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सोमवार, 1 अगस्त 2022

3472 / बिहारी समझ बैठा है क्या ?

 

नमस्कार !  सावन का  महीना ....... इस वर्ष के सात माह समाप्त हो गए ....... कोरोना भी काफी कुछ कंट्रोल में हो चला है .....लोग आराम से एक स्थान से  दूसरे  स्थान पर आ - जा रहे हैं  ,   डर जो समाया हुआ था मन में  काफी कुछ कम हो  गया   है ........  तो ऐसे में  इंतज़ार करते करते   प्रश्न पूछा जा रहा है  कि कब आओगे ....... नेह की फुहार पड़ रही हैं .......

गावत मेघ मल्हार


मोतियन रूप धरे आए हैं

गावत मेघ मल्हार 

कंत तुम कब आओगे 

नेह की परत फुहार 


  चलिए इंतज़ार तो सही है लेकिन बहुत बार ये लगता है  कि  क्या हम इंच भर भी आगे बढ़ पाए हैं ?  या जहाँ खड़े थे वहीँ पर टिके हुए हैं ?  बड़ी जद्दो - ज़हद्द सी चल रही है प्रवीण जी के मन में ....

जहाँ से चले थे, वहीं पर खड़े हैं



वही प्रश्न हैं और उत्तर वही हैं,

नहीं ज्ञात यह भीसही या नहीं हैं,

समस्या भ्रमितहर दिशा अग्रसर है,

नहीं प्रश्न निश्चितसमुत्तर इतर है,

बहे काल कल कलरहे चित्त चंचल,

चले  रहे हैंविचारों के श्रृंखल,

चुने कौन समुचितउहा में पड़े हैं,

जहाँ से चले थेवहीं पर खड़े हैं।


अब जहाँ से चले थे  वहाँ  का तो पता नहीं  लेकिन अधिकतर लड़की की ज़िन्दगी में बहुत से पल ऐसे आते हैं कि उसे आगे बढ़ना ही होता है ....... जो नहीं बढ़तीं वो हमेशा दूसरों के कथन को ही मानाने को बाध्य सी होती रहती हैं ........पढ़िए एक रोचक और प्रेरक संस्मरण ......


लड़की की फोटो


एम.एम.एच. कॉलेज से ड्रॉइंग एन्ड पेन्टिंग में एम.ए. की पढ़ाई कर रही लड़की की शादी की बातें शुरु हो चुकी हैं। तो सबसे पहले तो एक फोटो की दरकार है लड़की की, वो भी स्टूडियो में मेकअप करके बनारसी साड़ी पहन कर और स्टैंड  पर हाथ रख कर पोज बनाते हुए ।सही अनुपात में हंसते हुए। एकदम सही अनुपात से…मतलब न थोड़ा सा भी ज्यादा कि बेशर्म लगे और न ही इतना कम जो घुन्नी लगे। लेकिन अब सवाल ये है कि बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? 

अब बिल्ली के गले में आखिर घंटी  बाँध  ही  ली  जाती है येन केन प्रकारेण ......  और आगे की ज़िन्दगी में न जाने कब और  कैसे  कुछ रूखे से भाव मन में समा जाते  हैं  ....लेकिन उन भावों को पूरी ग़ज़ल लिखने की प्रक्रिया से जोड़ कर कितना सरस बना दिया जाता है ........ पढ़िए आप भी ... 

ईरानी गलीचे पर फैलता इश्क 

गाव तकिये पर अपने आप को सहारा देते 

गिर गिर पड़ते शेर 

अपनी सरहदों को छोड़ हारमोनियम पर 

सर टिकाये 

काफ़िया - रदीफ़ |


जहाँ तक रुसवाई की बात करें तो  न जाने क्यों आज भी लड़कियाँ अपने सपनों को जी नहीं पातीं ........... कुछ परिवार का डर तो कुछ समाज का ...... इस बात को महसूस कर पायेंगे एक लघु कथा में ... 

 विसर्जन 

”न जाने कितनी छोरियों के स्वप्न डूबे हैं इसमें! पानी नहीं होता तो भी इसी में पटककर जाती।”

आँखें झुका पैरों में पहने चाँदी के मोटे कड़ों को हाथ से धीरे-धीरे घुमाती साठ से सोलह के पड़ाव में पहुँची बुआ उस समय की चुप्पी में शब्द न भरने की पीड़ा को आज संस्कार नहीं कहे।

"जल्दी ही जीना भूल जाती हैं औरतें कब याद रहता है उन्हें कुछ ?”


