हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
गर्म राख़ कुरेदो
तो मिल जाएगी वह अन्तिम चिंगारी
जिससे सुलगाई जा सकती है फिर से आग । ©मदन कश्यप
हाथ मिलाने से डर लगता
दोस्त न दे थोड़ी सी राख।
बहुत पुरानी घटना हो गई कुएँ ताला का पानी देखना,
अब तो उसक ढके हुए है राख
राख की चादर ओढ़कर घुटने मोड़े
मैं सो जाता हूँ घर लौटकर
सपनों पर निःशब्द गिरती रहती है –राख
रेगिस्तान के बीच
अचानक नहीं खड़ा है
सदियों से जलकर बना है
राख का क़िला इतने में कहीं से गाने की आवाज सुनाई दी,"आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे, आज मैं आगे, जमाना है पीछे..." मैं ने आजू बाजू में नजर दौड़ाई। लेकिन मॉल में के लोगों को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि कोई गाना गा रहा हो। वैसे भी मॉल की दुकानों में गाना कौन गाता है? शायद ये मेरा भ्रम होगा ऐसा सोचकर मैं उस पैकेट पर लिखा पढ़ने लगी।ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी थी
उन की बात सुनी भी हम ने अपनी बात सुनाई भी राख को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद चंचल नार...भभूत लगावत शंकर को, अहिलोचन मध्य परौ झरि कै।
अहि की फुँफकार लगी शशि को, तब अंमृत बूंद गिरौ चिरि कै।
तेहि ठौर रहे मृगराज तुचाधर, गर्जत भे वे चले उठि कै।
सुरभी-सुत वाहन भाग चले, तब गौरि हँसीं मुख आँचल दै॥
जी दी,
जवाब देंहटाएंराख पर आधारित अत्यंत रोचक अंक।
ज्योति जी का राख से इंटरव्यू बेहद सराहनीय है।
कवि गंगाराम से प्रथम परिचय के लिए आभार दी।
धरोहर में संजोये गुलज़ार की सुंदर कृति तथा अं्य रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
मदन कश्यप जी को अभी नहीं पढ़े हैं।
साझा की गयी तस्वीर उपलब्धि की कहानी बयां कर रही।
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जागते में भर जाती बोलने के शब्दों में,
किताब खोलो तो भीतर पन्ने नहीं राख!
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बेहतरीन अंक।
सादर प्रणाम दी।
राख..रोचकता लिए बहुत सुंदर संकलन ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका दीदी ।
आज फिर देर हो गई
जवाब देंहटाएंसदाबहार प्रस्तुति
आभार
सादर नमन
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह!सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंराख के ढेर से कितनी यादें कुरेद लाईं हैं आप । जी 0के 0 अवधिया जी के ब्लॉग पर जाना सूखकर लगा । आभार
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