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बुधवार, 27 जुलाई 2022

3467...दिल-राग ऐसे छेड़े हैं,..

 ।।प्रातः वंदन ।।

'कुछ किताबें हमें सपने देखना सिखाती हैं, कुछ यथार्थ से हमारा सामना करवाती हैं, लेकिन जो बात सबसे अधिक मायने रखती है वह यह कि लेखक ने किताब किस ईमानदारी से लिखी है।' 

-पाउलो कोएल्हो

विचारपरक शब्दों के साथ बुधवारिय प्रस्तुति की आगाज़ खास अंदाज में...मतलब सावनी बतरस से..



सावन गुनगुनाता आया है,अनाम सन्देश लाया है,

बादलों की लुकाछिपी से,अंतर्मन मेरा हर्षाया है,

फुहार की टिप-टिप धुन ने,दिल-राग ऐसे छेड़े हैं,

सहमे हुए पग हैं मेरे,इस राह के रास्ते जो टेढ़े..

🌸🌸

सत्य क्या है ये जानना होगा

प्रश्न प्रश्न को यूं ना डालना होगा

 हम जहाँ रह रहे वहाँ हर पल

 साथ दुश्मन है मानना होगा,..

🌸🌸




 औरत और मर्द का रिश्ता इतना उलझा हुआ क्यों हो जाता है आखिर...और वो तब जब वो रिश्ता पति पत्नी का हो ? 

अभी ऐसे ही किसी की कुछ इसी" दरकते रिश्ते "की कहानी सुनते हुए पीछे पढ़ी हुई कुछ पंक्तियां याद आई कि " औरत और मर्द का रिश्ता  जो इंसान को इंसान के रिश्ते तक पहुंचाता है और फ़िर एक देश से दूसरे देश के रिश्तों तक... पर यह रिश्ता अभी उलझा हुआ है.. क्यूंकि अभी दोनों अधूरे हैं दोनों ही एक-दूजे को समझ..

🌸🌸

पेंच

 मैंने सदा चाहा 

तुम्हारा प्रेमपूर्ण होना 

जबकि मेरा प्रेमपूर्ण होना 

दशकों से छीज रहा है..

🌸🌸

अपने आप...

बरसा आकाश अपने आप

भीगी धरती अपने आप 

ज्यूँ तुम थे बरसे

और मैं थी भीगी..

🌸🌸

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️






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