शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
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आपने सुनी क्या बदलते मौसम की आहट को?
राग-रंग बदले मौसम के
बदले धूप के तेवर,
रुई धुन-धुन आसमान के
उड़ गये सभी कलेवर,
नीम निबौरी चिडिया बोली
साँस ऋतु की पल-पल गिन
चार दिवस फुर्र से उड़ जाये
चक्ख अमिया-सी गर्मी के दिन
#श्वेता
अल्फ़ाज़ों की ऐसी शैली जो हमारे अंतर्मन को
छूकर भावनाओं को जगा दें, जिसे पढ़कर सुनकर
दिल के एहसास अपनी धुन में गुनगुना उठे, अनायास ही
दाद निकल पड़े, ऐसी ग़ज़ल का लुत्फ़
आप ही उठाइये चलिए सबसे पहले दो
बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ते हैं।
कत्ल की साजिश में यूँ तो और भी लोग थे ,
अजीजों में खल्क बस तेरा नाम लेती है
कौन पूछता है उदासी का सबब मुझसे
जिंदगी कदम-कदम पे इम्तिहान लेती है।
पता नहीं था आदमी को ज़िन्दगी में कभी,
उसे मशीनों का फिर से ग़ुलाम होना था.
नसीब खुल के अपना खेल खेलता हो जब,
रुकावटों के साथ इंतज़ाम होना था.
मनुष्य अगर प्रकृति के तमाम गुणों को समझकर आत्मसात कर लें तो अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव कर सकता है। दरअसल प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे- पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है।
दिन ढलने का अर्थ सिर्फ़ अंधकार नहीं होता, प्रकृति जीवन को नवीन दृष्टिकोण प्रदान करती है जरूरत है उसके संदेश को समझने की।
समुद्र ..
साँझ तक थका-मांदा
जलते अंगार सा वह जब
जाने को हुआ अपने घर
तो..
बिछोह की कल्पना मात्र से ही
बुझी राख सा धूसर
हो गया सारे दरिया का
पानी …
बेटियाँ ब्याह के पहले मायके का आँगन बेफ्रिक्र
खिलखिलाहटों से भरती है और ब्याह के बाद
ससुराल की जिम्मेवारी पल्लू से बाँधकर
अपने अस्तित्व की परिभाषा गढ़ती है।
समय की चाक पर गढ़ी जा रही
अपनी भूमिका का पात्र सहजता
से उठाकर अपने कर्तव्यों का निष्ठा से निर्वहन करती है।
कान्ति आई तो घर में रौनक आ गयी । माँ की आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े । वह उसे बार-बार गले लगाती । कभी उसके हाथों को तो कभी सिर को सहलाती । परन्तु उसने महसूस किया कि कान्ति अब पहले सी माँ और मायके वाली नहीं रही । ना उसे माँ के इतने प्यार से बनाए पकवानों में पहले सी दिलचस्पी है और ना ही मायके की किसी भी अन्य चीजों से। उसे बार-बार मोबाइल स्क्रीन को चैक करते देख कावेरी ने टोकते हुए कहा , " कान्ति ! ये मोबाइल में क्या रखा है ? बेटा ! आई है तो थोड़ा इधर भी मन लगा न !
और चलते-चलते
पति के किसी भी कारण से असमय मृत्यु हो जाने पर, विधवाओं के प्रति न केवल परिवार का, बल्कि पूरे समाज का जिस प्रकार नजरिया बदल जाता था, वो किसी को भी, आज भी आश्चर्य में डाल सकता है। सामाजिक दबाव, न केवल उनका साज-सिंगार छीनता है ,उसकी आँखों में खुशियों की एक झलक देखना पसंद नहीं करता बल्कि आँसू में चारदीवारी में डूबी हुई एक दायरे में सिमट जाने पर मजबूर कर देता है। शादी-विवाह और तीज-त्यौहार जैसे मांगलिक अवसरों पर, उन्हें इस कदर उपेक्षित किया जाता था कि सारी शिक्षा और आधुनिकता हास्यास्पद लगती है।एक स्त्री की मनोदशा मर्मस्पर्शी चित्रण।
बाँधे गठरी हर पल पल्लू में अपने,
भर-भर कर बूँदें आँसू की बावली।
डालें गलबहियाँ पल्लू उँगलियों में,
मची हो मन में जब-तब खलबली।
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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
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रहेगा वहीं जो अपनी सुनेगा
जवाब देंहटाएंयात्रा के बाद घर वापसी
फिर वही सुबह वहीं रात
चल चित्र के माफिक यात्रा का
पुनर्वालोकन करते पुरानी दिनचर्या
में लग जाना ही नियति है,
आप अपने आप को वापस पा गई यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है,
एक बेहतरीन जीवित अंक
आभार
सादर
जी ! नमन संग आभार आपका .. बतकही को मंच प्रदान करने के लिए।
जवाब देंहटाएंआज की आपकी बहुरंगी प्रस्तुति की भूमिका के केंद्रबिंदु में बदलते मौसम की काव्यात्मक चर्चा मैदानी भौगोलिक परिस्थितियों के परिदृश्य में प्यारे और चरितार्थ हैं, पर पहाड़ों में मेरी जो अनुभूति रही है कि यहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों में मौसम प्रतिदिन ही क्या .. पल-पल परिवर्त्तनशील हैं .. शायद ...
हर बार की तरह इस बार भी हर रचना (मेरी बतकही) के पहले आपकी संक्षिप्त टिप्पणी वाली परम्परा के तहत आपने विधवाओं की तथाकथित मानव समाज में कारुणिक दशाओं के लिए "था" शब्द का व्यवहार किया है, जो कि आज भी, अभी भी "था" और "है" के बीच दोलनमय है .. शायद ...
सतीप्रथा की तरह हुई पूर्णत बदलाव की तरह "था" शब्द का व्यवहार मेरी सोच में अनुचित है .. शायद ...
वैसे भी विधवा की पीड़ाओं को प्रतिबिम्बित करते हुए हमने विरहिणी की मनोदशा को व्यक्त करने का प्रयास भर किया है, अपनी बतकही के माध्यम से ..बस यूँ ही ...
सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंभीनी हलचल .. आभार मुझे शामिल करने के लिये …
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्रों से सजी प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंमनमोहक समीक्षाओं के साथ लाजवाब प्रस्तुति ।सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय... मेरी रचना को भी यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता !
जवाब देंहटाएंआपने सुनी क्या बदलते मौसम की आहट को?
राग-रंग बदले मौसम के
बदले धूप के तेवर,
रुई धुन-धुन आसमान के
उड़ गये सभी कलेवर,
वाह!!!!
👌👌👌मनमोहक एवं चित्ताकर्षक शुरुआत।
साधुवाद🌹❤️🌹