अब जीना न भूलें , इसके लिए ज़रूरी है कि ज़िन्दगी से कुछ  बतिया लिया जाए ........ जैसी भी है ..... अच्छी - बुरी ,  आड़ी - तिरछी .......

गुफ्तगू....ज़िंदगी से


हांकती गयी तुम,
और मैं भी दौड़ी बदहवास,
सोचा कम और भागी ज़्यादा,
कभी  ठिठकी, तो ठेल दिया,
कभी मुड़ी, तो धकेल दिया,
कभी दोराहों पर भटकाया,
कभी पतली गली में पटकाया,

 सच है कि ज़िन्दगी न जाने कब  कहाँ  पटक दे ..... इंसान सोचता कुछ है और उसके साथ होता कुछ और है ......ख़ास तौर से यदि आप अपने हक के लिए लडाई करें तो सही होते हुए भी आपको मुँह की खानी  पड़ सकती है ...... ऐसा ही एक नज़ारा  यहाँ भी है .....


रफ़ीक मियाँ कोर्ट के बाहर बुरी तरह से चीख रहे थे और अपने कपड़े नोच रहे थे.भीड़ आस पास तमाशा देखरही थी. कोइ बोला,”सत्तर बरस का बूढ़ा रोड पर नंगा होकर क्या कर लेगा...... फिर भी चिल्लाने दीजिये शायद हमारे देश की न्याय व्यवस्था को शर्म आ जाए!

अब न्याय व्यवस्था ही क्यों कोई भी व्यवस्था  आम आदमी को चैन कहाँ लेने देती है ..............यदि सच ही चैन से रहना है तो चैन के लिए आपको स्वयं ही प्रयत्न  करने  पड़ेंगे ..... और ये भी ज़रूरी नहीं कि आप कामयाब हो ही जाएँ ....... फिर भी पढ़ लीजिये शायद आपको कामयाबी मिल जाये ....

ऐसे ही एक दिन जब मैंने 'चैन नाम की चिड़िया'  को फिर से अपने जीवन के आँगन में चहचहाते हुए महसूस किया तो ख्याल आया कि आजकल ये कम ही आती है! कभी-कभी तो बहुत दिनों तक दिखाई ही नहीं देती!  कहाँ उड़ जाती है ? क्या इसे किसी नेता की नज़र तो नहीं लग गयी? या फिर मुझसे ही तंग आकर यह कहीं फुर्र हो जाती है? और फिर अचानक से प्रकट हो जाती है|

मुझको तो लगता है कि सच्चा चैन पाना है तो जो हम कर सकते हों वो हर संभव  दूसरों   की मदद करनी चाहिए ....  भले ही वो बहुत छोटी सी हो .... लेकिन वो करके जो ख़ुशी मिलती है ,वो वर्णित नहीं की जा सकती ........ ऐसा ही एक संस्मरण ....


आज एक बार फिर कारगिल से जुड़ी ये घटना याद आ गयी ……लड़ाई एकदम घमासान चल रही थी . शाम में दिल्ली के  विलिंगटन हॉस्पिटल से  एक डॉक्टर साहब का फोन आया ,मेरे पति से बात करना चाह रहे थे . मेरे यह कहने पर कि इस समय वो घर पर नहीं हैं बेहद परेशान लगे .......

देश के जवानों के लिए किया गया छोटा सा  कार्य  भी मन को बहुत प्रसन्नता से भर देता है ....ऐसे ही देश के जाने माने साहित्यकार के प्रति भी मन में आदर के भाव उमड़ते हैं ..... आज जब ये हलचल लगा रही हूँ  तो प्रेमचंद  जी की जयंती है .......और ये मेरे पसंदीदा लेखक हैं ....कौन भूल पायेगा ईदगाह को , या फिर बूढी काकी को ......कफ़न जैसी कहानियाँ अमर होती हैं .... इनका मूल नाम धनपत राय था ..... आप इनके बारे में पढ़िए ये रचना ....


