ने भावुक कर दिया।एक स्नेही पिता का जो चित्र इस रचना में उभरा है, अत्यंत सराहनीय है ये पँक्तियाँ आँखें नम कर गई-------

    उन्हें निहारता है, पौंछता है और धर देता है पिता
    प्रतीक्षा करता है उनके आने की
    कि चख चख कर खिलादे उन्हें सब मीठे फल
    प्रेम में पिता हो जाता है शबरी का प्रतिरूप।!!////////
    मुझे लगता है कि सबको पढ़नी चाहिएजिससे पिता के प्रेम की गहराई का अन्दाजा लगा सकें!
    आज के सभी सितारों को सादर नमन।सभी को बधाई।आपको पुन साधुवाद और प्रणाम 🙏🙏🌺🌺🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय रेणु ,
      किसी ग्रामोफोन की तरह रचना सच ही मन को आद्र करने वाली है ।
      तुमको प्रस्तुति पसंद आई इसके लिए हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  9. बहुत सुंदर संकलन दीदी
    आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  10. उत्कृष्ट लिंको से सजी हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति...
    खेद है कि समय पर उपस्थित नहीं हो पायी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. खेद न करें ..... याद से आप यहाँ तक आयीं यही काफी है ।आभार

      हटाएं
  11. बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  12. हर बार की तरह रोचकता से भर पूर सामग्री लाजवाब प्रस्तुति शानदार चयन सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    सुंदर आकर्षक प्रस्तुति।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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