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रविवार, 31 जुलाई 2022

3471 ...बाजे गाजे के संग बिसरे, घर की यादें आती है

सादर अभिवादन .....

बीत गए छः मास
कभी बरसकर ..तो
कभी तपकर
...
किसी ने पूछा..
राष्ट्रपति तो ठीक ही है..पर
राष्ट्रपिता भी ठीक ही है...
पर क्या ठीक नहीं है..
बताइए...अगस्त का महीना आने को है
दुरुस्त हो जाएगा

अब रचनाएँ ....



मैं नहीं दिल के हाथ बेचारा
तुम कहो तो भुला भी सकता हूँ।।

वो सरे शाम याद आने लगा
इक नया गीत गा भी सकता हूँ।।




तुम सब भले भुला दो ,
लेकिन मैं वह घर कैसे भूलूँ
तुम सब भूल गए मुझको
पर मैं वे दिन कैसे भूलूँ ?
छीना सबने, आज मुझे
उस घर की यादें आती हैं,
बाजे गाजे के संग बिसरे, घर की यादें आती है !





क़ैद हुआ उनमें फिर खुद ही  
कसता, घुटता, पीड़ित होता,
सच की एक मशाल जलाकर
अंधकार चैतन्य हटाता  !




सुनने में लगता कितना अजीब
हिंदी दिवस मनाना  हिंदुस्तानी
दैवी  भाषा तज किस बिना पर
अंग्रेजियत  फैशन मन में ठानी।





पूजास्थलों मे दौलत
का अंबार लगा
भिखारी बाहर
भूख और ठंड से
बेहाल नजर आए,
ऐ !प्रभु के बंदे
तू अब तक दौलत का
सही उपयोग न सीख पाये ।



यूँ तो तू दरिया और मैं बरसता पानी  
धरम हमारा एक है यही कहता है ज़माना

पर याराना न हो जो दोनों दिलों में
मुमकिन नहीं छत ओ  दीवार का एक होना




तुम्हें पाकर कैसे व्यक्त करूँ
समझ में आया ही नहीं
खुद को अभिव्यक्त करना
मेरे बस में कभी था ही नहीं
जिस राह चलना छोड़ा
बस छोड़ दिया

आज बस
सादर

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर सूत्रों के साथ सुसज्जित लाजवाब संकलन । संकलन में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार । सादर.. ,

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात! पठनीय रचनाओं के लिंक्स का सुंदर संयोजन, आभार मुझे भी आज की हलचल में शामिल करने हेतु!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर रचना प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. आभार आपका यशोदा जी, रचना पसंद करने के लिए!

    जवाब देंहटाएं

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