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बुधवार, 17 अगस्त 2022

3488... वो चाँद जलवानुमा सा है.

 ।।प्रातः वंदन ।।

“शब्दों का उच्चारण वैसे ही करना चाहिए, जिस प्रकार व्याघ्री अपने बच्चे को मुँह में दबाकर चलती हुई, न तो उसे अधिक दबाए रहती है कि उसे पीड़ा हो, न ही इतनी ढिलाई से कि शावक जमीन पर गिर जाए।”

पाणिनि

कुछ दुनियादारी की बातें हैं सो आज हम जानी पहचानी पर खास पंक्तियों से शुरुआत करतें हुए लिंकों की ओर बढ़ते हैं..✍️

किताब

इन दिनों एक किताब पढ़ रही हूँ 'मृत्युंजय' । यह किताब मराठी साहित्य का एक नगीना है....वो भी बेहतरीन। इसका हिंदी अनुवाद मेरे हाथों में है। किताब कर्ण का जीवन दर्शन है ...उसके जीवन की यात्रा है।..

मेरी गली में वो चाँद जलवानुमा सा है..,


तेरी यादो का कुछ धुँवा सा हैं,
मेरी गली में वो चाँद जलवानुमा सा है,

आँखे जैसे सूरज की पहली किरण,
तेरा चेहरा जैसा दुवा सा हैं,..

बँट रही है आज देहरी

रो रहे आँगन घरों के

नींव हिलती देख गहरी

मौन करता था बसेरा

झुर्रियों में पीर प्रहरी।

माया जागरत हुई

 आज के युग में

 इसी दुनिया में 

हमने संसार से बहुत कुछ सीखा 

छल छिद् से  न  बच पाए 

ना ही कुछ सीखा 

ना ही कुछ बन पाए |

माया नगरी में ऐसे फंसे

आज़ादी के पचहत्तर साल ...


आज़ादी के पचहत्तर साल !!!
लिया था हमने जन्म आज़ाद भारत में,
लेकिन शहीदों की 

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

7 टिप्‍पणियां:

  1. शुप्रभात
    इस मंच पर आना सदा ही एक सुखद अनुभूति है
    मेरी रचना को सम्मान देने के लिये आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं

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