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बुधवार, 1 मार्च 2023

3684..अलग रंग रूप..

 ।।उषा स्वस्ति।।

केश, कपोल, कपाल, कुच, पेट, पृष्ठ, परिधान । 

फागुन ने सब कुछ रंगा, मन में छेड़ी तान ।। 

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

फागुनी आहटें ,प्रकृति का अलग रंग रूप बिखरी हुई है.. इन सब के बीच कुछ पल चुनिंदा लिंकों पर..✍️

तू मेरे अन्दर से नहीं जाती....

बिखरे अल्फाजों की माला

गढ़ना कभी आसान ना था

खामोशी तेरे लबों की

पढ़ना कभी आसान ना था..

🌼

संभल नहीं पाओगे


 





पुरुष ने स्त्री को देवदासी बनाया,

अपनी संपत्ति मान ली
फिर घर में रहने वाले 
उसे उपेक्षित नज़रों से देखने लगे ... !!!.।
🌼

 समीक्षा : "दर्द का चंदन "

लेखिका : डॉ० उषा किरण

जब आशियाने का शहतीर साथ छोड़ देने वाली स्थिति में हो और उसी 

समय टेक  बने नए लट्ठों में भी घुन लग जाए तब विश्वास की नींव की ईटों को दरकने 

से कौन रोक सकता है ? 

आशियाना संभलेगा या बिखरेगा ,बिखरेगा तो कितना कुछ..

🌼


तुम ठीक ही कहते हो!

ये औरतें भी ना…बड़ी भुलक्कड़ होती हैं 

बड़ी जल्दी ही सब भूल जाती हैं

भूल जाती हैं!

🌼

सच्चों के  सम्मुख कभी,गली नहीं पर दाल।।

उजियारे  की   सौंप  दी,रक्षा  जिनके   हाथ।
🌼
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक
    समीक्षा अच्छी लगी
    कृपया किंडल का लिंक भी दिया करें
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति। विविध रसों से परिपूर्ण श्रमसाध्य अंक।

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

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