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बुधवार, 3 अगस्त 2022

3474... मैं सघन अरण्य..

 ।।प्रातः वंदन ।।

"कविता की दो पंक्तियों के बीच, मैं वह जगह हूँ 

जो सूनी-सूनी-सी दिखती है हमेशा !

यहीं कवि को अदृश्य परछाईं घूमती रहती है अक्सर 

मैं कवि के ब्रह्मांड की एक गुप्त आकाशगंगा हूँ शब्द यहाँ आने से अक्सर आँख चुराते हैं..!!"

राजेश जोशी

प्रस्तुतिकरण के क्रम को आगें बढ़ातें हुए नजर डालें

आज..प्रेमचंद के साहित्य और जीवन दोनों ही में खूबियां , खामियां दोनों हैं✍️


प्रेमचंद के जीवन में दो पत्नियों के अलावा और भी कई सारी स्त्रियां थीं। यहां तक कि उन की सौतेली मां भी। शिवरानी देवी लिखित प्रेमचंद घर में यह बात उभर कर सामने आई है। निर्मला उपन्यास उन की ही..

💮

कुछ कहता है सावन

अपने मन के एक छोटे से कोने में मैने बना रखी है एक सुंदर सी गली जिसका नाम रखा है मायका। जिसमें रहती हैसुमधुर यादें, अल्हड़ बचपनखट्टी मीठी बातेंशरारतें, और सखियां 

💮

अपरिभाषित पल - -

 


मायामृग की तरह भटका हूँ मैं सघन अरण्य
से ले कर विस्तृत आकाश गंगा के रास्ते,
फिर भी अशेष ही रही नील मायावी..
💮

   लघु कवितायें 


आज मुद्दतों बाद उनसे हुआ सामना
उनसे नजरें मिलीं और फिर झुक गईं
फिर पहले सी हुई मन में वही गुदगुदी 
बंद पंखुड़ियाँ उल्लसित फिर खुल गईं 
💮

दूरी

निश्चय ही कोई पूर्व वाला  तड़पा होगा
किसी उत्तर वाले से मिलने..
।।इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️


4 टिप्‍पणियां:

  1. राजेश जोशी जी की लिखी पंक्तियों से प्रारम्भ कर ..... प्रेमचंद जी के विषय में नई जानकारी युक्त हलचल अच्छी रही । आभार ।

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