ताप उदर का जब लहके,

मन की पीड़ा सह-सह के।

ज्वार विचार का उठता है,

शब्द-शब्द वह गहता है।

 प्रेमचंद जी  के लेखन को रेखांकित करती ये रचना मन में  बस  गयी है ........ ...... यूँ तो मन में न जाने क्या क्या बसा रहता है ...... सावन से ये हलचल शुरू की और आखिर तक आते आते फिर सावन की फुहारों ने ही  श्रृंगार किया हुआ है ..... कुछ दोहे देखिये ....

धरती का श्रृंगार


झूमर, कजरी लिख दिया,  कुछ सावन के गीत। 
गाऊँ जिसके साथ मैं,  मिला नहीं  वो मीत।। 

अब मीत मिले या न मिले ........ आपको ले चल रही हूँ उस काल में जब ब्लॉग के दुश्मन  फेसबुक  ने पदार्पण ही किया था ..... नया - नवेला  था .... लोगों ने हाथों हाथ लिया ...... और ब्लॉग का रास्ता भूल गए ..... खैर .........इस फेसबुक  के माध्यम से क्या बात निकल कर आई , इसका जायजा लें .....


हमारे पुराने  ब्लॉगर  ताला बहुत लगा कर रखते हैं .............खुद तो देख भाल करते नहीं  , शायद इसी लिए सुरक्षा का ज्यादा ध्यान रहता है ..... बस समझ लीजिये की हर फेस  बुक की तरह होता है ........ खैर ...... बुक की तरह होता है या नहीं लेकिन कभी कभी  कोई शब्द    अर्थ  के रूप में  आरूढ़  सा हो जाता है ........ मन के दर्द को व्यंग्यात्मक शैली में लिखने का प्रयास मात्र है ............


आजकल मैं सभ्य दिखने लगा हूँ। असभ्य तो मैं पहले भी नहीं थापर दिखता नहीं था। अब दिखता हूँ इसका अहसास मुझे अपनी पिछली दिल्ली यात्रा पर हुआ। दिल्ली विमान पत्तन से पूर्व भुगतान टैक्सी में सवार हो जब साउथ ब्लाक के लिए चला तो एक लाल सिग्नल पर टैक्सी को कुछ देर के लिए ठहरना पड़ा। एक सामान बेचने वाला टैक्सी के पास आया तो टैक्सी ड्राइवर ने बेची जा रही वस्तु का दाम पूछा। विक्रेता ने डेढ़ सौ कहा। इस पर टैक्सी चालक का जुमला था – “चल बे,..जा। बिहारी समझ बैठा है क्या

और इस  फुर्सत के बाद  और कुछ नहीं ............ वैसे भी  पठास मिटाने  के लिए इतनी डोज़ ज़रूरी है ......... ये हलचल की डॉक्टर संगीता स्वरुप  का कहना है ...😆😆😆 
पूरी डोज़ लीजियेगा ........बाकी अगले सप्ताह .........
 स्वस्थ रहें ........ मस्त रहें ........ दिए हुए लिंक्स  पढ़  लें ......

आपकी ही 
संगीता स्वरुप ..

42 टिप्‍पणियां:

  1. मजेदार प्रस्तुति
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर प्रणाम
    बिहारी हूँ... बिहारी ही समझा जाए
    कोरोना का धन्यवाद कि पूरे विश्व को पुनः बिहार का दर्शन हुआ... प्रत्येक प्रदेश से घर वापसी करते मजदूरों के कारण

    हमेशा की तरह आपकी प्रस्तुति शानदार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रोत्साहन के लिए आभार विभाजी ।

