।।उषा स्वस्ति।।
केश, कपोल, कपाल, कुच, पेट, पृष्ठ, परिधान ।
फागुन ने सब कुछ रंगा, मन में छेड़ी तान ।।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
फागुनी आहटें ,प्रकृति का अलग रंग रूप बिखरी हुई है.. इन सब के बीच कुछ पल चुनिंदा लिंकों पर..✍️
तू मेरे अन्दर से नहीं जाती....
बिखरे अल्फाजों की माला
गढ़ना कभी आसान ना था
खामोशी तेरे लबों की
पढ़ना कभी आसान ना था..
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संभल नहीं पाओगे
पुरुष ने स्त्री को देवदासी बनाया,
लेखिका : डॉ० उषा किरण
जब आशियाने का शहतीर साथ छोड़ देने वाली स्थिति में हो और उसी
समय टेक बने नए लट्ठों में भी घुन लग जाए तब विश्वास की नींव की ईटों को दरकने
से कौन रोक सकता है ?
आशियाना संभलेगा या बिखरेगा ,बिखरेगा तो कितना कुछ..
🌼
तुम ठीक ही कहते हो!
ये औरतें भी ना…बड़ी भुलक्कड़ होती हैं
बड़ी जल्दी ही सब भूल जाती हैं
भूल जाती हैं!
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बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंसमीक्षा अच्छी लगी
कृपया किंडल का लिंक भी दिया करें
आभार
सादर
सुंदर प्रस्तुति। विविध रसों से परिपूर्ण श्रमसाध्य अंक।
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