शीर्षक पंक्ति: आदरणीया रंजू भाटिया जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स
के साथ हाज़िर हूँ-
बुद्धि न आई...!
हाँ तो नहीं आई, क्या करें तो ?
ये मेरी जिंदगी, तुम कौन ?
सबकी पुड़िया बना रखो न अपनी जेब में
और हटो एक तरफ, आने दो जरा
कुछ ताजी हवा , कुछ खुशबू
सतरंगी किरणें, कुछ उजास
भरने दो लम्बी साँस…!
डी एच लारेंस की कविता : सेल्फ पिटी का अनुवाद
एक छोटी चिड़िया
किसी बर्फीली रात में शीत के
प्रकोप से मर जाती है
बिना कभी अपने आप पर तरस खाये ।
ऐसा सुंदर गाँव हमारा.........
हर घर में गौशाले होते,सबको मिलता है दूध दही।
गोबर से लिपते गलियांँ आँगन, पावन हो जाती है मही।
हर गांँव वृंदावन जैसा लगता है सदा उजियारा।
ऐसा सुंदर गाँव हमारा........
यूँ ही पूजा करते करते
कितने ही युग बीत गये
बंद पलकों में ही न जाने
कितने जीवन रीत गये
खोलो नयन अब अपने कान्हा
पलकों में तुम को भरना है
इस समाज को बदलना नहीं, फूंकना पड़ेगा...
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंसादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
आह्ह
जवाब देंहटाएंसामयिक उम्दा लिंक्स का चयन
गज़ब
बहुत अच्छी रचनाओं वाला अंक
जवाब देंहटाएंसुजाता प्रिय समृद्धि
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर संकलन
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