      हटाएं
    2. हम भी बिहार के ही हैं, भाई। आपकी बातें सही हैं, अनपढ़ तबकों में। अशिक्षित लोगों में ऐसी धारणाएं देखी गई हैं। जो पढ़े लिखे लोग है, उन्हे भलीभांति पता है कि प्राचीन भारत का इतिहास बस बिहार का इतिहास है। अपला, अहिल्या,गार्गी जैसी विदुषी महिला ऋषियों की भूमि है बिहार। यहां की महिला ऋषियों ने वेद की ऋचाएं लिखी। वेद की रचना में योगदान देनेवाले अनेक पुरुष ऋषियों की भूमि है बिहार। ऋचाओं के गेय होने के कारण बिहार की भाषाएं भी गेयता के तत्व से परिपूर्ण है।दीर्घतमा, याज्ञवल्क्य जैसे अनेक ऋषियों की ज्ञान गाथाओं से भारत का दिग दिगंत गुंजित है। कणाद, पतंजलि, गौतम आदि ऋषियों ने इसी धरती पर षड दर्शन रचे।मंडन मिश्र की पत्नी भारती ने शंकराचार्य को जीवन के गूढ़ तत्व का ज्ञान दिया। संसार में 1000 साल तक करीब राजधानी बने रहने का गौरव केवल रोम और पाटलिपुत्र को है। मगध साम्राज्य को सिकंदर का सेनापति सेल्युकस अपनी पुत्री हेलन को दे गया चंद्रगुप्त की पत्नी के रूप में..... कितना लिखें...
      सात समद की मसी करों
      लेखनी सब बरनाई।
      धरती सब कागद करों
      बिहार गुण लिखा न जाइ।

      हटाएं
    3. विश्वमोहन जी ,
      आपकी लेखनी से बिहार की और भी अधिक धनाढ्यता का परिचय मिला । मनोज जी ने भी वहां से निकले राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों की बात की और शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी होने की बात कही आप तो और भी पहले इतिहास में ले गए । नमन है ऐसी भूमि को । आभार ।

      हटाएं
    4. इस शीर्षक और लेख पर कुछ समझ नहीं आता कि क्या लिखा जाये पर सच है कि बिहारी शब्द को जो एवें ही समझ रहे वे खुद असभ्य हैं।बिहार की धरा ने संस्कृतिऔर साहित्य को जितना पोषित किया, किसी और भूखंड ने शायद उतना ना किया हो। खेद है कि कालांतर में सत्ता लोलुप नेताओं ने अपने लोगों को देश निकाला देकर इस नौबत तक पहुँचाया कि संकीर्ण मानसिकता वाले लोग इस तरह के बडबोले पन से उन्हें आहत करने से बाज़ नहीं आते।सच्चाई यह है कि बिहार वालों ने अपनी जीवट और अथक श्रम
      की क्षमता से देश की श्रम व्यवस्था को मजबूती से थाम रखा है 🙏

      हटाएं
  3. बहुत ही संतुलित और दिल को छू लेने वाली रचनाओं के लिंक लगाए है। सब पर तो नहीं जा पाई लेकिन जितने पढ़ें सभी एक से बढ़ कर एक हैं। मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको रचनाएँ पसंद आयीं यह जानकर अच्छा लगा । बाकी भी ज़रूर देखिएगा । आभार ।

      हटाएं
  4. संंगीताजी, बहुत आभार आपका, इस कविता को अपने ब्लाग में स्थान देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  5. अपने खास अंदाज में इस सुंदर और संग्रहणीय सूत्र की प्रस्तुति की बधाई और हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. बढ़िया-बढ़िया लिंकों से सजी शानदार प्रस्तुति। आपने बिल्कुल सही कहा है कि पठास मिटाने के लिए पर्याप्त डोज दी गयी है। इसके लिए आपको कोटि-कोटि बधाईयाँ और शुभकामनाएँ। मेरी पोस्ट को यहां जगह देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. 😄😄😄 रविन्द्र जी बहुत शुक्रिया । हम तो झोला छाप डॉक्टर बने बैठे हैं , किसी को पठास हो न हो ज़बरदस्ती डोज़ दिए जा रहे ।
      सराहना हेतु हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  7. बढ़िया संकलन और प्रस्तुति, संगीत जी। विविधता है, जो पठास को मिटाने में सही मात्रा में है। कुछ कुछ रचनाएं दिल के करीब लगीं, जैसे लड़की की फ़ोटो और बिहारी समझा है क्या(मैं भी बिहार से हूँ)☺️
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार।🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रश्मि जी ,
      प्रस्तुति की सराहना के लिए तहेदिल से शुक्रिया । वैसे तो बिहारी समझ है क्या ? को पढ़ते हुए सब को ही महसूस होगा लेकिन बिहार के रहने वालों को ज्यादा अपना लगेगा । लेकिन लेखक ने जो बिहार की खासियत गिनायीं हैं उनको पढ़ कर माथा गर्व से ऊँचा हो जाता है ।

