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शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

3448....साधो! दरस परस सब छूटे

 शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।

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गली-मुहल्लों, 
चौक-चौराहों में बना
विशाल हवन कुंड 
ये किस यज्ञ की तैयारी है?
स्वार्थ के घृत में लिपटी
समिधा सजा दी गयी है
आँखों में पट्टी बाँधे
युवा जैसे काष्ठ हों
तत्पर हैं आहुति बनकर
अग्नि रूप धरकर
सर्वनाश करने को।
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आपने सुना तो होगा न भूपेन हजारिका को?

आइये आज की रचनाएँ पढ़ें-

 
मन के परों पर
हौले से उड़ता मनचाहे स्वप्नों का क्रम
पत्तों की खड़-खड़ से
बुझती उम्मीद पर लौटते उजाले का भ्रम
आँगन के बियाबान में
धैर्य के मटके सब फूटे। 

आदमकद हो गए आइने
चेहरे बौने हैं
नोन, राई, अक्षत,सिंदूर के
जादू-टोने के
लहलहाई अपयश की फसलें 
जनम-जनम के यश छूटे 
साधो! दरस परस सब छूटे।

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मूक भाषा 
नेह अभिलाषा
बंधहीन मन,
सिर्फ़ महसूसता है
निश्छल निष्कलुष एहसास...।
माना कि तू पागल है
लेकिन
मन की भाषा तो समझता है
धोखेबाज है
लेकिन अपने साथी से
दिल की बात तो करता है

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स्मृतियों के कोरे पन्नों में /छपती रहती हैं पीड़ाएँ 
निः शब्द ही /इच्छा-अनिच्छा की
परिभाषा से परे/भावनाओं का
 मूक समर्पण / समय के हाथों। 

तब 
तिरस्कार की चुभन 
तीव्र करती  
श्वेत सुमन के साथ 
इतराने लगी जूही

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अन्तर्मन के आसमान में
रंग बिरंगे पंख लगाकर
उड़ते फिरते सोच के पाखी
अनवरत अविराम निरंतर
मन में मन से बातें करते
मन के सूनेपन को भरते
शब्दों से परे सोच के पाखी।

जगत भी यह रोज़ मिटता 

आज, कल में जा समाता, 

अटल भावी में  यही कल 

देखते ही जा सिमटता !


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संबंध आइसक्यूब से लगने लगे हैं आजकल
 हथेलियों में उठाते ही पिघलने लगते हैं...
 गर्माहट भावनाओं की नहीं शायद
  उपेक्षा का ताप ज्यादा है। 



आँगन में रखी कुर्सियाँ 
अब धूप में तपती हैं,
बारिश में भीगती हैं,
तिल-तिल कर मर रही हैं 
ये पुरानी कुर्सियाँ. 


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रिश्तों की 

गझिन बुनावट से बना है परिवार

प्रेम सूई-धागे की तरह

उधड़ेरिश्तों की तुरपाई करता है।

धागा प्रेम का


मकान का बंटवारा होने के बाद मयंक बहुत ठगा सा महसूस कर रहा था। कुछ कसर जान पहचान वालों और रिश्तेदारों ने पूरी कर दी उन्होंने मयंक को मुकेश भाई साहब की चालाकी और ठगी का अहसास करवाया। मुकेश भाई साहब जितना समझाते ठगे जाने का एहसास उतना ही गहरा होता जाता। निशि को भी यही लगता था और फिर मुकेश भाई साहब को लेकर कटुता इतनी बढ़ी कि उन दोनों ने उनसे सारे संबंध तोड़ लिए। 


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और चलते-चलते  

पुस्तक छपना किसी लेखक का सबसे सुंदर

 स्वप्न होता है। पुस्तक में लेखक की पवित्र आत्मा का वास होता है। पढ़िए एक पाठिका द्वारा कविताओं की

 नदी में डुबकी लगाकर,खारा-मीठा स्वाद चक्खते हुए

निष्पक्ष भाव से लिखी गयी एक बेबाक समीक्षा; 

पुस्तक समीक्षा :खिलते प्रसून

इनके पूरे संग्रह में प्रेम , इश्क़ , या विरह  जैसे विषय पर  रचनाएँ न के बराबर  हैं । इस काव्य - संग्रह में कुल 50 कविताओं का समावेश है ।
इस संग्रह की पहली कविता  में कुछ प्रेम का होना मुखरित हो रहा है । लगता है नायक के आने से  नायिका के मन के भाव कहने का प्रयास किया है - ..... था सूना मन का आँगन / उपहार प्यार का भर लाये /  चिर बसंत फिर घर आये ।

और एक गीत




आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
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11 टिप्‍पणियां:

  1. मनमोहक अंक
    गली-मुहल्लों,
    चौक-चौराहों में बना
    विशाल हवन कुंड
    ये किस यज्ञ की तैयारी है?
    स्वार्थ के घृत में लिपटी
    समिधा सजा दी गयी है
    आँखों में पट्टी बाँधे
    युवा जैसे काष्ठ हों
    आभार सखी..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आन्दोलित करती, बैचैन करती , रोमांच पैदा करती रचनाओं को पढ़ना.. क्या कहूँ छुटकी

    जवाब देंहटाएं
  3. गली-मुहल्लों,
    चौक-चौराहों में बना
    विशाल हवन कुंड
    ये किस यज्ञ की तैयारी है?
    स्वार्थ के घृत में लिपटी
    समिधा सजा दी गयी है
    आँखों में पट्टी बाँधे
    युवा जैसे काष्ठ हों
    तत्पर हैं आहुति बनकर
    अग्नि रूप धरकर
    सर्वनाश करने को।

    वर्तमान में जो हो रहा है और जिस पीड़ा से गुजरा जा रहा है उसका प्रभावी चित्रण.
    कमाल की भूमिका के साथ अनूठा सूत्र संयोजन
    साधुवाद आपको

    सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय श्वेता , समसामयिक भूमिका के साथ आज की सभी काव्य रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं ।कहानी का चयन भी लाजवाब है । और हर सूत्र के साथ तुम्हारी विशेष टिप्पणी रूपी समीक्षा प्रस्तुति के प्रति विशेष आकर्षण पैदा कर रही है ।
    इतनी सरस रचनाओं के बीच रसहीन आलोचना जैसे रेशम में टाट का पैबंद लग रही है । इस पैबंद को यहाँ शामिल करने के लिए शुक्रिया ।
    भूपेन हजारिका के वीडियो अपना अलग ही प्रभाव छोड़ रहे हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्‍छी हलचल प्रस्‍‍तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात ! विचारणीय भूमिका और अति श्रम साध्य सुंदर प्रस्तुतिकरण, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  7. विविध रचनाओं से सज्जित सराहनीय प्रस्तुति । सोचने को मजबूर करती भूमिका । सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रिय श्वेता, एक अत्यंत सरस प्रस्तुति को नये अंदाज में संजोने के लिए बधाई और शुभकामनाएं।सभी रचनाओं के साथ काव्यात्मक टिप्पणी रचनाओं के सौंदर्य को द्विगुणित कर रही है।अभी नज़र भर जायजा लिया है रचनाओं का।कल सभी पर प्रतिक्रिया देने का प्रयास करती हूँ।एक बार फिर से आभार और प्यार एक भावपूर्ण अंक के लिए 🎉🎉🎊🎊♥️♥️🌷🌷

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति और पुस्तक समीक्षा के लिए ढेरों धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह!श्वेता ,खूबसूरत प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

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