नमस्कार ! रविवार को सोचा था कि आज तो सबकी फुरसत का दिन है , तो क्यों न मैं भी फुरसत का आनंद उठा लूँ ..... बस इतना सोचा ही था कि याद आया कि मुझे तो कल के लिए प्रस्तुति बनानी है ....... बस फुरसत के पल हवा हो गए ........कोई बात नहीं हम भी ऐसे ही तो छोड़ने वाले नहीं तो ले आये हैं आपके लिए भी ....
फ़ुरसत में ... जहां देखा उफान, लगा ली वहीं दुकान
मैंने ठहाका लगाया, वह भी अंतरजाल के ठहाके स्टाइल में ‘हाहहहहहहहहहाऽऽआह ..।’
इस तरह का ठहाका जब कभी चैट बॉक्स में लिखता हूँ तो यह ठहाका सदैव एक ‘आह..’ संबोधन के साथ ही समाप्त होता है। कितनी भी सतर्कता क्यों न बरतूँ, ये मेरा हिन्दी टाइपिंग टूल भी गाहे-बगाहे कुछ का कुछ अर्थ दे जाता है। अब तो मुझे खुद पर भी शक होने लगा है कि जो मैं लिखना चाहता हूँ, वही प्रकट हो रहा है या जो मेरे भीतर होता है और जिसे मैं प्रकट नहीं करना चाहता हूँ वह प्रकट हो जाता है।
जब ये व्यंग्य लिखा गया था तो उस समय अक्सर मठ और मठाधीशों की बात होती थी . .... वो समय चल रहा था ब्लॉग जगत में मठ और मठाधीशों का ...... वैसे मेरा तो कोई मठ था ही नहीं ..... लेकिन कुछ लोगों के अपने अपने ग्रुप थे उसी पर एक हल्का फुल्का व्यंग्य आपने पढ़ा .......और ये फुरसत भी हर रविवार को इस ब्लॉग पर नए नए मुद्दे ले कर आती थी .... उम्मीद है कि आपको भी आनंद आया होगा . अब बात आनंद की है तो ऐसे ही यदि ज़िन्दगी में भी आनंद लेना है तो अपने व्यवहार में कुछ तो बदलाव लाना ही होगा . इसका सार्थक उदहारण है एक लघु कथा ....
आधी रोटी
न मीरा
चैतन्य हो गया
भक्ति तुम्हारी है,
तुमने कर दी
कथा अमर
प्रभु सदन कसाई की.|
इस गीत में तो बहुत सारे दृश्य देखने को मिले लेकिन यहाँ देखिये कि कौन किसके रंग में रंगा है ........
नार अलबेली
बसी हूँ मैं ही "तेरी निश्चल हँसी में"
तेरे संग तेरी तन्हाई से खेली हूँ
कभी हूँ संग तेरे बन के सावन की घटा
कभी तेरे लिए एक अनबुझ सी पहेली हूँ
अब पहेली बूझनी ही है तो आप बताइए कि भारत का कौन सा स्थान या कोई वस्तु या फिर निर्माण वैश्विक धरोहर में आता है ....... नहीं पता न .......... तो यहाँ पढ़िए
चर्चाएँ भी अक्सर हुआ करती है ।
विटप सेतु ~
जवाब देंहटाएंवैश्विक धरोहर
मेघालय में ।
वाकई धरोहर है
शानदार चयन
आभार
सादर नमन
हार्दिक आभार . सादर…,
हटाएंआभार
हटाएंसुंदर लिंक ,पोस्ट धन्यवाद मेरा ब्लॉग शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंबहुत ही सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंबेहतरीन सूत्रों से सजा लाजवाब संकलन । मेरे सृजन को संकलन में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार । सादर सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंसराहना हेतु आभार
हटाएंआपका थोड़ा हटकर जो चर्चा लिंक लगाने का अंदाज है, वह बड़ा रोचक व आकर्षक होता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
आपको मेरी प्रस्तुति पसंद आई ,इसके लिए हार्दिक धन्यवाद ।
हटाएंबहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंआपके श्रम को नमन दीदी।
मैं समझ सकती हुँ आपका नित नये ब्लॉग लाने का प्रयास सराहनीय है।