      हटाएं
  8. मजेदार लग रहीं हैं पोस्ट। देखते हैं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कोशिश तो की है सारा मसाला डालने की , कि स्वाद बेहतर मिले । अब जा कर देखिये कि ठीक से पका या नहीं । 😄😄😄

      हटाएं
  9. बहुत ही सुंदर संग्रहणीय अंक प्रस्तुत किया है दीदी आपने..आपकी इस सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचना का होना सच में बहुत प्रेरणादायी है..
    आज हर लिंक पर गई आनंद आ गया विविधता और नए पुराने ब्लॉग का संगम देखकर.. मन अभिभूत है आपके श्रम और श्रद्धा को देखकर..
    प्रवीण पांडे जी..जहां से चले थे वहीं पे खड़े हैं..जीवन संदर्भों का चिंतन मनन करती सुंदर कविता ।
    उषा किरन जी का आलेख बेटी का फोटो..बेटी के मन का गहन भाव बहुत ही सुंदरता से उकेरा है ।
    रचना दीक्षित की गजल रुसवाई....बेहतरीन अल्फाज़।अनीता सैनी की.. स्त्री मन को छूती सराहनीय लघुकथा ।
    रश्मि ठाकुर जी..जिन्दगी की भागदौड़ को बड़ी ही संजीदगी से परिभाषित किया
    अपर्णा बाजपेई की कब्जा..चिंतनपूर्ण लघुकथा ।
    वीरेन्द्र सिंह का आलेख..प्रतीकों के माध्यम से "चैन नाम की चिड़िया का सजीव और सुंदर वर्णन किया है ।
    मृदुला प्रधान जी का.. कारगिल युद्ध पर.. सुंदर और प्रेरक प्रसंग ।
    विश्वमोहन जी..की धनपत .महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद जी को श्रद्धांजलि स्वरूप उच्चकोटि की रचना ।
    धरती का श्यामल चरन जी के सार्थक दोहे ।
    देवेन्द्र पाण्डेय जी की रचना फेसबुक..साहित्य सृजन पर गहन विचार ।
    करण समस्तपुरी जी की का आलेख.. बिहारी समझ बैठा है क्या ? गहन विश्लेषण ।
    सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं 🌹🌹❤️❤️

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय जिज्ञासा ,
      आज तो तुम्हारी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ । हर लिंक पर जा कर पोस्ट को पढ़ना और उस पर विचार युक्त टिप्पणी करना , चर्चाकार को दुगनी ऊर्जा से भर देता है । सस्नेह आभार ।

      हटाएं
  10. बहुत अच्छा लगता है आपका संकलन .. आभार आपका..वहाँ पर कमेंट्स नहीं हो पाता है पता नहीं क्यों , कई बार कोशिश करती हूँ ..

    मृदुला प्रधान जी द्वारा

    जवाब देंहटाएं
  11. हार्दिक आभार आदरणीया संगीता दी जी आज के बेहतरीन अंक में स्थान देने हेतु।
    सभी को बधाई।
    सादर प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  12. जी दी,
    विविधापूर्ण विषयों के सुगंधित फूल की माला से आज के अंक का शृंगार अत्यंत नयनाभिराम हो रहा है। सभी रचनाओं पर आपकी इत्र सी भीनी खुशबू जैसी प्रतिक्रिया मनमोह रही है।
    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं हमेशा की तरह।
    आपने चुना है तो विशेष ही होगा यही ख़्याल आता है।
    रिमझिम बरखा
    धरती का शृंगार
    गावत मेघ मल्हार
    लड़की का फोटो देख
    ज्यादा न करो मीनमेख
    जाने क्यों है रूसवाई
    जहाँ से चले थे वहीं पर खड़े है
    विसर्जन किसका सोच में पड़े हैं
    चैन नाम की चिड़िया के बहाने
    गूफ्तगू ज़िंदगी से
    सुकून आता है बंदगी से

    कब्ज़ा आसान नहीं
    जो हो कारगिल से जुड़ी बात
    हमेशा होगें खट्टे दुश्मनों के दाँत

    धनपत छाये रहे
    फेसबुक पर
    अमिट हैं हस्ताक्षर जिनके
    साहित्य के चेकबुक पर

    जिसके माथे पर असभ्यता का ठप्पा है
    जो सरलता में बकलोलों का पप्पा है
    जो कभी नहीं ऐंठा है उसको
    बिहारी समझ बैठा है क्या?
    ----
    अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में
    सप्रेम प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गागर में सागर
      चंपारण की बागड़।