मुझे स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
सभी को हार्दिक बधाई।
सादर प्रणाम
सराहना हेतु शुक्रिया , अनिता ।
हटाएंआज के संकलन के हर सूत्र पर गई हर सृजन को पढ़ा। कहानी, आलेख, लघुकथा, कविता, गीत, गजल लगभग हर विधा को समेटे इस सुंदर पठनीय अंक में मेरी लघुकथा को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार दीदी ।
जवाब देंहटाएंविविधता और रोचकता इस अंक का सौंदर्य है ।
आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा सादर नमन और वंदन ।
मेरे दिए सभी सूत्रकन तक पहुँचीं , दिल से आभार ।
हटाएंजी दी,
जवाब देंहटाएंनये पुराने सभी सूत्र बेहतरीन हैं।
सोमवारीय विशेषांक में कुछ विविधता के प्रयास और उसके प्रभाव का सुंदर उदाहरण. है। हमेशा की तरह बहुत अच्छा संकलन दी।
कविताओं के लिए क्या लिखे यार-----
फुरसत में
आधी रोटी
ग्रामोफोन की तरह....।
शाम जुलाई की
उदास दिखाई दे
नार अलबेली की तरह....।
वैश्विक धरोहर है समय
ग़ज़ल है या
अजीब इत्तेफाक है..।।
----
सप्रेम
सादर प्रणाम दी
प्रिय श्वेता
हटाएंप्रस्तुति की सराहना हेतु तहेदिल से शुक्रिया ।
पता लग रहा है कि हर लिंक पर पहुँची हो , लेकिन वॉलेट न जाने कहाँ खो गया है । अजीब इत्तेफाक है न ।समय पर कुछ मिलता ही नहीं ....कहा भी था कि फुरसत में ग्रामोफोन सुनना लेकिन गुनगुनाते हुए बस ग़ज़ल गा लो ।अब तो ग्रामोफोन भी शायद वैश्विक धरोहर में शामिल हो जाये । अब ये आधी रोटी छोड़ो , जुलाई माह आया है धरा का श्रृंगार करने , भूमि भी अलबेली नार की तरह हरिया जाएगी ।
अब बाकी क्या बचा ? अगले सोमवार बताएंगे ।
प्रिय दीदी, एक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार आपका।रोचक और सार्थक सूत्रों से सजा अंक मन को छू गया।यूँ सभी रचनाएं विशेष हैं पर-----किसी ग्रामोफोन की तरह----रचना ने भावुक कर दिया।एक स्नेही पिता का जो चित्र इस रचना में उभरा है, अत्यंत सराहनीय है ये पँक्तियाँ आँखें नम कर गई-------
जवाब देंहटाएंउन्हें निहारता है, पौंछता है और धर देता है पिता
प्रतीक्षा करता है उनके आने की
कि चख चख कर खिलादे उन्हें सब मीठे फल
प्रेम में पिता हो जाता है शबरी का प्रतिरूप।!!////////
मुझे लगता है कि सबको पढ़नी चाहिएजिससे पिता के प्रेम की गहराई का अन्दाजा लगा सकें!
आज के सभी सितारों को सादर नमन।सभी को बधाई।आपको पुन साधुवाद और प्रणाम 🙏🙏🌺🌺🌹🌹
प्रिय रेणु ,
हटाएंकिसी ग्रामोफोन की तरह रचना सच ही मन को आद्र करने वाली है ।
तुमको प्रस्तुति पसंद आई इसके लिए हार्दिक आभार ।
बहुत सुंदर संकलन दीदी
जवाब देंहटाएंआपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा सादर नमन ।
शुक्रिया भाई ।
हटाएंउत्कृष्ट लिंको से सजी हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंखेद है कि समय पर उपस्थित नहीं हो पायी।
खेद न करें ..... याद से आप यहाँ तक आयीं यही काफी है ।आभार
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह रोचकता से भर पूर सामग्री लाजवाब प्रस्तुति शानदार चयन सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर आकर्षक प्रस्तुति।
सादर सस्नेह।