      हटाएं
    2. प्रिय श्वेता ,
      यदि तुमको मेरी प्रस्तुति विशेष लगती है तो तुम्हारी प्रतिक्रिया अतिविशिष्ट मिलती है । मन एकदम प्रफुल्लित हो जाता है ।
      हर लिंक को पढ़ना और अपने विशेष अंदाज़ में परिभाषित करना .... गज़ब की क्रिएटिविटी है । आज की टिप्पणी में दुश्मनों के दांतों को खट्टा करना और बकलोलों के पप्पा ज़बरदस्त लगा ।
      मैंने तो जाना है कि बिहार के लोग इंटेलिजेंट बहुत ज्यादा होते हैं । बाकी सबके अपने विचार हैं ।
      खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार ।

      हटाएं
  13. आपका प्रस्तुति तैयार करने का तरीक़ा बहुत अनूठा होता है ।अत्यंत सुन्दर सूत्रों का संयोजन ।
    सादर सस्नेह वन्दे आ . दीदी !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मीना ,
      बहुत बहुत शुक्रिया ,सराहना के लिए ।
      सस्नेह

      हटाएं
  14. उषा जी के द्वारा प्रेषित ----
    हमेशा की तरह पठनीय , रोचक अंक।अपना नाम भी शामिल देख लड़की को बहुत ख़ुशी हुई…धन्यवाद कह रही है आपको।😃
    कई लिंक पर जाकर कमेन्ट किया पर कुछ पर चाह कर भी नहीं हो पाया।
    विविधता लिए हुए आलेख, लघुकथा,दोहे, नज्म वगैरह सभी बहुत रोचक।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और आपको भी🙏
    आपके परिश्रम को भी नमन है🙏😊

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Usha Kiran लड़की के प्रसन्न होते ही बहुत सुकून मिला , वरना तो ये नाक पर मक्खी भी न बैठने देती । 😄😄😄
      प्रस्तुति की सराहना के लिए हार्दिक आभार .

      हटाएं
  15. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति, हम बिहारी हैं,
    बिहारी होने पर हमें गर्व है

    जवाब देंहटाएं
  16. प्रिय दीदी,आपकी प्रस्तुति हमेशा की तरह शानदार है।इतनी अच्छी रचनाएं शायद एक अर्से बाद पढी।सभी एक से बढ़कर एक।शीर्षक पढ़कर बहुत कुछ जानने को मिला।मैने तो बिहारियों को ब्लॉग जगत के बेताज बादशाहों के रूप मे पाया है।बौद्धिक्ता के साथ जीवन के असमान्य अनुभवों ने बिहारियों को अर्थ व्यवस्था के कर्णधार के रूप में प्रतिष्ठित किया है।बाकी तो जिसकी रही भावना जैसी---! जिज्ञासा जी की सरस,मोहक रचना बहुत अच्छी लगी तो उषा जी की मधुर किस्सागोई ने जी खुश कर दिया।बाकी सभी रचनाओं को पढ़ा, खूब आनन्द आया।प्रिय अनीता की भावपूर्ण रचना बहुत ही मार्मिक लगी तो प्रिय अपर्णा की कथा ने दूसरी बार आँखें नम कर दी।आपकी समीक्षा ने रचनाओं की महिमा द्विगुणित कर दी।बहुत-बहुत आभार और बधाई स्वीकार करें 🙏♥️♥️🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
  17. प्रिय रेणु ,
    सभी रचनाएँ तुमको पसंद आयीं यह जानकर मन हर्षित है । एक बिहारी ने व्यंग्यात्मक शैली में ये बता दिया कि आखिर बिहार क्या है और वहाँ से संबंधित लोग क्या विशेषता रखते हैं । सभी लिंक्स पर तुम्हारी विशेष टिप्पणी प्रस्तुति को सार्थक कर रही है । बहुत आभार ।।

    जवाब देंहटाएं
  18. हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति
    एक से बढ़कर एक लिंक्स एवं प्रत्येक लिंक पर आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया का तो क्या ही कहने....।🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहेदिल से शुक्रिया ,सुधा । यूँ ही हौसला बढ़ाती रहो ।

      हटाएं

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